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Anjali Jain
चक्रवर्ती महाराज युधिष्ठिर जिस प्रकार दाँव पर दाँव लगाए जा रहे थे, क्या वो एक चक्रवर्ती महाराज को शोभा देता था ? पितामह भीष्म, विदुर, गुरुजन, और सभी भाईयों की चिंता व व्याकुलता को उन्होंने नजरअंदाज कर दिया, क्या यहाँ भी द्रोपदी दोषी थी? अपने निहित स्वार्थों के चलते चाटुकारिता करने वाली मंडली जब व्यक्ति के इर्दगिर्द मंडरा रही होती है तो मद में अंधा व्यक्ति क्या न कर गुजरे, दुर्योधन इसका साक्षी है! यश और सफलता किस तरह सिर चढ़कर व्यक्ति को बेभान कर देती है, युधिष्ठिर इसके साक्षी हैं? धृतराष्ट्र का पुत्र मोह क्या रंग लाया? माना दुर्योधन अपमान की आग में झुलस रहा था किन्तु युधिष्ठिर को यहाँ तक पहुँचाने में तो द्रोपदी का कोई हाथ न था! महारथी भाइयों ने तो कोई सवाल ही नहीं किया! "आर्य पुत्र तो धर्म राज हैं अपनी पत्नी को तो कोई अधर्मी भी दाँव पर नहीं लगाता! वह पहले अपने आपको हारे थे या मुझे!" प्रश्न पूछने का साहस रखने वाली द्रोपदी, संपूर्ण नारी जाति का अभिमान है हाँ, जुआ खेलना तो कतई गलत नहीं था, बस द्रोपदी के शब्दों ने महाभारत करवाई! वाह! पुरुषों का महा पौरुष!! #द्रोपदी और महाभारत, भाग 2, 19.04.20
Anjali Jain
कितना सरल है घर - परिवार के झगड़ों का कारण एक स्त्री को मान लेना, अपनी कमजोरियों का इल्जाम एक स्त्री के माथे मढ़ देना? माना कि द्रोपदी ने दुर्योधन को बहुत ही अनुचित वचन कहे, बहुत अपमानित किया, ऎसा एक सुशिक्षित और सुसंस्कृत महारानी को शोभा नहीं देता, किंतु क्या इस बात से इंकार कर सकते हैं कि दुर्योधन की लालची गिद्ध दृष्टि इंद्र प्रस्थ पर पहले ही पड़ चुकी थी! अपमान की घटना से पूर्व ही! जिनकी महत्वाकांक्षाएँ प्रारंभ से ही गलत दिशा में भटक चुकी थी, उन पर नियंत्रण करने वाला कोई नहीं था बल्कि शकुनि और अंगराज तो उन्हें निरन्तर हाँक ही रहे थे! चौसर खेलने का निर्णय शकुनि पहले ही ले चुके थे अतः चौसर खेलकर षड्यंत्र पूर्वक इंद्र प्रस्थ हड़पना तो पहले ही निश्चित हो चुका था, किन्तु क्या युधिष्ठिर की कमजोर मनःस्थिति इसके लिए जिम्मेदार नहीं थी कि वे अपने भाइयों और पत्नी को दाँव पर लगा सके! क्या इसके लिए द्रोपदी उत्तरदायी थी? माना दुर्योधन के हृदय में प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही थी वह अपने अपमान का बदला किसी भी तरह से लेता लेकिन पूरे महाभारत के युद्ध के लिए द्रोपदी को उत्तर दायी ठहराना अहंकारी व सामन्ती मनोवृत्ति का परिचायक है जो सचमुच निंदनीय है #द्रोपदी और महाभारत, भाग 1, 19.04.20
Pratibha Singh
(तुम और मैं भाग -5) जानता हूं मैं सुकून की मेरी यें तलाश नाकाफी है प्रेम करने वालो को सुकून कहां और अगर होता भी है तो मुझे उसका अहसास नहीं तुम्हारे प्रेम के विशाल समंदर में उतरा मगर तैरना सीख न पाया और डूब गया चापलूसी से रिश्ता नहीं रहा कभी तो किसी ने बचाया भी नहीं प्रेम कोई वस्तु नहीं जिसे फिर पसंद कर लिया जाये इसीलिए मैं प्रैक्टिकल हो नहीं पाया और आज भी बिलकुल वैसा ही हूं बस बचपना खो दिया मैंने खुल कर खिलखिलाये जमाना बीत चुका है.. जैसे बचपन में चवन्नी न मिलने पर ऐसा लगता था जैसे कोई मुझे प्यार ही नहीं करता हो आज भी वैसा ही हूं.. . भाग -5
Rakhi Raj
पंखुड़ी (भाग 5) खाना खा कर काव्य अपने कमरे मे आ जाती है. खट खट.. दरवाज़े पर आवाज आती है "आ जाइये भैया "काव्य कहती है वेद.. काव्य की तरह की उस सामने वाली खिड़की को देखने लगा आते ही उसे पंखुड़ी से पहली नजर वाला प्यार हो रहा था काव्य को ये दिख रहा था..भैया उसका नाम पंखुड़ी है..उसके साथ.. वेद का फोन बजा ओर वो अपने कमरे मे चला गया || अगली सुबह काव्य उठ कर खोलती है अपनी खिड़की तो पंखुड़ी वहीं ख़डी उसका इंतजार कर रही थी उसके माथे पर चोट के निशान थे वो नम आँखों से मानो पंखुड़ी से मदद मांग रही थी |||||| काव्य दौड़ कर हांफते हुए माँ के पास गयी "कोनसा बुरा सपना देख लिया जो हाँफ रही है " हकीकत भी तो बुरी हो सकती है माँ... माँ पंखुड़ी के साथ गलत हो रहा है क्यों? क्या हुआ उसे (काव्य की माँ ने पूछा ) वो रमेश उसके साथ जबरदस्ती करता है माँ, वो उस दिन रो रही थी ओर आज उसके माथे पर चोट है "वो उसका पति है उसे जबरदस्ती न कहते"(काव्य की माँ न जवाब दिया ) "जबरदस्ती तो जबरदस्ती होती है न माँ चाहे पति करे या कोइ अजनबी " वो पति है उसका उसे जबरदस्ती नहीं समर्पण कहते है (काव्य की माँ ने कहा ) "समपर्ण"...... (काव्य ने आश्चर्य से कहा ) समर्पण जबरदस्ती नहीं होता माँ उसमे मंजूरी होती है.. समर्पण में अधरों को चूमने से पहले चूमा जाता है मन को ओर उससे भी पहले समझा जाता है एक दूसरे को ली जाती है मंजूरी... बिना स्वकृति के समर्पण नहीं होता बस कर...सवालों के बवंडर पर विराम लगते हुए उसकी माँ ने कहा "शर्म कर थोड़ी ममैं सहेली नहीं हूँ तेरी ये बातें अपनी सहेलियों से किया कर माँ कभी तो मेरी सहेली बन जाया करो माँ बेटी का रिश्ता ओर प्यारा हो जायेगा माँ... #पंखुड़ी भाग 5
Priya Anand jha
दुनिया की उन घूरती नजरो से तुम मुझे बचा लेना। कही सहम जाऊँ तो मुझे संभाल लेना। इश्क को मेरे हर हाल में सरेआम स्वीकार लेना। मेरे अनकहे एहसासो को तुम बिन कहे ही पहचान लेना। कभी रूठो तुमसे तो खुद से ही मना लेना। और जब तुम मुझसे रूठो तो खुद - से - ही बता देना। इंतजार भाग -5