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BROKENBOY

यूँ तो एक आवाज़ दूँ और बुला लूँ तुम्हें,
पर कशिश खामोशी की भी आज़मा लूँ जरा....

©BROKENBOY #nightshayari 

यूँ तो एक आवाज़ दूँ और बुला लूँ तुम्हें,
पर कशिश खामोशी की भी आज़मा लूँ जरा....

#nightshayari यूँ तो एक आवाज़ दूँ और बुला लूँ तुम्हें, पर कशिश खामोशी की भी आज़मा लूँ जरा....

14 Love

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आपका अरविंद

"खुशहाली में इक बदहाली,
 तू भी है और मैं भी हूँ
हर निगाह पर एक सवाली,
 तू भी है और मै भी हूँ
दुनियां कुछ भी अर्थ लगाये,
हम दोनों को मालूम है
भरे-भरे पर ख़ाली-ख़ाली ,
 तू भी है और मै भी हूँ......." तू भी है,और मैं भी हूँ

तू भी है,और मैं भी हूँ #शायरी

17 Love

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अभिषेक मनिहरपुरी

 हूँ राम मैं और रावण भी हूँ...

हूँ राम मैं और रावण भी हूँ...

6 Love

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Ajay Kumar Dwivedi

कलम और कागज़ जब भी एकांत मे होता हूँ लेखनी स्वयं उठ जाती है।
जो कुछ चलता मेरे मन में कागज पर लिख जाती है।
जीवन के इस चक्रव्यूह मे अक्सर उलझा रहता हूँ।
दुख हो या हो सुख दोनों को हसते हसते सहता हूँ।
होती जब भी बोझिल आँखें सब कुछ ही कह जाती है।
जो कुछ चलता मेरे मन में कागज पर लिख जाती है।
सुख मे तो सब हसते है मुझे दुख मे हसना पड़ता है।
पांव चाहें थके हो कितने पर मुझको चलना पड़ता है।
हृदय से निकली बातें जिभ्यां पर आते ही रूक जाती है।
जब भी एकांत मे होता हूँ लेखनी स्वयं उठ जाती है।
कभी-कभी मन कहता है सब मुझको ही क्यों दिखता है।
देख तरक्की मानव की यहां मानव ही क्यों जलता है।
एक अमीर के सम्मुख गरीब की इज्जत क्यों घट जाती है।
जो कुछ चलता मेरे मन में कागज पर लिख जाती है।
मान और सम्मान से ज्यादा पैसा सबको प्यारा है। 
रिश्ते नाते झूठे जग में बस दौलतमंद हमारा है।
बड़ी गजब है अजय गरीबी सब कुछ ही सह जाती है।
जब भी एकांत मे होता हूँ लेखनी स्वयं उठ जाती है।
जब भी एकांत मे होता हूँ लेखनी स्वयं उठ जाती है।
जो कुछ चलता मेरे मन में कागज पर लिख जाती है।
जब भी एकांत मे होता हूँ लेखनी स्वयं उठ जाती है।
अजय कुमार व्दिवेदी
Copyright@ajaykumardwivedi #ajaykumardwivedi कविता जब भी एकान्त मे होता हूँ ।

#ajaykumardwivedi कविता जब भी एकान्त मे होता हूँ ।

2 Love

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RAVI KUSHWAHA NARAHAT LALITPUR

तुम दूर भी है और पास भी है

तुम दूर भी है और पास भी है

109 Views

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Crazy Raja

अलग भी हूँ और ग़लत भी हूँ 😎

#Video #sayri #crazyraja

अलग भी हूँ और ग़लत भी हूँ 😎 #Video #sayri #crazyraja #सस्पेंस

27 Views

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priynka sharma

आशीष कुमार तिवारी
कविता- खुशबू और भी हैं

#NaseebApna

आशीष कुमार तिवारी कविता- खुशबू और भी हैं #NaseebApna

57 Views

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Kashmir Singh

मेरी कविता....आपके सहयोगार्थ......कृपया सुने भी और अपनी प्रतिक्रिया भी दें.....

मेरी कविता....आपके सहयोगार्थ......कृपया सुने भी और अपनी प्रतिक्रिया भी दें.....

30 Views

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Rajeev Upadhyay

कभी कभी यूँ भी होता है
चेहरा कौन सा पहन लूँ
और उतार दूँ किसे
यह सोच मन डूबता है।

राजीव उपाध्याय

©Rajeev Upadhyay कभी कभी यूँ भी होता है
चेहरा कौन सा पहन लूँ
और उतार दूँ किसे
यह सोच मन डूबता है।
~ राजीव उपाध्याय

#lonely

कभी कभी यूँ भी होता है चेहरा कौन सा पहन लूँ और उतार दूँ किसे यह सोच मन डूबता है। ~ राजीव उपाध्याय #lonely #कविता

7 Love

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Ajay Kumar Dwivedi

सोचता हूँ प्रियतम पर किताब लिख दूं मैं।
मन की व्यथा लिखूँ उसपर हर राज लिख दूं मैं।

देख कर मुखड़ा उसीका होती सुबह हर दिन मेरी।
हूँ सोचता की चौदवीं का उसको चाँद लिख दूं मैं।

उलझनों में लाख उलझा है मेरा जीवन तो क्या।
साथ उसके कितना हूँ खुश ए आज लिख दूं मैं।

हमसफर बनकर मेरा वो गुनगुनाता चल रहा।
हूँ सोचता की आज उसपर साज लिख  दूं मैं।

दूर होकर भी वो मुझसे पास रहता है मेरे।
सोचता हूँ कि हृदय की हर बात लिख दूं मैं।

ख्वाब में भी वो मेरे और है हकीकत भी वहीं।
हूँ सोचता उसको कवि का राग लिख दूं मैं।

सोचता हूँ प्रियतम पर किताब लिख दूं मैं।
मन की व्यथा लिखूँ उसपर हर राज लिख दूं मैं।

अजय कुमार व्दिवेदी
04/11/2019
00:52:10 कविता सोचता हूँ प्रियतम पर किताब लिख दूं मैं।

कविता सोचता हूँ प्रियतम पर किताब लिख दूं मैं।

4 Love

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Ajay Kumar Dwivedi

#कविता - सोचता हूँ प्रियतम पर किताब लिख दूं मैं ।

कविता - सोचता हूँ प्रियतम पर किताब लिख दूं मैं ।

65 Views

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प्रेयसी

कि दवा भी मैं और दुआ भी दूं ..!
#nojoto

कि दवा भी मैं और दुआ भी दूं ..! nojoto

27 Views

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Monu Gaur

तवज्ज़ो दूँ और वो भी तुम्हें
इतना भी बुरा वक़्त नहीं मिरा

©Monu Gaur
  #WoNazar 
तवज्ज़ो दूँ और वो भी तुम्हें
इतना भी बुरा वक़्त नहीं मिरा

#WoNazar तवज्ज़ो दूँ और वो भी तुम्हें इतना भी बुरा वक़्त नहीं मिरा #शायरी

27 Views

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Rekha Gakhar

मेरी पहली कविता 
"ज़िंदगी और कविता"

मेरी पहली कविता "ज़िंदगी और कविता" #poem

202 Views

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Mann

मैं  धरती  पुत्र  किसान  हूँ, मै  धरती  पुत्र  किसान हूँ।
मै  भारत  का अभिमान  हूँ, मै धरती  पुत्र  किसान  हूँ।

#देखा है मैंने बादल को, तपती गर्मी निः शब्द खड़ा,
देखा है मैंने सावन को, निष्ठुर  निर्दयीसा मृत  पड़ा,
देखा है मैंने बच्चों की आँखों मै अभिलाषा अन्न की,
ये कैसी घोर विडम्बना है, नरपति ना सुन पाए मन की,

जो टूट ना पायी युगों युगों मै उस भारत की आन हूँ
मै धरती पुत्र  किसान हूँ, मै धरती पुत्र किसान हूँ ।

# उगता सूरज ही मेट सका, इस धरती के अंधियारे को,
कंगन की खनक  का क्या पूछें, हर बात पता मनिहारे को,
 धरती का सीना चीर के मैंने, अन्न को धन बनाया है,
तब जाकर ऊँचे महलों में सुख शंखनाद बज पाया है,

जो बोल ना स्वर मै ढल पाए, मै वो अनबोला गान हूँ,
मै धरती पुत्र किसान हूँ, मै धरती पुत्र किसान हूँ ।

#अब ऐसा भी क्या मांग लिया,सत्ता की चौकीदारों से,
क्यों अपने घर मै कैद रहे, कहदो उन हाकमदारों से,
गर देना हो तो मोल नियत दो, हलदर की फुलवारी का,
तब जाकर खिरमन चख लेगी, रस अपनी हिस्सेदारी का,

ये देश मुझ ही से चलता है, मत समझो की निष्प्राण हूँ,
मै धरती पुत्र किसान हूँ, मै धरती पुत्र किसान हूँ ।

#मैंने ही भोर के माथे पर, हल-फ़ाल से तिलक लगाया था,
मैंने ही ठंडी रातों में, फसलों को नीर पिलाया था,
जब चीर ना था मेरे तन पर,मुझे तब भी कुछ ना खलता था,
तन आज भी मेरा जलता है, तन कल भी मेरा जलता था,
मैंने भी सोचा था साहिब, के अच्छे दिन भी आएंगे,
भारत के भूमिपुत्रों को वो, शीश तलक बैठायेंगे,
पर ये कैसी बू फैली है, अब सत्ता के गलियारों मै,
वो चौपड़ पासे खेल रहे, पूँजी पतियों के बाज़ारों में,

हर रण में अबतक हारा जो, वो दीन धरम ईमान हूँ,
मै धरती पुत्र किसान हूँ, मै भारत का अभिमान हूँ,

मै धरती पुत्र किसान हूँ, मै धरतीपुत्र किसान हूँ।

  "  जय जवान - जय किसान
    जय भारत - जय संविधान "

                                                 " मन "
                                    (Manoj Kumar Meena)

©Mann मैं भी किसान हूँ, और किसानों का दर्द समझ सकता हूँ। मेरा सरकार से विरोध मेरी कविता के माध्यम से है।

मैं भी किसान हूँ, और किसानों का दर्द समझ सकता हूँ। मेरा सरकार से विरोध मेरी कविता के माध्यम से है। #मैंने #अब #देखा

4 Love

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Parasram Arora

कवि  बन तुम हमेशा अपने  दिल क़े  मंजर  देखते रहे 
काश किसी दिन बाहर निकल कर  हमारे बंजर भीदेख लेते
बसंत तो  हर वर्ष  आता रहा  और तुम्हे मदहोश कर गया
काश किसी दिन तुम आकरउसहठी पतझर को देख लेते.
तन क़े लिए तो न जाने तुमने कितने  इंतज़ाम कर लिए
कश कभी अपने  मन क़े जर्ज़र भी  तुमने देख लिए  होते
तुम्हारे छन्दों की  अनुशासनहिंनता   श्रोता   कई बार देख चुके
काश कभी उस  भटकी हुई कटी  पतंग का  दर्द भी  तुम देख लेते
न जाने कितने  सपनो  की  फसल काट कर तुमने कविता. रचि
काश  स्वर्णिम संध्या क़े  उन उपेक्षित इंद्राधनुशो  को भी  देख लेते

©Parasram Arora कवि  और  कविता.......

कवि और कविता.......

11 Love

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Nilam Agarwalla

तुम और कविता तुम पर कविता क्या लिखूं
तुम स्वयं ही एक कविता हो।
हर लफ्ज है शीतल कोमल
प्रीत की बहती सरीता हो।
तुम्हारा भोला-भाला मुखड़ा 
दूर कर दिया दिल का दुखड़ा।
तुम्हारी मुस्कान की खुशबू
महका दी मेरा घर आँगन।
तुम्हारी आँखों की चमक
रोशन कर दी मेरा जीवन।
तुम्हीं मेरी खुशीयों का शबब
तुम्हीं मेरी पूरी दुनिया है। #तुम और कविता

#तुम और कविता

24 Love

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Deepanshi Srivastava

तुम और कविता मुझे तुम और मेरी कविता कुछ एक से लगते हो,
जैसे वो कल्पना के परे है वैसे ही तुम भी मेरी कल्पना के परे हो। तुम और कविता

तुम और कविता

25 Love

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Deep Sharma

तुम और कविता दोनों ही एक जैसे हो

ख्वाबो में हो

मगर हकीकत में नहीं

अहसास में हो

मगर पास में नहीं

Deep Sharma तुम और कविता

तुम और कविता #शायरी

14 Love

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Kumar Saundarya

गज़ल और कविता

गज़ल और कविता

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Ashish Penart

 एक और कविता

एक और कविता

7 Love

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Parasram Arora

अभी ये  तय होना  बाकी है
क़ि  कविता ने  जनमाया  कवि को या.
कवि ने ही कविता को जनमाया  था.
प्रेम की   असफलताओं  ने  ही  शायद
प्रेम कविताओं  को जन्म दिया था
या फिर  अन्याय क़े खिलाफ   ज़ब संघर्ष ने
बिगुल बज़ाया  तो..  आग उगलती  कविता
ने  जन्म पाया था.... और
ज़ब  कभी  रिश्तों  मे  उग्रता  और  बंटवारे
का दौर  चला तो  नैतिक  कविताओं
ने  जन्म  पाया  था 
हर बार  कविताओं ने  अपने  आस पास  क़े
दुर्लभ और  सुलभ  विषयों  को  उठाया   तो  वो  कविता हीथीं  जिसने  कवि को जनमाया था

©Parasram Arora कवि  और  कविता.......

कवि और कविता.......

14 Love

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Parasram Arora

जीवन कठोर  धरातल की उपज हैँ....        ज़ब   भी जन्मा  बहा  और युगो तक चलता रहा
लेकिन कविता  एक कमज़ोर मन की. तरल अभिव्यंजना हैँ
कि ज़ब भी जन्म लेती . सांस पूरी ले भी नहीं पाती कि
मर जाती हैँ
जीवन गंध हैँ  चिठ्ठा हैँ जो इतिहास क़ो रचता हैँ  लेकिन
कविता  कोमल भावनाओं की उहापोह का रसायन हैँ 

जीवन गति हैँ कभी तीव्र कभी धीमी पर हैँ वो इस पार की
कविता उड़ान भरती  और उस पार तक ले जातीहैँ
जीवन संगम हैँ स्त्रेण और पुरुष चित्त का पऱ कविता हैँ 
स्त्रेण चित की भावनात्मक मनोदशा
कविता अकेलेपन की लाठी बनने की क्षमता रखती हैँ
जबकि जीवन परिवारों और भीड़  का चहेता बना रहता हैँ
जीवन हैँ खुली आँखों से  देखा गया सपना जबकि कविता.
कल्पनाओ  कि अवशेषों का मात्र एक झरना हैँ.

©Parasram Arora जीवन और कविता

जीवन और कविता

8 Love

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Naresh

 #शायरी और कविता

शायरी और कविता

20,189 Views

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Abhishek Kumar Mishra

मैं पथिक हूँ...और आप भी
#soultouching

मैं पथिक हूँ...और आप भी #soultouching #कविता

27 Views

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writer##Zeba Noor

तुम और कविता तुम वो कविता हो 
जिसे मै कभी लिख नहीं सकता 
तुम वो एहसास हो 
जिसे मैं बयान नहीं कर सकता 
रूठे पलो का एक एहसास हो तुम 
जिसे में देख नहीं सकता 
वक़्त भी अपनी नज़ाकत दिखता है
इंसान को ही इंसान से अलग कर देता है 
अब वो कविता रूठी हुई हैं मुझसे 
मैं लिखूं अब किस के लिए ? तुम और कविता ####

तुम और कविता ####

11 Love

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