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शान-ए-शब
गर जो "तुम्हे" इतनी देर लगेगी आते आते, ऐसा ना हो, कि हम "कहीं और दिल" लगा बैठे ।। कहीं और
Narendra Kumar
मुझे जिससे अक्सर मिलना था, अब उनसे मुलाकात नहीं होती.... मुलाकात छोड़िए,अब तो उनसे हमारी बात तक नहीं होती... जो कहा करते थे हर वक्त साथ निभाएंगे तुम्हारा... मैं बहुत समय से ढूंढ रहा,अब यादों के अलावा उनसे कहीं और बात नहीं होती!! ©Narendra Kumar कहीं और #achievement
Mohan Sardarshahari
काम भी अजीब है मूल कहीं और है लगाम कहीं और है फल पर ना जोर है।। ©Mohan Sardarshahari लगाम कहीं और है
Author Harsh Ranjan
हवा में तैरते सत्य को मैंने पन्ने पर रख दिया, पन्ना आदतवश हर सड़क, गली, नुक्कड़ उसे पेश कर आया। लोगों को लगता है कि एक तमंचा लेकर घर से निकला आज़ाद पागल था, एक बम फेंककर फांसी चढ़ते युवा सनकी थे, डेढ़ किलो के दिमाग में किताबें भरकर पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आते लोग व्यसनी थे। अनपढ़ देश मे कागज़-कलम दयनीय हैं खासकर कि तब जब देश में दर्जन भर लिपियाँ हो! कुछ लोग आज भी मानते हैं कि कागज़ और आवाजें बहुत कुछ कर सकती हैं। जिन्हें कुछ की काबिलियत नहीं वो सरकारी कर्मचारी बन गए। जो कुछ कर नहीं सकते वो प्रशासनिक अधिकारी बन गए, जिन्हें बाधाएं डालने की आदत है वो सतर्कता में चले गए, और हर मुँहचोर, सवालों से कई लेवेल ऊपर जाने के लिए नेता या मनोरंजन खोर बन गए। देश चुनौती के चु से परेशान नहीं है यहाँ दुख कुछ और है! ये जो मुंह अंधेरे हाथ में टोर्च लिए मुर्गे की आवाज में बांग देते हो, हमें पता है सवेरा और सूर्य कहीं और है। सवेरा कहीं और है
Author Harsh Ranjan
हवा में तैरते सत्य को मैंने पन्ने पर रख दिया, पन्ना आदतवश हर सड़क, गली, नुक्कड़ उसे पेश कर आया। लोगों को लगता है कि एक तमंचा लेकर घर से निकला आज़ाद पागल था, एक बम फेंककर फांसी चढ़ते युवा सनकी थे, डेढ़ किलो के दिमाग में किताबें भरकर पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आते लोग व्यसनी थे। अनपढ़ देश मे कागज़-कलम दयनीय हैं खासकर कि तब जब देश में दर्जन भर लिपियाँ हो! कुछ लोग आज भी मानते हैं कि कागज़ और आवाजें बहुत कुछ कर सकती हैं। जिन्हें कुछ की काबिलियत नहीं वो सरकारी कर्मचारी बन गए। जो कुछ कर नहीं सकते वो प्रशासनिक अधिकारी बन गए, जिन्हें बाधाएं डालने की आदत है वो सतर्कता में चले गए, और हर मुँहचोर, सवालों से कई लेवेल ऊपर जाने के लिए नेता या मनोरंजन खोर बन गए। देश चुनौती के चु से परेशान नहीं है यहाँ दुख कुछ और है! ये जो मुंह अंधेरे हाथ में टोर्च लिए मुर्गे की आवाज में बांग देते हो, हमें पता है सवेरा और सूर्य कहीं और है। सवेरा कहीं और है
आकाश भिलावली वाला
मेरी मंजिल कहीं और मैं कही और जा रहा हूँ मिलेगी एक दिन वो मुझे इसी आश जियें जा रहा हूँ ©आकाश भिलावली वाला मेरी मंजिल कहीं और
आलोक कुमार कर्ण
ना जाने क्यों अब उसकी खामोशी में एक शोर सुनाई देता है जो कभी प्रेम-रास के नज्मों से महफिल सजाया करता था ~कहीं और दिखाई देता है। ©आलोक कुमार कर्ण कहीं और दिखाई देता है
गुलशन गुलज़ार
मेरा चाँद कहीं और चमकता है, मेरी आंखों से अश्क टपकता है, उसकी रौशनी से सारा जहां रौशन है, बस तेरे घर मे अंधेरा खटकता है, क्या निशानी दूँ इश्क़ की तुम्हे, तुम्हारी याद में ये आशिक़ भटकता है, उसकी याद आती है तो रोता बहुत हूँ, इतना रोता हूँ कि निवाला अटकता है, बादल को मत ढूंढो आसमान में, देखो मेरी आँखों से बरसता है, तेरे इंतेज़ार में गुलशन वीरान है, तुझे पाने को हरपल तरसता है। ~गुलशन"श्रृंगारप्रेमी"...✍️ मेरा चाँद कहीं और चमकता है...