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Bhawani Singh Mingsariya
दीपशिखाएं आपके हृदय के अंतस्थल में स्थिर होकर सांसारिक व्याधियों का सम करे दिवाळी शुभकामनाए *भवानी* दीपशिखाएं आपके हृदय के अंतस्थल में स्थिर होकर सांसारिक व्याधियों का समन करे *"दिवाळी शुभकामनाएं* *भवानी*
संगीत कुमार
(अंतस्थ भावना) अंतस्थ में जगा एक भावना। कैसे प्रकट करू मैं वेदना।। तुम शीश झुकाये घूम रहे। किससे करू ये वंदना।। अंतस्थ में जगा एक भावना। पग-पग तुम भटक रहे। रोजी -रोटी छोड़ चले।। कैसा अवसाद ये छा गया। बालक भूख से आकुल रहा।। अंतस्थ में जगा एक भावना। कैसा विपदा छा गया। लोग पैदल सड़क पर चल पड़े।। छाले पैर में पड़ गये। भूख प्यास सब मिट गया।। अंतस्थ में जगा एक भावना। उर में व्यथा, अश्क आँखों में। निष्ठुर बना ये वक्त है।। हार -थक सब सो गया। नित्य, बाल भूख से तरस रहा।। अंतस्थ में जगा एक भावना। हालात ही ऐसा बन गया। लोग व्यथा में सो रहा।। कुछ करने को न समझ रहा। मन दिगभ्रमित सा हो उठा।। अंतस्थ में जगा एक भावना। जगत है मूक पाषाण बना। न सुन रहा है वेदना।। विफल हुआ सब कामना। हर वक्त लोग करते राजनीति वंचना।। अंतस्थ में जगा एक भावना। (संगीत कुमार /जबलपुर) ✒️स्व-रचित 🙏🙏🌹 (अंतस्थ भावना) अंतस्थ में जगा एक भावना। कैसे प्रकट करू मैं वेदना।। तुम शीश झुकाये घूम रहे। किससे करू ये वंदना।। अंतस्थ में जगा एक भावन
Rajesh Raana
Rajesh Raana
जलाये तुमने केवल प्रतिमान , अंतस्थ बचा रखे है अभिमान । रावण की राख दे रही दुहाई , मनुज मन से हो हमारी रिहाई। - राणा © #जलाये तुमने केवल #प्रतिमान , अंतस्थ बचा रखे है #अभिमान । #रावण की #राख दे रही #दुहाई , #मनुज #मन से हो हमारी #रिहाई। - राणा © #Nojoto #Hin
संगीत कुमार
पहनी हो चूड़ी हरी हरी बिंदी शोभे हरी हरी पहनी हो साड़ी हरी हरी आ गया अब सावन की घड़ी खिल उठी है फूल कली खिलती है हाथो की मेंहदी क्या लगती हो रूपवती अधरो पे मुसकान खिली उर में प्रेम की ज्वार फूटी अंतस्थ भावना जाग उठी सजनी मैं तो आऊँगा साज समान ले आऊँगा सावन में संग झूला झुलूंगा प्रेम संगीत गुनगुनाऊगा नयन से नयन मिलाऊँगा उर से तुझे लगाऊँगा अपने हाथों से सजाऊंगा गले से लिपट जाऊंगा तुझे आँखों से निहारूंगा दिल में तुझे बैठाऊँगा सावन में वाटिका घुमाऊंगा नौका विहार कराऊंगा संग शिवालय ले जाऊंगा प्रेम से पूजन कराऊंगा हृदर से तुझे लगाऊंगा पहनी हो चूड़ी हरी हरी ©(संगीत कुमार /जबलपुर) ✍🏽✍🏽स्वरचित 🌹🌹 पहनी हो चूड़ी हरी हरी बिंदी शोभे हरी हरी पहनी हो साड़ी हरी हरी आ गया अब सावन की घड़ी खिल उठी है फूल कली खिलती है हाथो की मेंहदी क्या लगत
saurabh
तुम्हारी बात में सौरभ, ठहरती इक गमी सी है मुकम्मल ही नहीं हो तुम कि कोई एक कमी सी है मन में प्यार नहीं है खुद के हम पर दोष लगाते हैं हमने जो भी किया आज तक उसको गलत बताते हैं कहते हैं तुम साथ नहीं थे जब जब हमें जरूरत आई उनक
दि कु पां
हिंदू तन मन.... मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार-क्षार। डमरू की वह प्रलय-ध्वनि हूं जिसमें नचता भीषण संहार। रणचण्डी की अतृप्त प्यास, मैं दुर्गा का