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Pooja Udeshi
यार तुझे कुछ काम धंधा नहीं हैं दिन रात घूरता ही रहता हैं बतमीज इंसान 😡 ©Pooja Udeshi कुछ काम धंधा नहीं हैं 👆🏻हाँ, बोल 😅👍🏼
प्रभाकर अजय शिवा सेन
दोस्तों कुछ लोगों को लगता है कि हमारे पास कुछ काम-धंधा नही है इसलिये हम उन लोगों को फोन लगा देते हैं तो हम उन लोगों से कहना चाहते हैं कि ओये सुनो काम तो इतना पड़ा है कि काम को टालना पड़ता है लेकिन फिर भी हम रिश्तों को बचाने के लिए फोन लगा देते हैं क्योंकि हमको रिश्तों की अहमियत मालूम है।✍️✍️✍️ ©प्रभाकर अजय शिवा सेन दोस्तों कुछ लोगों को लगता है कि हमारे पास कुछ काम-धंधा नही है।
VEER NIRVEL
उसकी आँखें झील हैं तो क्या करें.. डूब जाएं..काम धंधा छोड़ दें...? #Chai_Lover ©VEER NIRVEL उसकी आँखें झील हैं तो क्या करें.. डूब जाएं..काम धंधा छोड़ दें...? #Chai_Lover
Dr.Vinay kumar Verma
MANJEET SINGH THAKRAL
देश में वर्त्तमान संकट का सामना करने के लिए 24 अर्थशास्त्रियों और इंटेलेक्चुअल्स ने 7 सूत्रीय एक राष्ट्रीय योजना "मिशन जय हिन्द" का सुझाव सर
Shravan Goud
आजकल कुछ घरों की हंसी गायब होते जा रही पुछने पर पता चला काम धंधा ठप्प हो गया है काम कम मिल रहा है नाउम्मीदी हो चली है। समय नाजुक हैं और सब पर भारी है। आजकल कुछ घरों की हंसी गायब होते जा रही पुछने पर पता चला काम धंधा ठप्प हो गया है काम कम मिल रहा है नाउम्मीदी हो चली है। समय नाजुक हैं और सब प
संगीत कुमार
जन जीवन बदहाल हुआ मानव उर पस्त हुआ चीन जग में विष घोल दिया मानव जीवन बेहाल हुआ जन जीवन बदहाल हुआ क्यों ऐसा नफरत घोल दिया जग अशांत सा हो गया काम धंधा सब ठप पड़ा जीवन व्याकुलता से जूझ रहा जन जीवन बदहाल हुआ तेरा शैतानी जन जन जान गया तेरा विस्तारवादी नीति अब टूट रहा जान ले तू अब परास्त होगा तेरा गुमान सब चूर होगा जन जीवन बदहाल हुआ भारत से तू टकरा रहा मानवता न अब तुम में रहा जान जा अब हिन्दुस्तानी जाग गया तेरा अब अवसान होगा जन जीवन बदहाल हुआ तू अब मिट्टी में मिल ही जायेगा तेरा अरमा चकनाचूर होगा दुनिया में मुँह छुपा न पायेगा घुट घुट कर मर जायेगा जन जीवन बदहाल हुआ (संगीत कुमार /जबलपुर ) ✍🏽✍🏽स्व-रचित 🌹🌹 जन जीवन बदहाल हुआ मानव उर पस्त हुआ चीन जग में विष घोल दिया मानव जीवन बेहाल हुआ जन जीवन बदहाल हुआ क्यों ऐसा नफरत घोल दिया जग अशांत सा हो
संगीत कुमार
Vandana
जो मैं लिखती हूं वह मेरी कलम की प्यास है। मेरे मन मस्तिष्क में मंडराते मेरे विचार हैं। कभी खुद के अनुभव, "कभी जो घटित हुआ हो आस पास है। ये आंखें जहां देखती वहां से कई विचारों को घड़े में भर देती। कभी भक्ति भाव से सराबोर हो जाती हूं कभी प्रेम के रस में डूब जाती हूं। कभी आसमान में उड़ आती हूं। कभी जमीन में मिट्टी से बीज को अंकुरित होते देखती हूं । कभी पंछियों को पेड़ों में बैठकर आपस में बातें करते देखती हूं। कभी पत्तों को बेवजह हिलते देखती हूं। कभी धूप को छोटे से छेद से निकलते देखती हूं। कभी धूप को कोने-कोने में जाते देखती हूं। मैं खुद को इन आंखों से कानो से खुशबू से जीवन को महसूस करती हुं। खुद के जीवन को ही नहीं। पृथ्वी में जहां जहां जीवन है। उसको महसूस करती हूं। उसको लिख लेती हुं। यह मत सोचना कि मैं खाली बैठी रहती हूं। और बस यही काम करती रहती हूं । इसे पढ़कर,,,, जब भी वक्त मिलता है प्रकृति के साथ , अपने साथ , अपने अंत
रविराज 'राशू'