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Shubham Tripathi
गला घोंट दिया अरमानों का, अरमानों के ही खातिर तुमने सालों का प्रेम त्याग दिया, क्षणिक प्यार के खातिर तुमने तोड़ दिए वो सारे बंधन,मर्यादा और आस की लाज गंवा दी, बापू के पगड़ी और विस्वास की बचपन में जब रोती थी, तब बापू ही पुचकारा करते खुद के लिए नहीं कुछ करते,पर तेरे हर दुःख को हरते माता ने भी खूब कष्ट उठाये,उनके भी कुछ ख्वाब थे वो गीले में सोई सालों, सूखे में तो आप थे लात लगा दी उस अहंकार को, बापू को जो था तुममे अधिकारों का हनन कर लिया, अधिकारों के खातिर तुमने गला घोंट दिया अरमानों का, अरमानों के ही खातिर तुमने कलयुगी बेटी
Raone
कलयुगी इंसान गर हो रहमत ख़ुदा की, तो ज़िन्दगी भी सँवर जाती । बंजर सी धरती, हरियाली सी लहलहाती ।। ये तो ख़ुदा है, जो इक सजदे में सब दे जाता । दर पे जो इसके रखता क़दम, खुदा उसे अपनाता ।। इंसानी बातों, ना उनके जुबां का भरोसा । जान दे दो तो भी, जान लेकर राज़ी ना हो पाता ।। राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी कलयुगी इंसान
ehsanphilosopher
कलयुगी कथा-2 भावना जगी है। हुलबुलाइए मत, कोई युवती नहीं साहिब, मन की बात है। पर क्या करें कुत्ते की पूंछ से साहिब, सीधा होना विरासत में नहीं। सुधरना कलंक है। बीमारी तो है साहिब। छुआछूत तो लाडला लैंडा है हमारा। अरसों से बरसों की उपज है, तो पाले रहिए। घड़ी बिना बैटरी के भी ससर रही है, समय का लूट तो जिंदगी का लूट है साहिब। कभी अपना टाइम भी आएगा। टीवी, मिडिया का फोटो इतना बाबला नहीं। अपने बचने का उपाय सरिया रहें है साहिब। ई लगा लो, उ दिखा दो, दूरी बना लो, पर किस -किस से मुर्दों से या जिदों से। डर से इतना डर गए हैं कि डर से डरा रहे हैं या डर रहे हैं। चाल तो सुधारिए साहिब, चलन भार मैं जाए। बिना सहयोग सांस लेना भी मुश्किल है, अगर फेफड़े और नाक के बीच ठन गई। बुझाया की बुझा गएं! कलयुगी कथा
Chintoo Choubey
ये अजीब कलयुगी दौर है जहां पर जो शिखर पर है वो भी चोर है, और जो कंगाली में है वो तो चोर है ही, जो लुटा हुआ है वो भी चोर है, जो लूट रहा है वो भी चोर है, किस किस को अपराधी माने यहाँ? यहाँ गरीब से ज्यादा अमीर चोर है, लेकिन् गरीब ज्यादा चोर है, कानून भी नहीं काम का, बिकता सब मोल है, भगवान का अब सहारा क्यूँ अब् तक वो मौन हैं, अजीब ये कलयुगी दौर है। कलयुगी दौर
ehsanphilosopher
कलयुगी कथा-2 भावना जगी है। हुलबुलाइए मत, कोई युवती नहीं साहिब, मन की बात है। पर क्या करें कुत्ते की पूंछ से साहिब, सीधा होना विरासत में नहीं। सुधरना कलंक है। बीमारी तो है साहिब। छुआछूत तो लाडला लैंडा है हमारा। अरसों से बरसों की उपज है, तो पाले रहिए। घड़ी बिना बैटरी के भी ससर रही है, समय का लूट तो जिंदगी का लूट है साहिब। कभी अपना टाइम भी आएगा। टीवी, मिडिया का फोटो इतना बाबला नहीं। अपने बचने का उपाय सरिया रहें है साहिब। ई लगा लो, उ दिखा दो, दूरी बना लो, पर किस -किस से मुर्दों से या जिदों से। डर से इतना डर गए हैं कि डर से डरा रहे हैं या डर रहे हैं। चाल तो सुधारिए साहिब, चलन भार मैं जाए। बिना सहयोग सांस लेना भी मुश्किल है, अगर फेफड़े और नाक के बीच ठन गई। बुझाया की बुझा गएं! कलयुगी कथा