Find the Latest Status about ऐयाशी जीवन from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, ऐयाशी जीवन.
Sheera Singh
मेरे सारे दर्दों की कहानी अभी अधुरी है मुझे मोहब्बत कर के पता लगा अय्याशी बहुत ज़रूरी है ©Sheera Singh #Books अयाशी जरूरी है
नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
जीव और जीवन जीव वह अलौकिक ईश्वरीय अंश है जो शरीर को गति प्रदान करता है। जब तक वह अलौकिक ईश्वरीय अंश शरीर में रहता है तबतक शरीर को जीवित और नहीं रहने पर मृत माना जाता है। किसी भी शरीर में जीव के आने से लेकर जीव का शरीर से जाने तक के काल को जीवन कहा जाता है। चुकी जीव ईश्वर का एक छोटा सा अंश है इसीलिए वह अमर है और जीव के बिना शरीर का अस्तित्व मिट जाता है इसलिए उसे नश्वर कहा जाता है। सही मायने में देखा जाय तो शरीर सुख और दुःख भोगने का साधन है। कष्ट या सुख शरीर को नहीं जीव को होता है। कर्मों के हिसाब से ही जीव सुख या कष्ट भोगता है। जीव को आत्मा भी कहा जाता है और अनंत आत्माएं जिस में विलीन हो जाती हैं उसे परमात्मा कहा जाता है। ©नागेंद्र किशोर सिंह #जीव और जीवन
Neeraj Vishwkarma
जीवन कितना छोटा सा लगता है जीवन की इन बड़ी बड़ी जरूरतों के आगे । जीव का जीवन
अदिती मनुलालजी अग्रवाल श्रीकृष्णर्पनमस्तु ॐ शांति शांति ॐ
Deepak Kurai
गौतम बुद्ध यह एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ। इनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। 29 वर्ष की आयुु में सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए । वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए। कई ग्रंथों में यह मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है. ©Deepak Kurai #BuddhaPurnima2021 गौतम बुद्ध की जीवनी #जीवन
Rajni Sardana
हाँ.. पानी की मुझे है तलाश और मन में है अभी भी विश्वास अभी भी दुनियाँ में इंसानियत है जिंदा सुनो.. भर रखना एक प्याला पानी का बेहाल है प्यास से हर परिंदा ©Rajni Sardana #परिंदा #paani #प्यास #इंसानियत#जीव #जीवन
शिव झा
17 जुलाई/जन्म दिवस *भारतीयता के सेतुबंध बालेश्वर अग्रवाल* भारतीय पत्र जगत में नये युग के प्रवर्तक श्री बालेश्वर अग्रवाल का जन्म 17 जुलाई, 1921 को उड़ीसा के बालासोर (बालेश्वर) में जेल अधीक्षक श्री नारायण प्रसाद अग्रवाल एवं श्रीमती प्रभादेवी के घर में हुआ था। बिहार में हजारीबाग से इंटर उत्तीर्ण कर उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.एस-सी. (इंजिनियरिंग) की उपाधि ली तथा डालमिया नगर की रोहतास इंडस्ट्री में काम करने लगे। यद्यपि छात्र जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आकर वे अविवाहित रहकर देशसेवा का व्रत अपना चुके थे। 1948 में संघ पर प्रतिबंध लगने पर उन्हें गिरफ्तार कर पहले आरा और फिर हजारीबाग जेल में रखा गया। छह महीने बाद रिहा होकर वे काम पर गये ही थे कि सत्याग्रह प्रारम्भ हो गया। अतः वे भूमिगत होकर संघर्ष करने लगे। उन्हें पटना से प्रकाशित ‘प्रवर्तक पत्र’ के सम्पादन का काम दिया गया। बालेश्वर जी की रुचि पत्रकारिता में थी। स्वाधीनता के बाद भी इस क्षेत्र में अंग्रेजी के हावी होने से वे बहुत दुखी थे। भारतीय भाषाओं के पत्र अंग्रेजी समाचारों का अनुवाद कर उन्हें ही छाप देते थे। ऐसे में संघ के प्रयास से 1951 में भारतीय भाषाओं में समाचार देने वाली ‘हिन्दुस्थान समाचार’ नामक संवाद संस्था का जन्म हुआ। दादा साहब आप्टे और नारायण राव तर्टे जैसे वरिष्ठ प्रचारकों के साथ बालेश्वर जी भी प्रारम्भ से ही उससे जुड़ गये। इससे भारतीय पत्रों में केवल अनुवाद कार्य तक सीमित संवाददाता अब मौलिक लेखन, सम्पादन तथा समाचार संकलन में समय लगाने लगे। इस प्रकार हर भाषा में काम करने वाली पत्रकारों की नयी पीढ़ी तैयार हुई। ‘हिन्दुस्थान समाचार’ को व्यापारिक संस्था की बजाय ‘सहकारी संस्था’ बनाया गया, जिससे यह देशी या विदेशी पूंजी के दबाव से मुक्त होकर काम कर सके। उन दिनों सभी पत्रों के कार्यालयों में अंग्रेजी के ही दूरमुद्रक (टेलीप्रिंटर) होते थे। बालेश्वर जी के प्रयास से नागरी लिपि के दूरमुद्रक का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। तत्कालीन संचार मंत्री श्री जगजीवन राम ने दिल्ली में तथा राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने पटना में इसका एक साथ उद्घाटन किया। भारतीय समाचार जगत में यह एक क्रांतिकारी कदम था, जिसके दूरगामी परिणाम हुए। आपातकाल में इंदिरा गांधी ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ पर ताले डलवा दिये; पर बालेश्वर जी शान्त नहीं बैठे। भारत-नेपाल मैत्री संघ, अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा अन्तरराष्ट्रीय सहयोग न्यास आदि के माध्यम से वे विदेशस्थ भारतीयों से सम्पर्क में लग गये। कालान्तर में बालेश्वर जी तथा ये सभी संस्थाएं प्रवासी भारतीयों और भारत के बीच एक मजबूत सेतु बन गयी। वर्ष 1998 में उन्होंने विदेशों में बसे भारतवंशी सांसदों का तथा 2000 में ‘प्रवासी भारतीय सम्मेलन’ किया। प्रतिवर्ष नौ जनवरी को मनाये जाने वाले ‘प्रवासी दिवस’ की कल्पना भी उनकी ही ही थी। प्रवासियों की सुविधा के लिए उन्होंने दिल्ली में ‘प्रवासी भवन’ बनवाया। वे विदेशस्थ भारतवंशियों के संगठन और कल्याण में सक्रिय लोगों को सम्मानित भी करते थे। जिन देशों में भारतीय मूल के लोगों की बहुलता है, वहां उन्हें भारतीय राजदूत से भी अधिक सम्मान मिलता था। कई राज्याध्यक्ष उन्हें अपने परिवार का ही सदस्य मानते थे। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के प्रतिरूप बालेश्वर जी का न निजी परिवार था और न घर। अनुशासन और समयपालन के प्रति वे सदा सजग रहते थे। देश और विदेश की अनेक संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया था। जीवन का अधिकांश समय प्रवास में बिताने के बाद वृद्धावस्था में वे ‘प्रवासी भवन’ में ही रहते हुए विदेशस्थ भारतीयों के हितचिंतन में लगे रहे। 23 मई, 2013 को 92 वर्ष की आयु में भारतीयता के सेतुबंध का यह महत्वपूर्ण स्तम्भ टूट गया। (संदर्भ : हिन्दू चेतना 16.8.10/प्रलयंकर 24.5.13/पांचजन्य 2.6.13) #जीवन #जीवनी #साहित्य #भारतीय #इतिहास #राष्ट्रीय #राष्ट्रीय_स्वयंसेवक_संघ #IndiaLoveNojoto