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डॉ. शिवानी सिंह मुस्कान
#शिवानी हे अन्तःपुर के अभिलाषी| हे मौन दृगों के सुखराशी|| करबद्ध हुई कविता मेरी मत छेड़ मुझे हे मृदुभाषी।। हे माया,मोह,प्रेम,परिणय जिसमे सारी दुनिया तन्मय मै उनसे मुक्ति चाहती हूँ बनने दे मुझको सन्यासी। करबद्ध हुई कविता मेरी मत छेड़ मुझे हे मृदुभाषी।। स्पर्श-स्नेह का ये बंधन मोहित कर लेता सबका मन मत सींच मेरे मन की बेला हे दया सिंधु घट-घट वासी। करबद्ध हुई कविता मेरी मत छेड़ मुझे हे मृदुभाषी।। जब-जब तू शिवा कहायेगी तब-तब शंकर को पायेगी मै युगों-युगों से हूँ तेरा ये प्रेम सदा से अविनाशी। करबद्ध हुई कविता मेरी मत छेड़ मुझे हे मृदुभाषी।। ©डॉ.शिवानी मुस्कान पार्वती परिणय
ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
विवाह एक महाबँधन जिसमे सत्यता की ,पवित्रता,व जीवन भर साथ निभाने की रस्में होती है विवाह,,,,,,एक परिणय
Anuj Ray
" बंध के परिणय सूत्र में " और कब तक, दूर तुम जोवन छुआ से भागती फिरती रहोगी .. सिंह डर से दूर वन में र्चौकड़ी दिन-रात , तुम कितनी भरोगी ... है बचन मेरा अभय, प्राणों से प्यारी , तुम सदा बनकर रहोगी... बंध के परिणय सूत्र में ,सारे जहां में , स्वामिनी बनकर फिरोगी गी.. " बंध के परिणय सूत्र में"
जिंदगी का जादू
छाया से दूर हुआ तो आंचल का मूल्य मैं जाना जब तपी ये दिल की धरती बादल का मूल्य मैं जाना वो छाया वो बदली बस एक जगह मिलती है सब मिलता दूर शहर में बस मां ही नहीं मिलती है पावस रजनी में जुगनू भट्ट के जैसे जंगल में पूछे राम जी वोन से कैसे हैं सब महल में वन में ना कोई दुख है पुण्य ज्योति जलती है देव मुनि सब मिलते बस मां ही नहीं मिलती है @गौतम माँ पर कविता