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MANJEET SINGH THAKRAL
जस्टिस कर्णन की आड़ लेकर प्रशांत भूषण पर कीचड़ उछालने वालों को बेहतरीन जवाब। दोनो मामले बिल्कुल अलग हैं। अंतर जाति का नहीं, पद और कार्यकलाप का है। वैसे यह नोट किया जाय कि खुद जस्टिस कर्णन ने बड़प्पन दिखाते हुए प्रशांत भूषण का समर्थन किया है। http://www.mediavigil.com/op-ed/why-there-is-comparision-between-prashant-bhushan-and-justice-karnan/ जस्टिस कर्णन की आड़ लेकर प्रशांत भूषण पर कीचड़ उछालने वालों को बेहतरीन जवाब। दोनो मामले बिल्कुल अलग हैं। अंतर जाति का नहीं, पद और कार्यकलाप
MANJEET SINGH THAKRAL
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आज के मृदुभाषी समाचार पत्र में पढ़िए Drsunilam Sunilam का आलेख - * Prashant Bhushan जैसे वकील का होना देश के लिए गर्व का विषय* *देश मे लोकतंत्र बहाली के संघर्ष को तेज करने की जरूरत* प्रशांतभूषण को दोषी करार देकर सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी पोल खोल दी है। प्रशांत जी ने समझौता करने माफी मांगने की बजाए जेल जाने का विकल्प चुना।हमारे लिए यह गर्व का विषय है।उनसे यही उम्मीद थी। देश में सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करने वाले ऐसे बहुत कम वकील है, जो जन आंदोलनों के लिए सदा उपलब्ध रहते हैं। जिनके भीतर हर अन्याय, अत्याचार और भेदभाव के खिलाफ बोलने की हिम्मत हो । एक ऐसा वकील जो लगातार न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर दशकों से मुहिम चला रहा हो । जो देश के लगभग सभी प्रमुख जन आंदोलनों के मुद्दों पर आंदोलनों का साथ क्षेत्र में जा कर देता हो। ऐसा वकील जिसने भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल बिल के आंदोलन का नेतृत्व किया हो। देश में ऐसा एक ही व्यक्ति है जिसका नाम प्रशांत भूषण है। यह पहला अवसर नहीं है, जब प्रशांत भूषण जी को प्रताड़ित किया गया किया जा रहा है। कई बार उन पर हमला किया जा चुका है। सभी तथ्य मौजूद होने के बावजूद कभी किसी हमलावर को आज तक अदालत में सजा नहीं सुनाई गई है। इसके बावजूद भी वे व्यवस्था से मुकाबला करने के लिए कमर कसे हुए हैं। अभी तक सरकार की किसी सर्वोच्च न्यायालय के बड़े वकील पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं हुई है। हाईकोर्ट के कई वकीलों को सालों से सरकार जेल में बंद किए हुए हैं। हो सकता है सरकार यह देखना चाहती है कि सरकार प्रतिक्रिया देखने के लिए इस तरह की कार्यवाही कर रही हो। सरकार की इस चुनौती को देश के सभी सजग नागरिकों द्वारा गंभीरता से लिया जाना चाहिए तथा इस स्थिति को बदलने की यह रणनीति शीघ्रतातिशीघ्र बनाई जानी चाहिए। लोकतंत्र भारत में अंतिम सांसे गिनता दिखलाई पड़ता है । इसलिए इस मुद्दे को किसी व्यक्ति पर हमले के तौर पर नहीं भारत की न्याय व्यवस्था एवं संविधान पर हमले के तौर पर देखा जाना चाहिए मोदी सरकार ने कोरोना काल का दुरुपयोग करते हुए लोकतंत्र को किस हद तक सीमित कर दिया है ,यह उसका एक नमूना है। परंतु दुनिया ने बड़े बड़े तानाशाहों को देखा है ।आज़ाद भारत ने आपात काल भी भोगा है। अंततः लोकतंत्र और जनता की जीत हुई है। अब तक मोदी सरकार ने तमाम नागरिकों को जेल भिजवाया । छुट पुट विरोध से अधिक कुछ नहीं हुआ । लेकिन प्रशांत भूषण जितने दिन जेल में रहेंगे देश मे लोकतंत्रवादीयों का विरोध जारी रहेगा। सर्वोच्च न्यायालय की गलतफहमी है कि इस कार्यवाही प्रशान्त भूषण या उनके समर्थक डर जाएंगे। अवमानना की कार्यवाही की ही वकीलों और सरकार के विरोधियों को भयभीत करने के उद्देश्य से की गई है। परन्तु इतिहास बतलाता है न दमन ज्यादा दिन चलता है और न ही तानाशाही स्थायी होती है। जेल से तो प्रशांत जी निकलेंगे ही और इतनी ताकत लेकर निकलेंगे जिससे मोदी सरकार की तानाशाही पर पूर्ण विराम लगेगा और आने वाले समय मे सर्वोच्च न्यायालय को संवेधानिक जिम्मेदारीयो के निष्पक्षता पूर्वक निर्वहन के लिए मजबूर होना पड़ेगा। आज के मृदुभाषी समाचार पत्र में पढ़िए Drsunilam Sunilam का आलेख - * Prashant Bhushan जैसे वकील का होना देश के लिए गर्व का विषय* *देश मे लोक