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Sonu Kumar Prajapati
संगती का असर एक मंडा नाम के गांव में चार आदमी रहते थे चारों के मध्य गहरी मित्रता थी . एक दिन उनके पास कुछ भी खाने योग्य नहीं था. तो उन सब ने मिलकर निश्चय किया कि वह कल से कमाने जाएंगे . अगले दिन वे चारों मित्र एक साथ सुबह निकल पड़े चारों चलते चलते दूसरे गांव में पहुंच गए .. वहां पर दो मित्रों ने साधु के यहां शरण ली. और दो मित्र आगे चल पड़े चलते चलते उन्हें डकैत डकैती करता हुआ मिला उन दोनों मित्रों ने उसके साथ मिलकर डकैती करना शुरू किया कुछ महीनों या सालों बाद उन चारों मित्रों की एक जगह पर मुलाकात हुई वह चारों मित्र बहुत अच्छे दोस्त थे परंतु संगति के असर के कारण दो मित्र साधु वह दो मित्र डकैत बन गए . इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा अच्छे व्यक्तियों या सर्जन व्यक्तियों की ही संगति करनी चाहिए संगती का असर
Parasram Arora
संताप हमारी संतति है बड़ी मेहनत लगती है तब जाकर वो पैदा होता है बीस साल पहले दीं गई गली अभी तक सम्भली है.. एक धरोहर की तरह पड़ी है अभी भी यादे करो तो नथुने फड़कने लगते हैँ घाव को कभी हम भरने नहीं देते उसे कुरेदते रहते है आये दिन ताकि घाव का हरापन टिका रहे जरा सी चोट से समझ हमारी बिखर जाती है अभी तो बात बड़ी छोटी है क्या करोगे ज़ब मृत्यु तुम्हे बुलावा भेजेगी और तुम कुछ भी कर न पाओगे ©Parasram Arora #संताप हमारी संतति है
HARSH369
Village Life हमारा सब का शरीर एक जैसा हि है पर बदशलूकि किसी किसी के साथ हि होती है पर क्यूं...मै बताता हूं १. हमारा पहनावा -खासकर कही पर औरतें या लड़किया इनकी जिम्मेवार होती है छोटे कपडे़ पहनकर २, कुछ लड़को मे संसकार नही होते, गलत संगती मे पड़ जाते है, नसा हद से ज्यादा करते है..जिस कारण शिकार हमेशा ही लड़किया होती है ...!! ©SHI.V.A 369 #हमारी संगती हमारे संस्कार
कवी - के. गणेश
आयुष्य वाचलेल्या पानासारखं आठवणींनी मनात भरावं.. आपण संपलो तरीही आपलं अस्तित्व उरावं..! पुस्तक..
Bharat
कभी वो मेरे पास आने से कटराती थी आज तो वो हमेशा मेरे संग को बतलाती है क्योकि मैने मन से उसको अपना बनाया था कभी उसको मैने अपनी सांस समाया था जब से मैने उसको अपने कर में थामा है तब से इस जहां ने मुझे संग से जाना है रात-रात भर उसके संग में बतियाता हूँ समय आने पर उसको में हथियाता हूँ पुस्तक
Sankranti
क्या मैं इतनी बुरी हूं.... पुस्तक सोई पुस्तकालय में बोली इतने दिन चुप रहने के बाद आज वो अपना मुंह खोली मुस्किल से कोई मुझे ले जाता है वो भी रख मुझे टेबल पर सामने मेरे सो जाता है क्या मैं इतनी बुरी हूं.... मैं एक जगह रखे रखे थक जाती हूं एक बार भी तो वो मुझे खोलकर देख ले इसके लिए तरस जाती हूं जब वो बाहर जाता फोन साथ ले जाता जब वापस आता फोन में लग जाता वो तो मेरा ख्याल ही भूल जाता है क्या मैं इतनी बुरी हूं.... मैं मददगार..., इतनी काम की हूं फिर भी क्यों लगती बेकार हूं कुछ तो देख मुझे अजीब सी शक्ल बनाते जैसे लिखा हो मुझमें ऐसा कुछ जिसे देख वो डर जाते क्या मैं इतनी बुरी हूं.... ©Sankranti #पुस्तक
Vini Patel
मेने मेरे सर से पूछा :- सर इन्सान को बदलना हैं तो केसे बदले? सर ने कहा:- इन्सान अनुभव से बदलता है। मेने कहाँ:- सर इन्सान चाहे तो वो अच्छे पुस्तक पढ़ने से भी बदल सकता है। पुस्तक।