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Vijay Kumar उपनाम-"साखी"
रियायत में सियासत हो रही है पानी मे अब आग हो रही है जिसको पूंछते है,वो रोता है, फूलों से खुश्बु ही खो रही है नाम लेते वो नेकी के काम का पेट भर लेते है खुद के नाम का गरीबी पे बड़ी राजनीति हो रही है रियायत में सियासत हो रही है जिनके लबों पे हंसी चाहिये, उनके लबों पे आग हो रही है जिनके पहले से ही घर भरे है, उनके घरों पे भुखमरी हो रही है आजकल तो बिना चले ही यारों, मंजिल से मुलाकात हो रही है पर एकदिन तो ये दरिया सूखेगा, ये भ्र्ष्टाचार का भांडा फूटेगा, ईमानदारी की राह चलने से ही, हमारी गिनती सितारों में हो रही है रियायत में अब रियासत नही हो, आंख में किसी गरीब के नीर न हो, इसके लिये हमारी ईमानदारी, हमारी सत्य के प्रति वफादारी, भ्र्ष्टाचार के प्रति हिम्मत भारी, इनसे ही दुनिया अच्छी हो रही है दिल से विजय रियायत में सियासत
Singer SATISH THAKUR SAHIL
सियासत गरीबों पर ऐसा एहसान करती हैं , ये आँखे छीन लेती हैं और चश्मे दान करती हैं ।। #सियासत#शायरी #साहिल
Devendra Singh Dev
_____________________________ दंभ का नाटक रचा कर क्या करोगे पुतलियां जी भर नचा कर क्या करोगे मर गया मांझी तड़प कर भूंख से ही महज़ पतवारें बचा कर क्या करोगे हो गयी नीलाम इज्जत महफिलों में मान का हल्ला मचा कर क्या करोगे खा गए राशन गरीबों के घरों का दाल रोटी को पचा कर क्या करोगे लाज गिरबी रख सियासत में घुसे थे शर्म से मस्तक लचा कर क्या करोगे जम गईं परतें कवक की मन तलक में धूप में खुद को तचा कर क्या करोगे।। ______________________________ #देवेन्द्र_यादव_देव.......✍️ ©Devendra Yadav Dev #सियासत #राजनीति #शायरी #Heartbeat
Abhishek Kashyap
सियासत बहुत आती है हमको लेकिन कभी शायरी में सियासत नहीं की । @ ज्ञानेश कुमार नापित सियासत बहुत आती है हमको लेकिन कभी शायरी में सियासत नहीं की । @ ज्ञानेश कुमार नापित
Purohit Nishant
बड़े सलीके से तहजीब से बात करते हैं दौर चुनाव का हो सियासी कुत्ते भी विलायती बात करते हैं – पुरोहित"निशान्त" ©Purohit Nishant सियासी व्यंग्य.... #Mic #मेरी_कलम #हिन्दी_युग #कवि #व्यंग्य #सियासत
Diwan G
हाँ मुझसे तेरा इश्क विरासत में है। कि तू मेरी रूह की हिरासत में है।। ©Diwan G #हिरासत #विरासत
राजेंद्रभोसले
ये सियासत की जंग हैं भाई ये सियासती जंग।।धृ।। मैफिया मेडिया मनी का मिलाप सियासतदारोंको नही लगता खाँप अपनाते लोग खुंकार मंडराते साप गांधीजी के पुराणे पैंतरे की छाप किराये की नेताओंके संग।।१।। झुटे वादे झुटे सपने मे खो जाते अपनोसे कौमी झगडे कर देते पैंतरा देशभक्ती का आजमाते लोगोको भावनामें उलझाते वोट के लिये नोटो का रंग।।२।। आज की सियासत
आपका अरविंद
किताबें, रिसाले, न अखबार पढ़ना* मगर दिल को हर* रात इक बार पढ़ना। *सियासत की अपनी इक अलग जबां है, *लिखा हो इकरार तो इनकार पढ़ना*।। (बशीर बद्र) सियासत की जबाँ