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tatya luciferin
मौसम की बेरूखी तू यूं गम न कर तेरे गुलाब जामुन की चासनी हैं हम । ©tatya luciferin #तात्या #tatyaluciferin #तात्या #nojoto2021 #vacation
tatya luciferin
इश्क में धोखा खाई किताब हैं ये हर मौसम में रोई किताब हैं ये दर्द में सहमी इसकी हर अंगड़ाई, उझड़े हुवे ख़्वाब की क़िताब हैं ये – संतोष तात्या ©tatya luciferin #तात्या #tatyaluciferin #TATYA #writing
Usha bhadula
उम्मीद की किरण लगाए बैठे वर्षों से झोक दिया खुद को उसे संवारने में सपने अपने भूलके सबकुछ लगाया उसके सपनों को पंख लगाने में जिए जा रहे थे हम यूँ ही उसके सहारे में पंख लगे सपनों को उसके उड़ चला अपना अलग जहाँ बनाने को हम देखते रहे क्षण भर भी ना लगा उसे ओझल होने में.... ©Usha bhadula #thepredator घरोंदा
Vikas samastipuri
शीर्षक-आंवला वृक्ष की हत्या आठ वर्ष बाद अपने स्कुल गया था नही था अब वो आंवला का वृक्ष जिसके नीचे थे मास्टरजी पढ़ाते जिसकी छाया हमारी शिर का छाता हुआ करती थी धूप रहें या हल्की बारिश हो गर्मी हो या सर्दी हो बैठ निचे जिसके हम सब पढ़ते थे हवा में एक डाल जिधर टूट जाती थी उधर धूप में छांव न होती थी लगा थोरा बैठ जाता उसकी ठंडी छांव में नही देख मन व्याकुल हो उठा कर दी किसी ने हत्या उसकी अब वो ठंडी छांव कॉंहा है अब वो ठंडी छांव कॉंहा है। कवि कुमार विगेश बड़गाॅव(बिहार) ©Kavi Kumar Vigesh वृक्ष की हात्या #Trees
Vikas samastipuri
हम मानव को एक साथ है संभलना हरे वृक्ष को कभी न कटबाना जितनी हुई है करोना की संख्या उत्नी वृक्ष हमे है लगाना। कवि विगेश बिहार ©Kavi Kumar Vigesh वृक्ष की हात्या #Nodiscrimination
tatya luciferin
न वफ़ा न दफा में रहे हम कुछ दूर चलने में रहे हम निभाने का दौर उसका भी था धोखे में उलझे रहे हम –संतोष तात्या ©tatya luciferin #तात्या #TATYA #tatyaluciferin #Goodevening
tatya luciferin
दुनियां के लिए में जोकर हूं लेकिन परिवार के लिए तो पूरी दुनियां हूं सिक्कों के लिए मुझे उछलना– कूदना पड़ता हैं दो– तीन जोड़ी कपड़ों से पूरा खेल करता हूं । सबको हसाता हूं मेरे चेहरे के पीछे कई राज हैं छुपे खुशी को छोड़ सब हैं मेरे कवि संतोष तात्या ©tatya luciferin #TATYA #tatyaluciferin #तात्या #Joker
Gaurav's write
एक बाक्या लिखा है इन लहरों पर बिछड़ी रूह ने समंदर के गहनाते शोर का... गर मिले किनारा तो पूछूँ कोई आया था क्या मेरे जाने के बाद, उठा कर रेत पूछा था पता किसी ने... क्या उसने भी फेंके थे मिटटी के ढेले दरिया-ए-नील की कोख में, छुआ था वो पत्थर जिसे घिसते नाम लिखते पड़ गये हैं छाले हाथों में... -Gaurav iit #बाक्या #gaurav_iit #Nojoto #nojotopoetry #nojotohindi