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Ashok Kumar Verma

सोंचता हूँ रे मैं ,न रुपया पैसा होता!..#अशोकबिन्दु #bharat #कविता

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ashish gupta

#Sitaare कर्म बिना ना मिले कोई फल आज नहीं तो मिलेगा कल माना व्यस्त हुआ है जीवन सारा सेहत का भी ख्याल रख जरा रुपया पैसा सब धरा रह जाएगा #Poetry

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Ranjeet Kumar

दरअसल ख्वाहिशों में हम कुछ भी देखते हैं गाड़ी बंगला रुपया पैसा कभी कभी हम भूत प्रेत भी, जब दिल टूटा हो तो दिलबर को देखते हैं। पर खुली आंखों #ख्वाहिशें #सपना #nojotohindi #nojotonews

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सपना मैंने सपने देखने नहीं छोड़े,
इसमें अक्सर तू जो आती है...!
***
मंजिल के सपने अक्सर खुली आंखों में होती है,
सोते हुए तो बस ख्वाहिशें देखते हैं...!!! दरअसल ख्वाहिशों में हम कुछ भी देखते हैं गाड़ी बंगला रुपया पैसा कभी कभी हम भूत प्रेत भी, जब दिल टूटा हो तो दिलबर को देखते हैं। पर खुली आंखों

नितिन कुमार 'हरित'

आंखों में जो पानी ना हो, कोमल, मीठी वाणी ना हो। शब्दों से जो रस ना बरसे, पर पीड़ा से ना मन तरसे।। घर से जो भूखा ही लौटे, एक रोटी कि आस भुला #Life #Love #Family #Affection #togetherness #realindia #NitinDilSe #RealMoney

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आंखों में जो पानी ना हो,
कोमल, मीठी वाणी ना हो।
शब्दों से जो रस ना बरसे,
पर पीड़ा से ना मन तरसे।।

घर से जो भूखा ही लौटे,
एक रोटी कि आस भुलाकर।
अलग अलग कोने में बैठें,
चारों जन एक घर में आकर।।

बच्चों की किलकारी ना हो,
बड़े जनों का आदर ना हो।
बहू ना लक्ष्मी समझी जाए,
कन्या का मीठा स्वर ना हो।।

फिर ये जीवन कैसा जीवन,
फिर सारे सुख नाम के है।
रुपया पैसा दौलत शोहरत,
तुम बोलो किस काम के हैं?

- Nitin Kr Harit आंखों में जो पानी ना हो,
कोमल, मीठी वाणी ना हो।
शब्दों से जो रस ना बरसे,
पर पीड़ा से ना मन तरसे।।

घर से जो भूखा ही लौटे,
एक रोटी कि आस भुला

Nitin Kr Harit

आंखों में जो पानी ना हो, कोमल, मीठी वाणी ना हो। शब्दों से जो रस ना बरसे, पर पीड़ा से ना मन तरसे।। घर से जो भूखा ही लौटे, एक रोटी कि आस भुला #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine #किसकामके

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आंखों में जो पानी ना हो,
कोमल, मीठी वाणी ना हो।
शब्दों से जो रस ना बरसे,
पर पीड़ा से ना मन तरसे।।

घर से जो भूखा ही लौटे,
एक रोटी कि आस भुलाकर।
अलग अलग कोने में बैठें,
चारों जन एक घर में आकर।।

बच्चों की किलकारी ना हो,
बड़े जनों का आदर ना हो।
बहू ना लक्ष्मी समझी जाए,
कन्या का मीठा स्वर ना हो।।

फिर ये जीवन कैसा जीवन,
फिर सारे सुख नाम के है।
रुपया पैसा दौलत शोहरत,
तुम बोलो किस काम के हैं?
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 आंखों में जो पानी ना हो,
कोमल, मीठी वाणी ना हो।
शब्दों से जो रस ना बरसे,
पर पीड़ा से ना मन तरसे।।

घर से जो भूखा ही लौटे,
एक रोटी कि आस भुला

kaushalendra kumar dubey

जब कर देती टुकड़े टुकड़े इस दिल के तब ये वाली याद मुझे क्यों आ जाती चुपके चुपके वो वाली जब भी मुझको देती गाली कोस कोस कर ये वाली याद मुझे #Poetry #मनकीबात

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जब कर देती टुकड़े टुकड़े इस दिल के तब ये वाली 
याद मुझे क्यों आ जाती चुपके चुपके वो वाली 
जब भी मुझको देती गाली 
कोस कोस कर ये वाली 
याद मुझे

#Mr.India

किसका कसूर था, वो तो अजिविका के लिए मजबूर था, कौन छोड़ना चाहता है गांव घर अपना, वो बस दो वक़्त की रोटी के मशहूर था, सरकार गिराने या बनाने की #MR #nojoto_poetry

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किसका कसूर था, वो तो अजिविका के लिए मजबूर था,
कौन छोड़ना चाहता है गांव घर अपना, वो बस दो वक़्त की रोटी के मशहूर था,
सरकार गिराने या बनाने की बात होती तो खरीद लेते MLA, लेकिन वो शायद मजदूर था,
गांवों में भी चुनाव नहीं, वरना ले आते शहरों से शराब और रुपया पैसा बहुत था,
मान गए वाह मोदी जी, जो देश छोड़ कर बाहर गए उनके लिए मिशन वन्दे मातरम् चला दिए,
कुछ तो शर्म करो मरने वाले मजदूरों की मौतों पर, उनकी हिफाजत के लिए बस भी नहीं चला दिए,
सहम गया है भारत माता का आंचल भी उन बेबस लाचार मजदूरों की मौतों पर,
आपने तो बस आत्मनिर्भर होने का राग छेड़ दिए,
मजदूर राष्ट्र का निर्माता है आत्मनिर्भर की वजह से उसको उसके हालतो पर छोड़ दिए,
माफ़ करना मोदी जी, शायद वो मजदूर था, ना जाने कितने हादसों में प्राण त्याग दिए 😰,
किसका कसूर था, वो तो अजिविका के लिए मजबूर था,
कौन छोड़ना चाहता है गांव घर अपना, वो बस दो वक़्त की रोटी के मशहूर था...!!!
#Mr.India किसका कसूर था, वो तो अजिविका के लिए मजबूर था,
कौन छोड़ना चाहता है गांव घर अपना, वो बस दो वक़्त की रोटी के मशहूर था,
सरकार गिराने या बनाने की

Pallavi Mishra

सुख सुख! कभी था- एक भाव/एक तृप्ति/एक आनन्द/एक अहसास परन्तु ऐसा कोई सुख दृष्टिगोचर नहीं है आज अपने आसपास। रुपया, पैसा, बंगाला, गाड़ी #कविता #RDV18

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सुख
सुख!
कभी था-
एक भाव/एक तृप्ति/एक आनन्द/एक अहसास
परन्तु ऐसा कोई सुख
दृष्टिगोचर नहीं है
आज अपने आसपास।
रुपया, पैसा, बंगाला, गाड़ी

कवि राहुल पाल 🔵

#Bheed शहर की भीड़ से अलग है ,हम सुन्दर उपवन जैसे गांव से है , जहां हम रिश्तों की डोर बधी ,हम एक नदी में बहती नावँ से है ! आज शहरों की सड़को #Nojotochallenge #nojotopoetry #nojotohindi #शायरी #nojotoquotes #nojotoapp #nojotonews #nojotohindishayari

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शहर की भीड़ शहर की भीड़ से अलग है ,हम सुन्दर उपवन जैसे गांव से है ,
जहां हम रिश्तों की डोर बधी ,हम एक नदी में बहती नावँ से है !
आज शहरों की सड़को की मायाजाल उम्र से लम्बी लगती है, 
भावनाये और रिश्ते की रसधार जहाँ नालों में सस्ते में बहती है !!
जब बदल गया इंसान जहाँ आधुनिकता के व्यापक दावँ से है , 
अच्छा है आडम्बर के शहरों से नही  ,हम आज भी गावँ से है .!!
शहर की सुबह शाम दोपहर का कुछ आज गया ज्ञात नही ,
 जिंदगी में आज भीड़ बहुत है ,पर यथार्थ में कोई साथ नही !
सुख सुविधाओं की धमाचौकड़ी पर सच के सुख का ज्ञान नही ,
इंसान बहुत है परन्तु यहाँ ,सुख दुख भांप सके ऐसा इंसान नही !!
नगरों में वृक्षों की बिम्ब से ज़्यादा,उच्च मंजिल की छांव से है ,
अच्छा है आडम्बर के शहरों से नही ,हम आज भी गांव से है !! 
शहर आदमी की पहचान नही ,यहाँ पहचान तो रुपया -पैसा है ,
कोई किसी का जहाँ सगा नही है ,जहाँ फ़िक्र नही कौन कैसा है !!
शोर शराबों की गलियों में आज जहाँ सोने का भी वक़्त नही.. ,
 सैकड़ो मरते है रोज यहाँ पर ,पर दो आंसू भी रोने का वक़्त नही !!
निर्मम ,निर्दयी और घृणा से पतन पथ पर निकले जिनके पावँ से है,
राहुलअच्छा है आडम्बर के शहरों से नही ,हम आज भी गांव से है.. #Bheed 
शहर की भीड़ से अलग है ,हम सुन्दर उपवन जैसे गांव से है ,
जहां हम रिश्तों की डोर बधी ,हम एक नदी में बहती नावँ से है !
आज शहरों की सड़को

Shubham Saxena

कड़ी धूप में छाँव स्नेह की यार बड़ी होती हैं माँ, आओ तुम्हे मैं बतलाता हूँ,यार कैसी होती है माँ। कोख में रख जो पाला है सबसे बड़ा उपकार किया, इ

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कड़ी धूप में छाँव स्नेह की यार बड़ी होती हैं माँ,
आओ तुम्हे मैं बतलाता हूँ,यार कैसी होती है माँ।

कोख में रख जो पाला है सबसे बड़ा उपकार किया,
इस जीवन को हमे दिया और जीवन भर हमे प्यार किया,
सारी दुनिया से बचाकर... उसने हमको पाला है,
सबकी "नजरों" से बचाकर यार बड़ा करती है माँ।

कड़ी धूप में छाँव स्नेह की यार बड़ी होती हैं माँ,
आओ तुम्हे मैं बतलाता हूँ,यार कैसी होती है माँ।

भूखी रहकर पेट सभी का भरने को वो रहती है,
पेट भरा है मेरा इस पल हम सब से वो कहती है,
त्याग-प्रेम का पाठ पढ़ाये...जीवन अर्पण कर डाला है,
प्यार पिरोकर परिवार में साथ हमे रखती है माँ।

कड़ी धूप में छाँव स्नेह की यार बड़ी होती हैं माँ,
आओ तुम्हे मैं बतलाता हूँ,यार कैसी होती है माँ।

जीवन मे जब भी दुखी हुआ,तो उनके पास में जाता हूँ,
पैर पकड़ कर रोता हूँ, और सारी बात बताता हूँ
हाथ फेर कर सर पर वो भी..भावुक सी हो जाती है,
फिर जीवन जीने का सलीका हमको सिखलाती है माँ।

कड़ी धूप में छाँव स्नेह की यार बड़ी होती हैं माँ,
आओ तुम्हे मैं बतलाता हूँ,यार कैसी होती है माँ।

अपनी इच्छा को दबाकर,सबका मत वो पूछती है,
गर विपति कोई आ जाये, सबसे आगे जूझती है,
अंत तलक वो हमरे खातिर.. अपनी चाह दबाये,
खुशी मिले जो कोई अगर हकदार बड़ी होती है माँ।

कड़ी धूप में छाँव स्नेह की यार बड़ी होती हैं माँ,
आओ तुम्हे मैं बतलाता हूँ,यार कैसी होती है माँ।

'शुभ' चाहे जो भी कर लो पर,माँ बिन कुछ न पूरा है,
पा लोगे रुपया पैसा पर,माँ बिन सब अधूरा है,
एक तरफ है दुनिया सारी... तुम्हरे आगे कौन
सबसे अधिक जो मूल्यवान संसार मेरा तुम्हीं हो माँ

कड़ी धूप में छाँव स्नेह की यार बड़ी होती हैं माँ,
आओ तुम्हे मैं बतलाता हूँ,यार कैसी होती है माँ। कड़ी धूप में छाँव स्नेह की यार बड़ी होती हैं माँ,
आओ तुम्हे मैं बतलाता हूँ,यार कैसी होती है माँ।

कोख में रख जो पाला है सबसे बड़ा उपकार किया,
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