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parmod bagri
हरे वृक्ष छांव के काम आए और सूखे तो जलाने के काम आए सब कुछ फ्री में दिया इन्होंने फिर फिर भी कितना खुदगर्ज है इंसान ना इनको को हरे कटवाने से बाज आए Parmod bagri सेव ट्री
Ajay Kushwaha
हमे अपने आस पास पेड़ लगाने चाहिए ©Ajay Kushwaha #WorldEnvironmentDay ट्री
Maickal Amit
#RIPRohitSardana तरक्की का नया आयाम बनने वाला है। पेड़ो तुम्हारा कटना है जरूरी यहां ऑक्सीजन प्लांट लगने वाला है। 😭😭😭😭 क़लमकार ©Maickal Amit सेव ट्री
Vikas Sharma
पौधे बचाये और लगाये भी क्योकि उनका जरूरत हम लोगो को है उनको हमारी नही save ट्री
पूर्वार्थ
पेड़ों में जीवन पलता है... पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है। अभी समय है जागो प्यारे, स्वारथ में मत भागो प्यारे। समझो अपना जीवन हारे, कुदरत को जो किया किनारे। बिन पानी जग सुन्न हुआ, बिना हवा सब छू मंतर। ज्वाल काल की धधक उठी, सिसक रहे धरती अम्बर। पंचतत्व जो हुए प्रदुषित, सांसों का सूरज ढलता है। पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है। अपने पांवों पर कुल्हाड़ी, इतने भी मत बनों अनाड़ी। आप अगाडी मौत पिछाडी, यूं ही चलती जाती गाडी। भावों से जो भ्रष्ट हुआ, मानव के भीतर दानव। चीरहरण द्रोपदियों का, कलयुग में कितने कौरव! निज कर्मों का प्रतिफल रावण, युगों-युगों तक भी जलता है। पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है। सुख सुविधाएं खूब बटोरी, करके चोरी-सीनाजोरी। पर तेरे सब बिस्तर-बोरी, ईश्वर के हाथों की डोरी। नागफनी को पाल रहे, काट दिये तुमने जंगल। खुद अपनी कब्रें खोदी, माटी को करके दलदल। हाथ अभी तक साफ किये बस, अब तू हाथों को मलता है। पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है। क्या क्या साथ लिये जायेगा, जो बोया वो ही पायेगा। प्रकृति से जो टकरायेगा, निश्चित ही मुँह की खायेगा। कितने पर्वत काट दिये, चीख रहा कंकर कंकर। तांडव की मजबूरी में, बेबस है खुद गिरिशंकर। रक्तबीज या महिषासुर वो, वरदाता को जो छलता है। पेड़ों से योवन खिलता है, पेड़ों में जीवन पलता है ©purvarth #ट्री #लाइफ
गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश
ओस भले ढंक लें भौतिक दृश्य पर मन के भाव तो मन से देखे जाते हैं। मैं तो देख पाता हूँ और तुम।। शुभ दिन। गिरीश पोएम
Ashish Penart
उम्मीद राह बना देती है हर पत्थर में, कभी कभी मंजिल दिखाती है जुगनू की रौशनी भी। आशीष पोएम
D.M Bhosale
मुजोर मुजोर झालीय नोकरशाही उन्मत्त झालेत बाबू कुणाचाच नाही राहिला यांच्यावरती काबू काम चिमूटभर त्याला लाच खिसाभर सर्वदूर पाहिले तरी कारभार लालफिती ढेकणागत गरिबांचे रक्त सारे पिती हक्काच्या कामापायी मारावे किती खेटे तेंव्हा कुठे ७/१२ सारखा एखादा कागद भेटे जाग्यावर नसते कुणीच मोकळे असतात टेबल काय बोलावे तर प्रत्येकावरती पुढाऱ्याचे लेबल शौचालयाच्या अनुदानासाठीही द्यावी लागते लाच कुणाचीच कशी नाही यांच्यावरती टाच स्वार्थासाठी साहेबाची भांडीकुंडी घाशी हरामी साल्यांची जिंदगी अशी कशी ~DMB पोएम