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Rajnesh Kumar

फूलों की तरह महकते रहो
सितारों की तरह चमकते रहो
यह जिंदगी बहुत मुश्किल से मिली है यारों
खुद भी हंसो और  को हंसाते रहो

©Rajnesh Kumar सायरा बानो सायरी

सायरा बानो सायरी #शायरी

14 Love

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प्रशान्त दूबे " वत्स"

साँझ कल रात भर तेरी यादी आयी 
नींद आयी पर हम सोये नहीं ,,
वफ़ा के नाम पर चोट खाये है बहुत
दिल तो खूब रोया पर हम रोये नहीं ,, प्रशान्त फैजाबादी

प्रशान्त फैजाबादी #शायरी

19 Love

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vijay

विजय विष्णु फैजाबादी

#MajesticWords

विजय विष्णु फैजाबादी #MajesticWords

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vijay

विजय विष्णु फैजाबादी

#imissyou

विजय विष्णु फैजाबादी #imissyou #लव

145 Views

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vijay

विजय विष्णु फैजाबादी

#BeatMusic

विजय विष्णु फैजाबादी #BeatMusic

137 Views

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vijay

#WoTil विजय विष्णु फैजाबादी

#WoTil विजय विष्णु फैजाबादी

57 Views

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vijay

विजय विष्णु फैजाबादी

#BeatMusic

विजय विष्णु फैजाबादी #BeatMusic

47 Views

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vijay

विजय विष्णु फैजाबादी की कहानी

विजय विष्णु फैजाबादी की कहानी #लव

640 Views

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Amar'Arman' Baghauli hardoi UP

मैं ऐसे व्यक्तियों को निहायत मूर्ख,अज्ञानी और तुच्छ समझता हूँ जो मेरी या किसी अन्य के द्वारा कही या लिखी गई बातों को सत्यता की कसौटी पर जांचे-परखे बिना ही सत्य मान लेते है ।

©Amar'Arman' Baghauli hardoi UP जानो तब मानो
#WorldEmojiDay2021

जानो तब मानो #WorldEmojiDay2021 #विचार

31 Love

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Amar'Arman' Baghauli hardoi UP

पहले जानो तब मानो
****************
 मानव इतना नादान है कि वह क़ुदरत के द्वारा बार-बार दिए जा रहे संदेशों को समझ पाने में असमर्थ होने बाद भी ,उसकी धूर्तता देखिए कि वह खुद को बड़े ही गर्व से सर्वश्रेष्ठ कहता फिर रहा है।

@अमर'अरमान'
बघौली,हरदोई
उत्तर प्रदेश

©Amar'Arman' जानो तब मानो

#narrates

जानो तब मानो #Narrates

19 Love

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Ramesh mahariya

कि गम ने हसने न दिया ।ओर जमाने ने रोने न दिया। इस उलझन ने सोने नहीं दिया। थक अब  सितारे से पनाह ली। नींद आई तो तेरी याद ने सोने नहीं दिया सायरी सायार की @Neeraj $

सायरी सायार की @Neeraj $ #शायरी

6 Love

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Champak

अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश के चमार साठ और सत्तर के दसक में जब बेगारी और ज़मींदारी से लड़ रहे थे, तब फ़ैज़ाबाद के आदम गोंडवी ने ‘चमारों की गली तक’ नामक यह कविता लिखी थी, जिसमें इस समुदाय के साथ हो रहे अन्याय को उकेरा है। यह कविता तब बीबीसी पर प्रसारित हुई थी।

आज उनका जन्मदिन है-

आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको

जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर
मर गई फुलिया बिचारी एक कुएँ में डूब कर

है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी

चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा
मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा

कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई
लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई

कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है
जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है

थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को
सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को

डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में

होनी से बेखबर कृष्णा बेख़बर राहों में थी
मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी

चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई
छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई

दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया
वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया

और उस दिन ये हवेली हँस रही थी मौज में
होश में आई तो कृष्णा थी पिता की गोद में

जुड़ गई थी भीड़ जिसमें जोर था सैलाब था
जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था

बढ़ के मंगल ने कहा काका तू कैसे मौन है
पूछ तो बेटी से आख़िर वो दरिंदा कौन है

कोई हो संघर्ष से हम पाँव मोड़ेंगे नहीं
कच्चा खा जाएँगे ज़िन्दा उनको छोडेंगे नहीं

कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें
और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करें

बोला कृष्णा से बहन सो जा मेरे अनुरोध से
बच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध से

पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में
वे इकट्ठे हो गए थे सरपंच के दालान में

दृष्टि जिसकी है जमी भाले की लम्बी नोक पर
देखिए सुखराज सिंग बोले हैं खैनी ठोंक कर

क्या कहें सरपंच भाई क्या ज़माना आ गया
कल तलक जो पाँव के नीचे था रुतबा पा गया

कहती है सरकार कि आपस मिलजुल कर रहो
सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो

देखिए ना यह जो कृष्णा है चमारो के यहाँ
पड़ गया है सीप का मोती गँवारों के यहाँ

जैसे बरसाती नदी अल्हड़ नशे में चूर है
हाथ न पुट्ठे पे रखने देती है मगरूर है

भेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआ
फिर कोई बाँहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ

आज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गई
जाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गई

वो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गई
वरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रही

जानते हैं आप मंगल एक ही मक़्क़ार है
हरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार है

कल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप की
गाँव की गलियों में क्या इज़्ज़त रहे्गी आपकी

बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया
हाथ मूँछों पर गए माहौल भी सन्ना गया था

क्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर था
हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था

रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुर ज़ोर था
भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था

सिर पे टोपी बेंत की लाठी संभाले हाथ में
एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में

घेरकर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने -
"जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने"

निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोलकर
एक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर

गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया
सुन पड़ा फिर "माल वो चोरी का तूने क्या किया"

"कैसी चोरी, माल कैसा" उसने जैसे ही कहा
एक लाठी फिर पड़ी बस होश फिर जाता रहा

होश खोकर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार पर
ठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर -

"मेरा मुँह क्या देखते हो ! इसके मुँह में थूक दो
आग लाओ और इसकी झोपड़ी भी फूँक दो"

और फिर प्रतिशोध की आंधी वहाँ चलने लगी
बेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगी

दुधमुँहा बच्चा व बुड्ढा जो वहाँ खेड़े में था
वह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में था

घर को जलते देखकर वे होश को खोने लगे
कुछ तो मन ही मन मगर कुछ जोर से रोने लगे

"कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएँ नहीं
हुक्म जब तक मैं न दूँ कोई कहीं जाए नहीं"
 
यह दरोगा जी थे मुँह से शब्द झरते फूल से
आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से

फिर दहाड़े, "इनको डंडों से सुधारा जाएगा
ठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगा

इक सिपाही ने कहा, "साइकिल किधर को मोड़ दें
होश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें"

बोला थानेदार, "मुर्गे की तरह मत बांग दो
होश में आया नहीं तो लाठियों पर टांग लो

ये समझते हैं कि ठाकुर से उलझना खेल है
ऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है, जेल है"

पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल
"कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्णा का हाल"
 
उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को
सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को

धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को
प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को

मैं निमंत्रण दे रहा हूँ- आएँ मेरे गाँव में
तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में

गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही
या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही

हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए
बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए!

Arvind Kumar Ji #आदमगोंडवी #फैजाबाद #गलीतक
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@Fun Master 2160

हर एक एमतेहा,,💯
से गुजर थोड़ी जाएंगे,,😶


तुम ना मिले तो मर ठोडी जाएंगे,,🤫😈👿

©Shidharth singh #sadquotes सायर और सायरी

#sadquotes सायर और सायरी #शायरी

13 Love

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Pritam Sahani

#शॉट्स सायर नफरत सायरी

#शॉट्स सायर नफरत सायरी #शायरी

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Champak

अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश के चमार साठ और सत्तर के दसक में जब बेगारी और ज़मींदारी से लड़ रहे थे, तब फ़ैज़ाबाद के आदम गोंडवी ने ‘चमारों की गली तक’ नामक यह कविता लिखी थी, जिसमें इस समुदाय के साथ हो रहे अन्याय को उकेरा है। यह कविता तब बीबीसी पर प्रसारित हुई थी।

आज उनका जन्मदिन है-

आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको

जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर
मर गई फुलिया बिचारी एक कुएँ में डूब कर

है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी

चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा
मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा

कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई
लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई

कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है
जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है

थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को
सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को

डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में

होनी से बेखबर कृष्णा बेख़बर राहों में थी
मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी

चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई
छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई

दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया
वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया

और उस दिन ये हवेली हँस रही थी मौज में
होश में आई तो कृष्णा थी पिता की गोद में

जुड़ गई थी भीड़ जिसमें जोर था सैलाब था
जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था

बढ़ के मंगल ने कहा काका तू कैसे मौन है
पूछ तो बेटी से आख़िर वो दरिंदा कौन है

कोई हो संघर्ष से हम पाँव मोड़ेंगे नहीं
कच्चा खा जाएँगे ज़िन्दा उनको छोडेंगे नहीं

कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें
और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करें

बोला कृष्णा से बहन सो जा मेरे अनुरोध से
बच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध से

पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में
वे इकट्ठे हो गए थे सरपंच के दालान में

दृष्टि जिसकी है जमी भाले की लम्बी नोक पर
देखिए सुखराज सिंग बोले हैं खैनी ठोंक कर

क्या कहें सरपंच भाई क्या ज़माना आ गया
कल तलक जो पाँव के नीचे था रुतबा पा गया

कहती है सरकार कि आपस मिलजुल कर रहो
सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो

देखिए ना यह जो कृष्णा है चमारो के यहाँ
पड़ गया है सीप का मोती गँवारों के यहाँ

जैसे बरसाती नदी अल्हड़ नशे में चूर है
हाथ न पुट्ठे पे रखने देती है मगरूर है

भेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआ
फिर कोई बाँहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ

आज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गई
जाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गई

वो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गई
वरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रही

जानते हैं आप मंगल एक ही मक़्क़ार है
हरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार है

कल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप की
गाँव की गलियों में क्या इज़्ज़त रहे्गी आपकी

बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया
हाथ मूँछों पर गए माहौल भी सन्ना गया था

क्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर था
हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था

रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुर ज़ोर था
भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था

सिर पे टोपी बेंत की लाठी संभाले हाथ में
एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में

घेरकर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने -
"जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने"

निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोलकर
एक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर

गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया
सुन पड़ा फिर "माल वो चोरी का तूने क्या किया"

"कैसी चोरी, माल कैसा" उसने जैसे ही कहा
एक लाठी फिर पड़ी बस होश फिर जाता रहा

होश खोकर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार पर
ठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर -

"मेरा मुँह क्या देखते हो ! इसके मुँह में थूक दो
आग लाओ और इसकी झोपड़ी भी फूँक दो"

और फिर प्रतिशोध की आंधी वहाँ चलने लगी
बेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगी

दुधमुँहा बच्चा व बुड्ढा जो वहाँ खेड़े में था
वह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में था

घर को जलते देखकर वे होश को खोने लगे
कुछ तो मन ही मन मगर कुछ जोर से रोने लगे

"कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएँ नहीं
हुक्म जब तक मैं न दूँ कोई कहीं जाए नहीं"
 
यह दरोगा जी थे मुँह से शब्द झरते फूल से
आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से

फिर दहाड़े, "इनको डंडों से सुधारा जाएगा
ठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगा

इक सिपाही ने कहा, "साइकिल किधर को मोड़ दें
होश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें"

बोला थानेदार, "मुर्गे की तरह मत बांग दो
होश में आया नहीं तो लाठियों पर टांग लो

ये समझते हैं कि ठाकुर से उलझना खेल है
ऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है, जेल है"

पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल
"कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्णा का हाल"
 
उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को
सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को

धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को
प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को

मैं निमंत्रण दे रहा हूँ- आएँ मेरे गाँव में
तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में

गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही
या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही

हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए
बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए!

Arvind Kumar Ji #आदमगोंडवी #फैजाबाद #गलीतक
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Champak

अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश के चमार साठ और सत्तर के दसक में जब बेगारी और ज़मींदारी से लड़ रहे थे, तब फ़ैज़ाबाद के आदम गोंडवी ने ‘चमारों की गली तक’ नामक यह कविता लिखी थी, जिसमें इस समुदाय के साथ हो रहे अन्याय को उकेरा है। यह कविता तब बीबीसी पर प्रसारित हुई थी।

आज उनका जन्मदिन है-

आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको

जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर
मर गई फुलिया बिचारी एक कुएँ में डूब कर

है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी

चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा
मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा

कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई
लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई

कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है
जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है

थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को
सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को

डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में

होनी से बेखबर कृष्णा बेख़बर राहों में थी
मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी

चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई
छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई

दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया
वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया

और उस दिन ये हवेली हँस रही थी मौज में
होश में आई तो कृष्णा थी पिता की गोद में

जुड़ गई थी भीड़ जिसमें जोर था सैलाब था
जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था

बढ़ के मंगल ने कहा काका तू कैसे मौन है
पूछ तो बेटी से आख़िर वो दरिंदा कौन है

कोई हो संघर्ष से हम पाँव मोड़ेंगे नहीं
कच्चा खा जाएँगे ज़िन्दा उनको छोडेंगे नहीं

कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें
और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करें

बोला कृष्णा से बहन सो जा मेरे अनुरोध से
बच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध से

पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में
वे इकट्ठे हो गए थे सरपंच के दालान में

दृष्टि जिसकी है जमी भाले की लम्बी नोक पर
देखिए सुखराज सिंग बोले हैं खैनी ठोंक कर

क्या कहें सरपंच भाई क्या ज़माना आ गया
कल तलक जो पाँव के नीचे था रुतबा पा गया

कहती है सरकार कि आपस मिलजुल कर रहो
सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो

देखिए ना यह जो कृष्णा है चमारो के यहाँ
पड़ गया है सीप का मोती गँवारों के यहाँ

जैसे बरसाती नदी अल्हड़ नशे में चूर है
हाथ न पुट्ठे पे रखने देती है मगरूर है

भेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआ
फिर कोई बाँहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ

आज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गई
जाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गई

वो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गई
वरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रही

जानते हैं आप मंगल एक ही मक़्क़ार है
हरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार है

कल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप की
गाँव की गलियों में क्या इज़्ज़त रहे्गी आपकी

बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया
हाथ मूँछों पर गए माहौल भी सन्ना गया था

क्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर था
हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था

रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुर ज़ोर था
भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था

सिर पे टोपी बेंत की लाठी संभाले हाथ में
एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में

घेरकर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने -
"जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने"

निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोलकर
एक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर

गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया
सुन पड़ा फिर "माल वो चोरी का तूने क्या किया"

"कैसी चोरी, माल कैसा" उसने जैसे ही कहा
एक लाठी फिर पड़ी बस होश फिर जाता रहा

होश खोकर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार पर
ठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर -

"मेरा मुँह क्या देखते हो ! इसके मुँह में थूक दो
आग लाओ और इसकी झोपड़ी भी फूँक दो"

और फिर प्रतिशोध की आंधी वहाँ चलने लगी
बेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगी

दुधमुँहा बच्चा व बुड्ढा जो वहाँ खेड़े में था
वह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में था

घर को जलते देखकर वे होश को खोने लगे
कुछ तो मन ही मन मगर कुछ जोर से रोने लगे

"कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएँ नहीं
हुक्म जब तक मैं न दूँ कोई कहीं जाए नहीं"
 
यह दरोगा जी थे मुँह से शब्द झरते फूल से
आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से

फिर दहाड़े, "इनको डंडों से सुधारा जाएगा
ठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगा

इक सिपाही ने कहा, "साइकिल किधर को मोड़ दें
होश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें"

बोला थानेदार, "मुर्गे की तरह मत बांग दो
होश में आया नहीं तो लाठियों पर टांग लो

ये समझते हैं कि ठाकुर से उलझना खेल है
ऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है, जेल है"

पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल
"कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्णा का हाल"
 
उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को
सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को

धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को
प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को

मैं निमंत्रण दे रहा हूँ- आएँ मेरे गाँव में
तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में

गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही
या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही

हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए
बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए!

Arvind Kumar Ji #आदमगोंडवी #फैजाबाद #गलीतक
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Vishwanath Ram

इन्सान बनो इंसानियत बाटो

इन्सान बनो इंसानियत बाटो

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007____devil___x__

माना की ऐ आंखे बहूत कुछ बयां करदेती है,
पर जनाब,
फिर भी गवाई तो जुबां की ही मुक्करर है।

©SRP ENTERTAINMENT
  #सायरी 
#सायर 
#दर्द 
सबसे सुंदर सायरी,कलम से....

#सायरी #सायर #दर्द सबसे सुंदर सायरी,कलम से.... #शायरी

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ef69e730f0e0a96a24d38c5cd47ecb92

Sachin Kumar

गम ना कर ज़िंदगी बहुत बड़ी है,
चाहत की महफ़िल तेरे लिए सजी है,
बस एक बार मुस्कुरा कर तो देख,
तक़दीर खुद तुझसे मिलने बाहर खड़ी है…

©Sachin Kumar #साया #सायारी #सायार #sayari 

#LataJi
17d29fd956295f244aa48a0babf1c64e

singel boy

चार कंधे हमे जब उठाकर
चले 
है गुजारिस सभ मुस्कुराके चले
देख पाएगी ना ओ  जनाजा मेरा इस लिए ओ गली को बचा के चले

©singel boy
  single boy #& सायर की सायरी

single boy #& सायर की सायरी #शायरी

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Rocky Awaarapan

ZIndagi quotes in hindi किसि ने कहा तुम् सायर् बन् गये 
इन्सान् जब् किसी शे दर्द् खाता है 
ज़िन्दगि से हार जाता है 
किस हि को खो देता है 
किसी के प्यार् मे रोता है 
तो अपने आप् वो इन्सान् सायर् बन् जाता है 


                                      #NojotoQuote सायर् बन जाना
#सायर#बन#जाना

सायर् बन जाना #सायर#बन#जाना

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प्रशान्त दूबे " वत्स"

मोहब्बत अगर जुल्म है तो सौ बार करो ,,
हकीकत में न सही सपनो में ही प्यार करो ,,
सुना है चाँद करो गुमान है अपनी  सफेदी पर 
टूट जायेगा सब गुमान बस तकरार करो ,,, कवि प्रशान्त दूबे " वत्स " फैजाबाद अयोध्या

कवि प्रशान्त दूबे " वत्स " फैजाबाद अयोध्या #शायरी

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प्रशान्त दूबे " वत्स"

कवि प्रशान्त दूबे " वत्स " फैजाबाद अयोध्या

कवि प्रशान्त दूबे " वत्स " फैजाबाद अयोध्या #शायरी

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प्रशान्त दूबे " वत्स"

कवि प्रशान्त दूबे "वत्स" फैजाबाद अयोध्या

कवि प्रशान्त दूबे "वत्स" फैजाबाद अयोध्या #शायरी

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vijay

विजय विष्णु फैजाबादी की सच्ची मोहब्बत की दास्तान

#lovebeat

विजय विष्णु फैजाबादी की सच्ची मोहब्बत की दास्तान #lovebeat #लव

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Ramjanak Sonkar

 सिंगी ऋषि बाबा सरावाघाट फैजाबाद अयोध्या ,यूपी

सिंगी ऋषि बाबा सरावाघाट फैजाबाद अयोध्या ,यूपी #हॉरर

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Pushkar Sahu

अहम की भावना अक्सर गुस्सा दिलाती हैँ
सारे रिश्ते नाते एक झटके में तोड़वाती हैँ  Gussa  #YourQuoteAndMine
Collaborating with अदृश्य सायर की सायरी

Gussa #YourQuoteAndMine Collaborating with अदृश्य सायर की सायरी

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Pushkar Sahu

दर्द सबको होता हैँ
कोई दिखाता हैँ कोई रो जाता हैँ  दर्द  #YourQuoteAndMine
Collaborating with अदृश्य सायर की सायरी

दर्द #YourQuoteAndMine Collaborating with अदृश्य सायर की सायरी

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