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Arora PR
सूखे ह्रदय की बंजर भूमि. आंसुओ की बूंदो से तर तौ हुई लेकिन मुझे तौ प्यार के अनमोल बीज बोने थे. उस पर कैसे बोऊँ ? उसके लिए उन्नत उर्वरक मुझे अभी तक मिले नही ©Arora PR उन्नत उर्वरक
Parasram Arora
विचारो के उम्दा उर्वरक पाकर शब्द जीवंत हो जाते है लेकिन उन विचारों के उन्नत बीज़ प्रतिक्षा कहाँ कर पाते है वे तो कंठ का सानिध्य पाकर मुखरित होनलगते है यधपि हर मौसम उनके खिलने के लिए अनुकूल है फिर भी यह तय है क़ि विचारो के उर्वरक अगर ज्यादा संवेनदशिल हुए तो वे आग उगलने मे भी अपनी सार्थकता सिद्ध कर सकतेहै ©Parasram Arora विचारों के उर्वरक #mask
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
लगाई आग पत्तों में , जली है उर्वरक देखो । हुआ है ये शहर दूषित , उधर उठता धुआँ देखो ।। अगर अब नष्ट हो फसलें , लगाओं आग मत उसमें । बना कम्पोस्ट तू उससे , उपज फिर और ले उसमें ।। बचातें हैं नहीं ये जल , सुनों ये फैक्ट्रियां वाले । निकाले स्वच्छ जल को ये ,करे दूषित सभी नाले ।। कमाई और बढ़ातें हैं , घटा कर खर्च के साधन । बढ़े उत्पाद बस इनका , नहीं करते नियम पालन ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR लगाई आग पत्तों में , जली है उर्वरक देखो । हुआ है ये शहर दूषित , उधर उठता धुआँ देखो ।। अगर अब नष्ट हो फसलें , लगाओं आग मत उसमें
Upendra Dubey
जिले में 2600 टन यूरिया के प्रथम रैक हुआ प्राप्त किसानों में आई खुशी की लहर। सिंगरौली कलेक्टर श्री राजीव रंजन मीना के निर्देश के परिपालन में एवं उप संचालक कृषि आशीष पाण्डेय के लगातार प्रयाशों के फलस्वरूप एनएफएल कम्पनी के यूरिया का बरगवॉ रैक प्वाइंट पर आगमन हुआ जिससे जिले को 2600 टन यूरिया प्राप्त होगी जैसे ही यह जानकारी हुई की बरगवॉ रैक प्वाइंट पर यूरिया 2600 टन आई है किसानों ने अपनी खुशी जाहिर किया वही सांसद रीती पाठक विधायक रामलल्लू वैश्य ने किसानों को आगामी खरीफ सीजन की फसल के लिए बधाई दी साथ ही किसानों को उर्वरक का उचित प्रयोग करने की सलाह दी गई । विदित हो कि कलेक्टर श्री मीना के द्वारा बैठकों के दौरान सहकरिता एवं कृषि विभाग के अधिकारियों को इस आशय के निर्देश दिये गये थे कि जिले में उर्वरक की आपूर्ति लगातार बनी रहे एवं कृषकों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो । जिसके परिपालन में आज जिले को 2600 टन यूरिया प्राप्त हुई । ©Upendra Dubey जिले में 2600 टन यूरिया के प्रथम रैक हुआ प्राप्त किसानों में आई खुशी की लहर। सिंगरौली कलेक्टर श्री राजीव रंजन मीना के निर्देश के परिपालन मे
Sunita D Prasad
#शब्दों का कौमार्य..... यह शब्दों का सौंदर्य रहा कि हर नए वाक्य पर उनका कौमार्य यथावत रहा। इधर मैं कविता की वे अंतिम पंक्तियाँ रही जिन्होंने उसके प्रारब्ध के संग पूर्ण निर्वाहन किया। मैंने इच्छाओं की उर्वरक भू पर पाँव जमाते हुए स्नेह की दृंढ़ता को थामना चाह पर इच्छाएँ वजनी निकलीं। मेरे मुखमंडल पर विग्रह वेदना का प्रतिबिंब ठहरता इससे पूर्व एक समृद्ध संतुष्टि का आवरण स्वेच्छा से ओढ़ लिया दुःख की तुलना में सुख अकिंचन रहे पर अस्तित्वहीन नहीं जीवन में प्रेम तब उद्धृत हुआ जब वह लगभग परिभाषा विहीन हो चुका प्रतीक्षित अनुभूतियाँ भाषा के अभाव में अनर्थ सिद्ध हुईं पूरे नाट्यक्रम में अपने संवादों को कंठस्थ कर नेपथ्य में प्रविष्टि की प्रतीक्षा करती रही परंतु हम सभी अस्थाई दृश्यों के अस्पष्ट पात्र ही साबित हुए। जीवन अपनी गति में चला दृश्यों संग पात्र बदलते गए पर कुछ प्रतीक्षाएँ कभी समाप्त नहीं हुईं जहाँ दुनिया वृताकार रही वहीं प्रेम सरल रेखा समान संभवतः तभी वृत की गोलाई कभी नाप ही नहीं पाई!! #शब्दों का कौमार्य..... यह शब्दों का सौंदर्य रहा कि हर नए वाक्य पर उनका कौमार्य यथावत रहा।
Vandana
अन्न का दाना एक अन्न के दाने में होती कितनी जान पूरा एक पौधे का हो जाता निर्माण,,,,,,,, कई बीज उभर आते कई असंख्य बीज और जन्म जाते,,,,,,,,, कई सभ्यता आई
रजनीश "स्वच्छंद"
मैं गेंहूँ की बाली हूँ।। मैं गेंहूँ की बाली हूँ, हर खेतिहर की हरियाली हूँ। तेरी भूख मिटाने को, रोटी भरी मैं थाली हूँ। आज हरी हूँ, पर याद है मुझको, मुझको बोने से पहले, वो किसान क्यूँ रोया था। हल से हुआ श्रृंगार धरती का, पर पानी नहीं था खेतों में, कैसे उसने मुझको बोया था। गर्मी में हल पे हाथ रखे, दो बैलों के संग, धरती की मांग सजाया था। पतली उभरती क्यारियों में, डाल पसीना अपना, उसने मुझे उपजाया था। किसने उसकी बात सुनी, अर्धनग्न वो रहा मगर, कब हिम्मत उसने हारी थी। लगन लिए, निःस्वार्थ भाव, झुलसाती गर्म हवाओं में, लथपथ रोएं की क्यारी थी। साल दर साल रहे बीतते, सत्ता की सीढ़ी बन, इसने सबको सत्तासीन किया। नाम रहा नारों में इनका, इश्तेहार और कागज़ पर, सबने इनको दीनहीन किया। मेरे पालन पोषण को भी, खाद उर्वरक, कहाँ कब इसे मिले। सब्सिडी का नाम बड़ा था, इसने भी सुना, बस कागज़ पर इसे मिले। मैं बड़ी हुई, गदरायी थी, हुई कटाई, मंडी पहुंची बन्द बोरे में। दाम गिरा था, मोल नही था, बांध रहा, पसीना वो पाजामे के डोरे में। आंख का आंसू, माथे का पसीना, अद्भुत संगम, किससे कहता, क्या क्या कहता। उसकी मेहनत, बेमोल पड़ी, हर कोई, उसपे बन एक गिद्ध झपटता। लिया कर्ज़ था साहूकार से, मूल तो छोड़ो, फसल ब्याज भी दे न पायी। कर्जमाफी का शोर बड़ा था, पर सरकार, असल आज भी दे न पायी। हारा, सबसे हार गया वो, क्या करता, सब होकर भी नँगा पड़ा था। राहें बदलीं, किसी ओर चला, पेड़ में गमछा, गमछे में किसान टंगा पड़ा था। मैं एक गेंहूँ की बाली, क्या करती, मैंने पालनहार खोया था। तुम कहते इंसां ख़ुद को, तुम ही बोलो, क्या तेरा दिल ना रोया था। ©रजनीश "स्वछंद" मैं गेंहूँ की बाली हूँ।। मैं गेंहूँ की बाली हूँ, हर खेतिहर की हरियाली हूँ। तेरी भूख मिटाने को, रोटी भरी मैं थाली हूँ। आज हरी हूँ, पर याद ह
Sujeet Suman
विश्व हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर किसान भाईयों के लिए कुछ लिखा हूँ । -किसान के बच्चे हैं - किसान के बच्चे हैं, किसानी करते हैं । खुशियों के समुन्दर में बाँहों फैलाते हैं, तकलीफ़ों के रसपान करते हैं । धरती है हमारी माता सुकून से आंचल में छिप जाते हैं, सुन्दर दृश्य में मगन हो जाते हैं । पालनहारन के रक्षा में भगवान से लड़ जाते हैं, जन्मों-जन्मों तक वफादारी निभाते हैं । दुख दर्द के तांडव में विषधर बन जाते हैं, राक्षस रूपी साया हटाते हैं । सौगन्ध है धरती माँ की हर रावणों से लड़ जाना है, हरयाली में लिपट जाना है। अपनी लाल रक्तों से कीर्तिमान बढ़ाना है, किसानी क्रांति लाना है । स्वरचित- सुजित सुमन जय हिंदी जय किसान विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।👏 ©𝙎𝙪𝙟𝙚𝙚𝙩 𝙎𝙪𝙢𝙖𝙣(PREM) विश्व हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर किसान भाईयों के लिए कुछ लिखा हूँ । किसान के बच्चे हैं, किसानी करते हैं । प्रेम भाव के पथ पर खेतों में सजत
AK__Alfaaz..
उसकी, उम्र के अमावस की रात, तीसरे पहर, इक याद लुढ़क आती है, उसके मन के गलियारे में, जहां, इक आशाओं के, रोशनदान से, हर सुबह झांकती है, उसके प्रेम की धूप, वो जानती है, गेहूं से..घुन की तरह, प्रीत के सूपे से फटककर, निकाली नही जा सकती हैं, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #गुलमोहर उसकी, उम्र के अमावस की रात, तीसरे पहर, इक याद लुढ़क आती है,
AK__Alfaaz..
रात, बिछौने पर, बिछायी गयीं, उसकी चुप्पियां, सिलवटों की लहरों मे, डूबकर कराह रही थीं, और..नैनों की कोरों से, बहे उसके दो मोती, तकिए के गिलाफ पर पड़े, अपने घर का, पता पूछ रहे थें उससे, उसकी आँखों पर सजी, काजल की काली सरिता, पलकों के बंध तोड़, उम्मीद की बहती, बाढ़ मे बहकर, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #सावन_की_साँझ रात, बिछौने पर, बिछायी गयीं, उसकी चुप्पियां,