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Lata Sharma सखी
जिंदगी गुजरती है कई सारे स्टेशनों से, कुछ में हम ठहरते हैं कुछ हममें ठहर जाते हैं, सुनो! तुम मेरा ऐसा ही कोई स्टेशन हो, जिसमें मैं जरा ठहरी तो वो मुझमें ठहर गया। ©सखी ©Lata Sharma सखी #स्टेशन
Neelam bhola
बचपन,जवानी,बुढ़ापा जैसे स्टेशन हो कोई, रेलवे स्टेशन!! या रेलवे स्टेशन में सिमट आये हो ये दौर जिंदगी के, सुबह का स्टेशन मानो नन्हा बच्चा हो कोई, कभी शांत,कभी चाय चाय की किलकारी सा गूंजता, सौंधी सी खुशबु लिये, बच्चे कि हँसी सा, कभी खिलखिलाता,कभी चुपचाप स्टेशन, बचपन का सा स्टेशन,हल्के से आँख मूँदता-खोलता सा दिखता है, न आने-जाने की होड़ कहीं, आदमी ना भागता सा,ज़रा रुका सा दिखता है, दोपहर होते होते स्टेशन पे भीड़ बढ़ती जाती है, जवानी की ही तरह जिम्मेदारी हर तरफ नज़र आती है, कहीं कूली,कहीं चाय,कहीं लोगों का सामान, जवानी का पहर है, ये है मुश्किल,है नही आसान, चारों तरफ रिश्तों और जिम्मेदारियों की तरह लोग नज़र आते है, ना जाने कहाँ जाते है,कहाँ से लौट के आते हैं, कुछ न आने के लिये वापिस, कुछ न जाने के लिये आते है, जवानी भी कुछ इसी तरह के पहलुओं को समेटें है, कहीं खड़े हैं लोग,कहीं बेबस से लैटे हैं, बुढ़ापे की तरह ही ढलती है हर एक शाम स्टेशन पर, कुछ लोगों के लिये खास, कुछ लोगों के लिये आम स्टेशन पर, बुढ़ापे की तन्हाई की तरह, स्टेशन की शाम भी तन्हा होती जाती है, स्टेशन पे अब गाड़ी भी कुछ कम ही आती हैं, न कूली,न चाय न साजो-सामान होता है, बुढ़ापे की ही तरह तन्हा स्टेशन, हर रोज़ आम होता है।।।। ©Neelam bhola स्टेशन
Nidhi Pant
लंबे अरसे से घर में रहते हुए जब अचानक बाहर निकलो तो लगता है दुनिया कितनी आगे निकल चुकी है। और हम वहीं के वहीं हैं। पर सच तो ये है कि जो दुनिया हम देख रहे हैं वो भी घर के अंदर जाने का ही इंतज़ार कर रही होती है।अंदर होते हैं तो बाहर जाने के बारे में सोचकर बाहर निकल आते हैं और बाहर से अंदर जाने की राह देखते रहते हैं। घर को हम सबने एक स्टेशन मान लिया है, जो आने और जाने के बीच एक सुस्ताने भर की जगह है। कभी अगर शहर बदल लिया तो स्टेशन भी बदल जाता है।दूसरी जगह जाकर भी वो घर नहीं बन पाता।उसी तरह दुनिया वहीं की वहीं है बस चेहरे नए हैं। हम भी वहीं हैं और दुनिया भी।😊 #स्टेशन
Hindi poem the heart of nation
गुड़िया हम बाजार से गुड़िया लाते थे, वो हमें ही गुड़िया समझते थे जब दूर कहीं मेला लगता, तो कंधे चढ़कर जाते थे उन कंधों के किस्से तो , भूले नहीं भुलाते है, गर और कोई गुड़िया देखू, तो पुराने याद नए हो जाते हैं। गुड़िया
दीप बोधि
गुड़िया तूने गलती कर दी शमशान में जाने। ना-ना-ना ये तो बहाने हैं बात दबाना जाने।। पूजारी था फिर भी मिली पास उसके शराब, हां-हां धर्म का ठेकेदार था , हां धार्मिक नवाब, पूजा का भोग देवता को चढाया होगा, जाग गया उसका देवत्व फिर पोर्न देखा होगा, तुझे तो प्यास थी ठंडे पानी की, नहीं जानती होगी उसकी हैवानी की, उसने बहलाया थोड़े है, धमकाया है, अरे!शव मूंह ओंधे जलता पाया है, गुड़िया,बची क्या है निशानी तेरी। -सिर्फ दो पांव, नहीं है देह तेरी। इन पांवो के साथ कभी मत आना इस देश में!! -क्योंकि गुड़िया पैदा होना अभिषप्त है इस देश में!! ©Deep Bodhi गुड़िया
Komal kumari
पता नही क्या रिश्ता हैं तुमसे जीने की वजह भी तुम, जीने की तलप भी तुमसे ही है। ©Guriya kumari #गुड़िया