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Ashok Ugharejiya
मां के आंचल में पले, मां की उंगली पकड़ कर चले। मां ने दुनिया दिखाई, मां ने ही तो बोली सिखाइए ! मां ने हमें झूला झुलाया , मां ने ही हमें निवाला खिलाया ! मां तो है जिसने हमें पढ़ाया , मां ने ही हमें आगे बढ़ाया । मां का कर्ज है इतना, गगन में तारे जितना । नहीं मांगती कर्ज लालन-पालन का, तभी तो कहीं लाती है वह मां ! ©Ashok Ugharejiya क्या है मां ? मां की कविता अशोक उघरेजिया #माँ #मां #कविताएं
जिंदगी का जादू
छाया से दूर हुआ तो आंचल का मूल्य मैं जाना जब तपी ये दिल की धरती बादल का मूल्य मैं जाना वो छाया वो बदली बस एक जगह मिलती है सब मिलता दूर शहर में बस मां ही नहीं मिलती है पावस रजनी में जुगनू भट्ट के जैसे जंगल में पूछे राम जी वोन से कैसे हैं सब महल में वन में ना कोई दुख है पुण्य ज्योति जलती है देव मुनि सब मिलते बस मां ही नहीं मिलती है @गौतम माँ पर कविता