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Rajesh Saini
फिलहाल तो सबसे सरल बनने की सबसे कठिन कोशिश कर रहा हूँ........................... स्वयं से आत्म-साक्षात्कार
Ek villain
आधुनिक जीवन शैली तथा एकल परिवार व्यवस्था में आज मनुष्य स्वयं को अकेला महसूस करता है इस अकेलेपन से एक अनजाना भय उत्पन्न होता है करुणा काल ने इस समस्या को और भी विकराल बना दिया इस कारण लोगों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है वह अवसाद की चपेट में आ रहे हैं और 7 से जन्म में यह मनोरोग तमाम शारीरिक व्याधियों को आमंत्रित दे रहे हैं वैसे अध्यात्मिक की दृष्टि से देखा जाए तो मनुष्य के भीतर विद्यमान आत्मा ईश्वर का अंश है और अंश स्वयं में पूर्ण नहीं होता जब तक वह अपने पूर्ण स्वरूप ईश्वर सेना जुड़ जाए तो परंतु वर्तमान जीवन की आपाधापी में मनुष्य ईश्वर से जुड़ने का प्रयास नहीं करता इसी कारण उसके भीतर विद्यमान आत्मा स्वयं को अकेला पाती है और उसके अनुसार ही मनुष्य का मन प्रभावित होता है मनुष्य का एक एल्बम से उपजा अंजाना वह उसे मन रोगी बनाता है मन रोग का कारण भी अक्सर पीड़ित व्यक्ति को पता नहीं चलता हालांकि यह पता लगाने के लिए अध्यात्मिक में स्वाध्याय का प्रावधान है स्वाद है कि द्वारा मनुष्य अपने आचरण का अवलोकन करके पता लगा सकता है कि उसकी इस नकारात्मक परवर्ती का क्या कारण है ऐसे में मनुष्य को स्वस्थ के द्वारा अपनी कर्मियों का पता लगाकर उन्हें दूर करके मन और ध्यान के धारण ईश्वर से जुड़ने का प्रयास करना चाहिए इस प्रकार उसके भीतर विद्यमान आत्मा अपने पूर्ण रूप से मिलकर संतुष्ट हो जाएगी और मनुष्य का वालों के लापन और आना जाना वह भी दूर हो जाएगा साथ ही आत्मा ईश्वर रूपी सहारे के द्वारा स्वयं को मजबूत महसूस करने लगेगी इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं को इन महा रोगियों से बचाने के लिए अष्टांग योग के द्वारा दिए गए यह सत्य अहिंसा ब्रह्मचारी और अपरिग्रह तथा नियम स्वाध्याय और किसान के द्वारा अपना आत्म साक्षात्कार करें ©Ek villain # आत्म साक्षात्कार से उपचार #Anhoni
Ramandeep Kaur
HP
प्रत्येक प्राणी में परमात्मा का निवास है। इस घट-घट वासी परमात्मा का जो दर्शन कर सके समझना चाहिए कि उसे ईश्वर का साक्षात्कार हो चुका। साक्षात्कार
Parasram Arora
मेरी चेतना की छिपी हुई तहो. मे वो तमाम घुटन पीड़ा की वृहद अभिव्यक्तिया व्यग्र है आतुर है बाहर आने क़े लिए और वे कदाचित साक्षातकार करना चाहती है अपनी सार्थकता पर प्रश्न चिह्न लगने से पहले सोचता हूँ क्या होगा मेरा उत्तर. उन सवालों पर ज़ब वे सामना करेंगी मेरे ही पूछे गए प्रश्नों का? साक्षात्कार........
Poonam Mehta
*साक्षात्कार* बड़ी दौड़ धूप के बाद , मैं आज एक ऑफिस में पहुंचा।आज मेरा पहला इंटरव्यू था , घर से निकलते हुए मैं सोच रहा था, काश ! इंटरव्यू में आज कामयाब हो गया , तो अपने पुश्तैनी मकान को अलविदा कहकर यहीं शहर में सेटल हो जाऊंगा, मम्मी पापा की रोज़ की चिक चिक, मग़जमारी से छुटकारा मिल जायेगा । सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक होने वाली चिक चिक से परेशान हो गया हूँ ।जब सो कर उठो , तो पहले बिस्तर ठीक करो , फिर बाथरूम जाओ, बाथरूम से निकलो तो फरमान जारी होता है*नल बंद कर दिया?**तौलिया सही जगह रखा या यूँ ही फेंक दिया?* नाश्ता करके घर से निकलो तो डांट पडती है *पंखा बंद किया या चल रहा है?* क्या - क्या सुनें यार , *नौकरी मिले तो घर छोड़ दूंगा. उस ऑफिस में बहुत सारे उम्मीदवार बैठेथे , बॉस का इंतज़ार कर रहे थे ।दस बज गए । मैने देखा वहाँ आफिस में बरामदे की बत्ती अभी तक जल रही है , *माँ याद आ गई* , तो मैने बत्ती बुझा दी ।ऑफिस में रखे *वाटर कूलर से पानी टपक रहा था* , पापा की डांट याद आ गयी , तो *पानी बन्द कर दिया ।*बोर्ड पर लिखा था , इंटरव्यू दूसरी मंज़िल पर होगा । *सीढ़ी की लाइट भी जल रही थी* , बंद करके आगे बढ़ा , तो एक कुर्सी रास्ते में थी , *उसे हटाकर ऊपर गया* । 🌷देखा पहले से मौजूद उम्मीदवार जाते और फ़ौरन बाहर आते , पता किया तो मालूम हुआ बॉस फाइल लेकर कुछ पूछते नहीं , वापस भेज देते हैं ।🌷नंबर आने पर मैने फाइल मैनेजर की तरफ बढ़ा दी ।कागज़ात पर नज़र दौडाने के बाद उन्होंने कहा *"कब ज्वाइन कर रहे हो?"* उनके सवाल से मुझे यूँ लगा जैसे मज़ाक़ हो , वो मेरा चेहरा देखकर कहने लगे , *ये मज़ाक़ नहीं हक़ीक़त है ।* आज के इंटरव्यू में किसी से कुछ पूछा ही नहीं , *सिर्फ CCTV में सबका बर्ताव देखा* , *सब आये लेकिन किसी ने नल या लाइट बंद नहीं किया ।* *धन्य हैं तुम्हारे माँ बाप , जिन्होंने तुम्हारी इतनी अच्छी परवरिश की और अच्छे संस्कार दिए ।* *जिस इंसान के पास Self discipline नहीं वो चाहे कितना भी होशियार और चालाक हो , मैनेजमेंट और ज़िन्दगी की दौड़ धूप में कामयाब नहीं हो सकता ।*घर पहुंचकर मम्मी पापा को गले लगाया और उनसे माफ़ी मांगकर उनका शुक्रिया अदा किया । *अपनी ज़िन्दगी की आजमाइश में उनकी छोटी छोटी बातों पर रोकने और टोकने से , मुझे जो सबक़ हासिल हुआ , उसके मुक़ाबले , मेरे डिग्री की कोई हैसियत नहीं थी और पता चला ज़िन्दगी के मुक़ाबले में सिर्फ पढ़ाई लिखाई ही नहीं , तहज़ीब और संस्कार का भी अपना मक़ाम है...*संसार में जीने के लिए संस्कार जरूरी है । संस्कार के लिए मां बाप का सम्मान जरूरी है । *जिन्दगी रहे ना रहे , जीवित रहने का स्वाभिमान जरूरी है ।*पोस्ट अच्छी लगे तो, आगे बढ़ाने में हर्ज़ नही है । दो कदम यथार्थ की ओर। 🙏🙏🙏🙏 साक्षात्कार