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MR VIVEK KUMAR PANDEY

#पीयासलागे पंछी पानी पिए जाय विवेक वाणी.२

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Writer Mr Vivek Kumar pandey
विवेक वाणी
"पियास लागे पंछी पानी पिए जाय
रास्ते देखी मंज़िल की और जाए".।
     #पीयासलागे पंछी पानी पिए जाय विवेक वाणी.२

Drx. Mahesh Ruhil

B@(#-२+२-

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तू ये ना समझना म टूटी हू
अपनी किस्मत से रूठी हूं
चाहत देने कोई फिर आया था 
डर था पहले की तरह धोखे का
इसलिए खुद से पीछे छुटी हूं B@(#-२+२-

Ganesh Singh Jadaun

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Manish

#####२&₹@_&₹:'ss#५३१५५२

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SHASHI KANT SHARMA

मै मजदूर हूं _#-&२-#₹+२--₹ #Labourday

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#LabourDay  कैसी भी हो परिस्तिथि टकरा जाता हुँ
मैं मजदूर हुँ ,हर हाल में मुस्कुराता हुँ

थक जाये बदन,पर हाथ रुकते नहीं हैं
पड़े पैर में छाले,पर पैर थकते नहीं हैं
हजारों जिम्मेदारियां लाद कर भी
हर रोज़ ज़माने का बोझ उठता हुँ
कैसी भी हो परिस्तिथि टकरा जाता हुँ
मैं मजदूर हुँ ,हर हाल में मुस्कुराता हुँ

दर्द होता है ,पर किसी से कहते नही है 
करते हैं मेहनत,पर कहीं झुकते नही हैं
थमने लगती हैं ये सांसे  फिर भी
मैं बड़े बड़े पर्वत को चढ़ जाता हूँ
कैसी भी हो परिस्तिथि टकरा जाता हुँ
मैं मजदूर हुँ ,हर हाल में मुस्कुराता हुँ मै मजदूर हूं _#-&२-#₹+२--₹

SHASHI KANT SHARMA

#&@&#&&#-#-#&२-#--#

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हम भी उसी के दीवाने
उसके नाम का नशा करते हैं

बैठ जाते हैं जब ध्यान में
तो सुबह से शाम कर देते हैं #&@&#&&#-#-#&२-#--#

sachin chaturvedi

#२

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          (कालाबाजारी)
वे लोग जो मानवता पर कलंक है...
जिनमें मनुष्यों जैसा न कोई अंश है...
जिनको जरुरी है अशर्फी, दूसरे की जान से...
वे भी सम्भल से‌ जाएंगे...

 ये दिन भी गुजर जाएंगे... #२

guru ghantal

#२

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असल में वही जीवन की
चाल समझता है जो सफर
में धूल को गुलाल समझता हैं✍️❤️ #२

उमा जोशी

#विधाता_वृत्त_(२-८-४, २-८-४) #Poetry

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विरघळून गेली सारी दुःखे खाऱ्या पाण्यात
ओठावर फुलले हसणे अन सुख दिसले डोळ्यात 
मी वळून पुन्हा तिकडे पाहणार नाही आता
सुरुवात नव्याने केली मी आहे जाता जाता

देऊन टाकले सगळे मी कपडे ते विरलेले
सोबत सगळ्या आठवणी अन रडगाणे विटलेले  
ती जुनीपुराणी ओळख सांभाळावी का आता 
सुरुवात नव्याने केली मी आहे जाता जाता

तोच स्पर्श जाणवतो आजही तुझ्या नजरेतुन
तू विसरलास का नाही त्या अस्तित्वाची खूण
ही नजर खालती जाते का जुनी आठवण  येता
सुरुवात जरी ही केली मी आहे जाता जाता

विसरून देत का नाही हा समाज माझा पेशा
भुलतात जरी या इथले अंगावरच्या त्या वेशा
बोचतात नजरेमधले त्यांच्या सवाल जाता येता
सुरुवात जरी ही केली मी आहे जाता जाता

पण हार मानणे नाही हे बजावलेले आहे
मी मनास माझ्या इतके कणखर केलेले आहे
मारोत कितीही सारे मज येता जाता लाथा
सुरुवात नव्याने केली मी आहे जाता जात
---२७/१०/२०२२ @ १३:२८

©उमा जोशी #विधाता_वृत्त_(२-८-४, २-८-४)

D.kumar

##२ जख्म,,,,,,

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मै क्या जानूं दर्द की कीमत,,
ये तो मेरे अपने,,,
मुफ़्त में दिया करते हैं।। ##२ जख्म,,,,,,
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