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piyush shukla daau
अहंकार बहोत ही वजनी होता हैं ।। बस अहसास नही होता ।।
Brijendra Dubey 'Bawra,
रात तो थोड़ी वजनी लगती है लेकिन दिन बहुत भारी लगता है! तमन्ना तो सिर्फ एक ही थी बाकी सब दुश्वारी लगता है!! ©Brijendra Dubey 'Bawra, रात तो थोड़ी वजनी लगती है लेकिन दिन बहुत भारी लगता है! तमन्ना तो सिर्फ एक ही थी बाकी सब दुश्वारी लगता है!! @बृजेन्द्र दूबे 'बावरा' Nojoto
Poet Shivam Singh Sisodiya
#OpenPoetry जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम् 🚩 विद्याधनं श्रेष्ठधनं तन्मूलमितरद्धनम् | दानेन वर्द्धते नित्यं न भाराय च नीयते || अर्थ- विद्यारूपी धन सबसे बड़ा धन है, इसके अतिरिक्त कोई भी
Sandeep Kothar
आसमान की गोद में... मंज़िल की ओर... यात्रियों के साथ... बेजान लेकिन विज्ञान का चमत्कार हर दिन उड़ान भरता है। हजारों टन वजनी होने के बावजूद भी.. यह हवा में उड़ता है। इसे 21वीं सदी का आविष्कार कहें.. या महत्वाकांक्षी इंसानों के प्रयासों का दर्शन। आप जो भी कहें, बस यह ध्यान रखना की, प्रकृति ही है.. हर ख़ोज का प्रतिबिंब। ©Sandeep Kothar हवाईजहाज.. . आसमान की गोद में... मंज़िल की ओर... यात्रियों के साथ... बेजान लेकिन विज्ञान का चमत्कार हर दिन उड़ान भरता है। हजारों टन वजनी ह
रजनीश "स्वच्छंद"
बांट ना पाया।। मुहब्बत तो चुरा लाया मगर मैं बांट ना पाया, कदमों में पड़ी खुशियां मगर मैं छांट ना पाया। कभी सच मे उलझता था कभी झूठा बना फिरत
Parul Sharma
कुछ यादें तोड़ कर ख्वाहिशें तोली थी यकीन तेरी यादों का वजन ज्यादा था ख्वाहिशें बहुत हल्की थी। फिर भी न जाने क्यूँ ....... तुम्हारी हर बात मेरी ख्वाहिशों पे अटक जाती थी और हर बात बिगड़ जाती थी मैं तेरी हर बात को चुन कर आँखों में रख लेती थी। क्योंकि मेरी ख्वाहिश सिर्फ तुम ही थे। तेरी बातें बहुत वजनी निकली तेरी यादों से भी ज्यादा नतीजतन हमारी मोहब्बत फसाना बनके रह गयी। हम दोनों को एक अलग अलग जहाँ दे कर। पारुल शर्मा कुछ यादें तोड़ कर ख्वाहिशें तोली थी यकीन तेरी यादों का वजन ज्यादा था ख्वाहिशें बहुत हल्की थी। फिर भी न जाने क्यूँ ....... तुम्हारी हर बात म
Sunita D Prasad
#शब्दों का कौमार्य..... यह शब्दों का सौंदर्य रहा कि हर नए वाक्य पर उनका कौमार्य यथावत रहा। इधर मैं कविता की वे अंतिम पंक्तियाँ रही जिन्होंने उसके प्रारब्ध के संग पूर्ण निर्वाहन किया। मैंने इच्छाओं की उर्वरक भू पर पाँव जमाते हुए स्नेह की दृंढ़ता को थामना चाह पर इच्छाएँ वजनी निकलीं। मेरे मुखमंडल पर विग्रह वेदना का प्रतिबिंब ठहरता इससे पूर्व एक समृद्ध संतुष्टि का आवरण स्वेच्छा से ओढ़ लिया दुःख की तुलना में सुख अकिंचन रहे पर अस्तित्वहीन नहीं जीवन में प्रेम तब उद्धृत हुआ जब वह लगभग परिभाषा विहीन हो चुका प्रतीक्षित अनुभूतियाँ भाषा के अभाव में अनर्थ सिद्ध हुईं पूरे नाट्यक्रम में अपने संवादों को कंठस्थ कर नेपथ्य में प्रविष्टि की प्रतीक्षा करती रही परंतु हम सभी अस्थाई दृश्यों के अस्पष्ट पात्र ही साबित हुए। जीवन अपनी गति में चला दृश्यों संग पात्र बदलते गए पर कुछ प्रतीक्षाएँ कभी समाप्त नहीं हुईं जहाँ दुनिया वृताकार रही वहीं प्रेम सरल रेखा समान संभवतः तभी वृत की गोलाई कभी नाप ही नहीं पाई!! #शब्दों का कौमार्य..... यह शब्दों का सौंदर्य रहा कि हर नए वाक्य पर उनका कौमार्य यथावत रहा।
Shree
है ना, कहिए! तुम कोई नहीं हो मेरे, पर हां मेरे सब कुछ हो, अंबर रुठ जाए तो सूरज दिन ठहर जाए तो चंदा वक्त की फ़ेहरिस्त में सबब तुम सुकूं,तुम्हीं एतवार