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वो SabnamKhatoon
अपने जीवन को संवारने के लिए हम लोग ना जाने कितने परिश्रम करते हैं। जीवन में खुशियां हो या ना हो यह तो दो पहलू पर निर्भर करता है। एक तो कर्म और दूसरा समय। मेरे हिसाब से यह दो पहलू ही अहम है जीवन के लिए। ©वो SabnamKhatoon जीवन पर कविता
Ek villain
इन दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय की एक पीठ में भारतीय दंड संहिता आईपीसी में पतियों को दुष्कर्म के आरोप से अपवाद स्वरूप प्रदान की जाने वाली छोटी पर जोरदार बहस हो रही है भारत में दुष्कर्म के अपराध को परिभाषित करने वाली आईपीएस की धारा 375 में नहीं अपवाद कहता है कि अपनी पत्नी के साथ पुरुष द्वारा किया जाने वाला संभोग पत्नी की उम्र 15 वर्ष से अधिक होने की दिशा में दुष्कर्म नहीं माना जाएगा इसी वफादार आरती फाउंडेशन ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेन एसोसिएशन और दो व्यक्तियों ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी है दूसरी ओर दिल्ली सरकार हृदय फाउंडेशन नामक गैर सरकारी संस्था और मेन वेलफेयर ट्रस्ट के अंत में पानी तथा तृतीय इस उपवास को खत्म करने का विरोध कर रहे हैं भारत में पति और पत्नी के बयान यौन संबंधों को दुष्कर्म के दरिया में लाए जाने पर सबसे ज्यादा जताई जा रही है चिंताओं में से एक यह है कि दुर्भावना रखने वाली पतियों द्वारा अपने पतियों और उनके परिवार को परेशान करने के लिए दुष्कर्म के झूठे आरोप लगाए जा सकते हैं हालांकि यह एक जायज चिंता है लेकिन याचिकाकर्ताओं और यहां तक की पीठ ने भी इसे कहते हुए दबाने की कोशिश किया कि हर कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है लेकिन यह कानून नहीं लाने का आधार नहीं हो सकता यह तर्क दिखाने में तो जायजा लगता है कि लेकिन अगर हम वास्तविक में प्रत्येक नागरिक के समान अधिकारों के बारे में चिंतित है तो एक नया कानून लाते समय जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता ©Ek villain #वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप के खतरे #friends
Rajveer Salvi
Alone दासता–ए–बेरोजगार चार बायीं छ: फ़ीट के बन्द कमरे में, बैठ स्कूल लेक्चरार की तैयारी में, जुटा है एक किशोर| कुछ बनने की ख्वाहिश लेकर चन्द सालों पहले अपना घर छोड़, कई मिलों दूर चला आया है, एक किशोर| बीते साल रीट में कुछ पॉइंट से रह गया था वो, इस अवसाद के साथ एक अनसुलझी, ख़ामोश ज़िन्दगी से बहुत कुछ ना कहते हुए भी, बहुत कुछ कह रहा है, एक किशोर| रोज़ इस फ़िराक से की कही पीछे ना छूट जाऊ मंझिल की राहों से, इस कम्पा देने वाली सर्दी में भी जल्दी उठ जाता है, एक किशोर| रुपयों की अहमियत और मेहनत की कमाई से जोड़ें पैसों की क़द्र समझ, कई किलोमीटर दूर कोचिंग तक पैदल अपने हौसले भरे पैरों से बढ़ा जा रहा है , एक किशोर| सर्दी आ रही है, मम्मी ने अपने हाथों की गर्म नरमाहट, प्यार और आशीर्वाद से भेजें स्वेटर को पहनकर, इस ढलती शाम में भागते वाहनों को चीरते हुए, अपने कमरे की ओर बढ़ रहा है, एक किशोर| पापा कह रहे थे, बेटा इस बार फसल अच्छी हो जाए तो, कुछ पैसे ज्यादा भेजूँगा, तू एक अच्छा नया स्वेटर ले लेना और पाव भर दूध भी लाकर पी लेना, बीते महीने तू आया था तो बड़ा कमज़ोर दिख रहा था, पापा के दुलार को बढ़ाने में दिन रात जुटा हुआ है, एक किशोर | पर यह क्या था , इस बार तो बारिश बहुत हुई पक्क चुकी फसलें पानी से भर गई चारों ओर खेत में पानी ही पानी था , पापा के इस दुःख पर अपनी ज़िंदगी से कई शिकायतों के सवालों, के सैलाब से जूझ रहा है, एक किशोर | छुटकी बोल रही थी, फ़ोन पे भैया महीनों हो गये आपको देखे, दीवाली भी आ रही है, आओगे ना आप इस बार , ना जाने बदलतीं सरकारें और सत्ता पाकर बेसुध हुए दो-दो शहनशाहो का, कब परीक्षा फ़रमान जारी हो जाये इस डर से इस बार दीवाली पर जाने से कुछ नरवश सा हो गया है, एक किशोर | बदलती सरकारों और बदलतें फैसलों महँगाई के चंगुल तथा शिक्षामंत्री जी की, चिड़िया उड़ कोवा उड़ खेल में बुरी तरह फंस चुका है, आज का हर एक किशोर | इस उम्मीद से की एक दिन नई सुबह आएगी उसकी जिंदगी में यही सोच रूखी सुखी रोटी खा कर चंद बिस्तर लिपटकर सो रहा है, एक किशोर | लेखक – कैलाश चंद्र सालवी #alone मेरी पहली कविता मेरे जीवन पर...
Poem and Motivation with Divyanshu
मंजिल ----------- हारा नहीं मैं ना ही जीता हूं, मैं तो केवल जिंदगी के खेल से अछुता हूं, मंजिल की राहों में कंकड़ों से टकराता हूं, थक कर भी मैं पीठ ना दिखाता हूं। रुका नहीं मैं ना ही दौड़ता हूं, मैं तो केवल अपनों से टुटा हूं, पथिक बनकर चलता रहता हूं, भय को मिटाकर निर्भय बन जाता हूं। धन्यवाद। दिव्यांशु राय आपके जीवन पर कविता । धन्यवाद। #foryou #yourpoem #mypoem
Pushpvritiya
दो हृदय मिले,दो पुष्प खिले,दो सपनों ने श्रृंगार किया! दो दूर देश के वासी ने संग संग चलना स्वीकार किया...!! ©Pushpvritiya हरलाल(लिटिल) और रुम्पा को वैवाहिक जीवन की ढेर सारी मंगलकामनाएं
Jupiter and its moon
सुनो! माना कि विवाह में समर्पण ज़रूरी है। पर ख़ुद की तकलीफों को भी दर्पण ज़रूरी है। ज़रूरी है तुम्हारी मर्जियों की इज़्ज़त। बिन आदर की मोहब्बत भला कैसी मोहब्बत? किसी हैवान को हमसफ़र न समझना। रूसवाइयां हों जहां उसे अपना घर न समझना। जो ज़िस्म की ख़ातिर रूह तार तार कर दे। तुम्हारे वज़ूद और आत्मा तलक को बेज़ार कर दे। जो समझे न तुम्हारी हामियों की ज़रूरत। उस पति नाम के दरिंदे से बचाना अपनी इज़्ज़त। ©Jupiter and its moon वैवाहिक बलात्कार! #Woman