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chahat
है विद्या गुरु तुम्हे नमन तुम उज्ज्वल हो, तुम हो ज्ञायक तुम आधार हो,तुम हो साधक जैन धर्म की गरिमा तुम हो। गा न सके जिसे वो महिमा तुम हो।। शिष्य तुम्हारे सूर्य से चमकते। मेरे गुरुवर उनका तेज उनकी चर्या तुम हो।। रत्नत्र्य से तुम बनकर बैठे, मोती दिए बिखरा चारो ओर। एक एक मोती ज्ञान से भरे, साधना से बंधी जैसे पक्की डोर। उंगली पकड़ी फिर चला दिया। हम जैसे पुण्यहीनों को गुरुवर मुनियों के दर्श देकर तार दिया।। जीवन छड़ भंगुर है, धर्म की पतवार देकर समझा दिया। फंसे थे बीच भंवर में, भक्त की पुकार पर जैसे भगवान ने अवतार लिया। हुआ रोशन ये जग सारा, जब चमका धरती पर एक ध्रुव तारा। शरद पूर्णिमा पर चंदा ने गुरु दर्श पाने , जैसे खुदको धरती पर उतारा।। दर्श सदा ही मिलते रहे गुरुवर । तुम एक मात्र हम डूबो का सहारा। गहरी है राग द्वेष की नदी । गुरुवर बस हो तुम ही एक सहारा।। नमन नमन नमन हो गुरुवर स्वीकार हमारा........... मिलता रहे आशीष सदा आपका आपका जन्मदिवस है,जैसे है उपकार हम पर आपका।।।।।।।। ©chahat जैन धर्म की गरिमा तुम
Akanksha Jain
"कपट न सीखूँ कोई मैं.. बस सरल स्वभावी बन जाऊँ.. जो मन में हो-वो जुबां पे हो.. जो जुबां पे हो-मैं कर पाऊँ।" (Day 3-दसलक्षण महापर्व "उत्तम आर्जव") ©मनमर्जियां #Jain #jainypoetry #जैन #आस्था #धर्म #jain_writes
Akanksha Jain
"मान-महाविष रूप... मैं सदा विनयी बनूँ... गुण ग्रहण कर जाऊँ सबके.. दोष न कोई गिनूँ।" (day2-दसलक्षण महापर्व-"उत्तम-मार्दव") ©मनमर्जियां #जैन #Jain #jainypoetry #aastha #आस्था #धर्म
Shivani Jain
जैन धर्म के महान पर्व का आरंभ आज से हो रहा है सभी के दिलों से अपने लिए नफरत मिटाने का प्रारंभ आज से हो रहा है। इसकी शुरुवात आज आप सब के साथ करती हूं आज तक की गई जो गलतियां उनके लिए माफी की मांग आज में करती हूं । क्षमा करना अगर आपका दिल कभी दुखाया हो जाने अनजाने आपको कभी सताया हो। सब से क्षमा सबको क्षमा उत्तम क्षमा 🙏। ©Shivani Jain #जैन
Jindeshna
जागो जैनो जागो इस संकट की घड़ी में अपने आसपास के साधर्मी को आर्थिक सहयोग दीजिये। कहीं ऐसा न हो कि हम दानवीर बनकर घूमते रहें और हमारा ही साधर्मी अभावों में दुखी होता रहे। जैन
Rakhi Jain
खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्तिमे सव्व भुएस् वैरं ममझं न केणई। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 - अर्थात सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ मेरा बैर नहीं है। यह वाक्य परंपरागत जरूर है, मगर विशेष आशय रखता है। इसके अनुसार क्षमा मांगने से ज्यादा जरूरी क्षमा करना है। अंत में इतना ही- 'मिच्छामी दुक्कड़म्' #जैन