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सतीश तिवारी 'सरस'
डॉ. प्रकाश जी डोंगरे की पंक्तियाँ जलती सड़कों पर जो एक अकेला आदमी गुलमोहर की तलाश में नंगे पाँव जा रहा है व्यवस्था का सूरज सबसे अधिक उससे ही घबरा रहा है। ''बूढ़ा पिता और आम का पेड़'' काव्य संग्रह से साभार ©सतीश तिवारी 'सरस' #व्यवस्था
Author Harsh Ranjan
दुनिया के कानूनों ने मुझे ये सिखाया है कि घोड़ा और गधा एक है, व्यवस्था की नजर में! या कहें कि घोड़ापन अथवा है। दुनिया का गधों के लिए यही जज्बा है। सर्वत्र संसार में अकाल व्याप्त है! भूख और भूख का डर जल और वायु से भी पर्याप्त है। कमाने वालों को कम खाने के गुण बताए जा रहे हैं और लोग उनकी रसोई के आटे-दाल से भंडारे करवाये जा रहे हैं। किसी ने मेरे कानों में धीमे से कहा है, एक किसान दो फसल काटकर भी आयु में उतना कमाता है कि उसके तीन पुश्त एक भी रात भूखे न गुजारें! पर ये गांव वालों को कैसे समझाएं कि बेरोजगारी के दिन-रात बिस्तर पर न गुजारें! अगर धरती पर पड़ा होना ही अस्तित्व है तो ये व्यवस्था मानव से ज्यादा मवेशियों के निमित्त है। व्यवस्था
Author Harsh Ranjan
दुनिया के कानूनों ने मुझे ये सिखाया है कि घोड़ा और गधा एक है, व्यवस्था की नजर में! या कहें कि घोड़ापन अथवा है। दुनिया का गधों के लिए यही जज्बा है। सर्वत्र संसार में अकाल व्याप्त है! भूख और भूख का डर जल और वायु से भी पर्याप्त है। कमाने वालों को कम खाने के गुण बताए जा रहे हैं और लोग उनकी रसोई के आटे-दाल से भंडारे करवाये जा रहे हैं। किसी ने मेरे कानों में धीमे से कहा है, एक किसान दो फसल काटकर भी आयु में उतना कमाता है कि उसके तीन पुश्त एक भी रात भूखे न गुजारें! पर ये गांव वालों को कैसे समझाएं कि बेरोजगारी के दिन-रात बिस्तर पर न गुजारें! अगर धरती पर पड़ा होना ही अस्तित्व है तो ये व्यवस्था मानव से ज्यादा मवेशियों के निमित्त है। व्यवस्था
somnath gawade
प्रचलित व्यवस्थेविषयी 'व्यवस्थित' बोलले नाहीतर 'व्यवस्था' आपल्याला व्यवस्थित जागी पोहचविते. 🤣😂 #व्यवस्था
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी नीतियां सैकड़ो बदलती रही देश की सूरत अब तक नही बदली है झूठे भाषणों और विज्ञापनो से जनता को आश्वासनों की ख़ुराक़ मिली है व्यवस्थायो के थप्पड़ कब तक सहने होंगे बदलाव के लिये सियासतों को कब तक अजमाते रहने होंगे डग्गा मारी से देश कब तक चलाओगे जनता को खून के आंसू कब तक रुलाओगे जाति धर्म भाषा के संघर्षों से कब ऊपर उठ पयोगे विभाजनकारी नीतियों से सामाजिक द्वंद कब तक बढ़ाओगे किया निजीकरण की नीतियों से जनता के सारे अधिकार ही बेच जाओगे देश बनाने के लिये कब अपने को खपाओगे किया नेक नियत को कभी अपनी प्राथमिकता बनवाओगे प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" व्यवस्थायो के थप्पड़ #Barrier
Mahesh Kumar
जब तक देश के गद्दारों को कानून का डर नहीं होगा । तब तक देश की समस्याओं का कोई भी हल नहीं होगा । कानून व्यवस्था
Satendra gupta
शिक्षा मे इतनी बदहाली क्यों है, पद गुरु का सारा खाली क्यों है? एक - एक कर टूट रहे है हम, शिक्षा के नाम पर थाली क्यों है? योजनायें जो भी निकलती है अब, सारी की सारी जाली क्यों है? गर पूछ लो अधिकारी से बात, तो निकलता मुँह से गाली क्यों है? इस बार हो जायेगी सबकी भर्ती, कह - कह कर टाली क्यों है? सतेन्द्र गुप्ता शिक्षा व्यवस्था
Deepa Didi Prajapati
खुशनसीब होगी उस रोज धरा, वास्तविक खुशी से खिलखिलाएगी। कानून व्यवस्था कर सके ऐसी, सरकार कभी गर मिल पाएगी। ©Deepa Didi Prajapati # कानून व्यवस्था