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Nafe Singh Kadhian Ganganpuriya
डोंगी गुरु देखो र्स्वग का टिकट कटाने आई चेलों की फौज है, चारों उंगल रहें घी में, संतों की यहां मौज है। तन-मन-धन सब अर्पित करदे ढोंगवाणी बताती है, पति देते नोटों के बंडल, पत्नी चरण दबाती है, घर पर रखे नोकर-चाकर, डेरे झाड़ू लगाती है, परलोकी संतों की महिमा ये सबको समझाती है, भांग रगड़के, सुल्फे खींचों, ये ही इनकी खोज है, चारों उंगल रहं घी में, संतों की यहां मौज है। देखो र्स्वग का टिकट कटवाने आई चेलों की फौज है, नामदाम के भरे टोकरे, तेरे सर पे वारदेंगे, गण्डे तबीज बना रखे, तेरे सारे भूत उतारदेंगे, गालों पे क्रीम लगाके आना, गुरू जी पूरा प्यार देंगे, गर की गुरू की निंदा, तेरी हीक में गोली मार देंगे, यहां पापी ढोंगी भरे पड़े, इस देश पर ये बोझ है, चारों उंगल रहं घी में, संतों की यहां मौज है। देखो र्स्वग का टिकट कटवाने आई चेलों की फौज है, राजा, रंक सब डेरों के सेवा कार बनारखे, कोठी कार धन दौलत के गुरू नै अम्बार लगारखे, शब्दो में माया ठगनी के आचार विचार बनारखे, आंख मूंद के विश्वास कर, ऐसे संस्कार करारखे, बात बात पै लात चले ऐसा होता यहां रोज है, चारों उंगल रहं घी में, संतों की यहां मौज है। देखो र्स्वग का पास बनवाने आई चेलों की फौज है, मन वश में कर जीवन जी, ले ये ही प्रभु का जाप है, ढोंगी के चक्कर में न आना, अपना गुरू तू आप है, निंदा चुगली चोरी जारी सबसे बड़ा पाप है, तंत्र मंत्र काला जादू मानवता पर श्राप है, मन चंगा तो कठोती में गंगा, फिर यहां सब मौज है, चारों उंगल रहं घी में, संतों की यहां मौज है। देखो र्स्वग का पास बनवाने आई चेलों की फौज है, ’’’’नफे सिंह कादयान गगनपुरी, अम्बाला, बराड़ा-133201 मोब.999180957 ©Nafe Singh Kadhian Ganganpuriya डोंगी गुरु
Ajay Raja
कुछ अलग करना है तो भीड से हटकर चलो, भीड साहस तो देती है लेकिन पहचान छीन लेती है,,,। ©Ajay Raja भीड से अकेले चलना
Puja Kumarl
किस्मत के साथ कभी चलना जरूरी है अपने आप से करो यह वादा साथ निभाना हमें खुद से जरूरी है ©Puja Kumarl खुद से चलना जरूरी है
Kavi Sunil Yadav
उम्मीदों से लड़े चल रहे है अकेले तो लोगो से क्या उम्मीद करना मंजिल ना मिली तो क्या हुआ हौसले बरकरार मिले ठोकरे खाकर भले ही बहोत जख्म खा चुके थे हम लेकिन उन्ही ठोकरों से चलना भी सीखा था हमने www.kavi sunil yadav.com ठोकरों से चलना सीखा था हमने
Ek villain
संतुलित तथा उत्कृष्ट चिंतन से परिपूर्ण मन ही मनुष्य जीवन की स्वर्गीय उन्नति का आधार स्तंभ है मान के संशय का उपहार में उलझा हुआ मनुष्य कभी भी कल्याण के पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता जहां संशय है वहां कभी भी ठोस एवं श्रेष्ठ निर्णय लेने की क्षमता नहीं उपज शक्ति द्रव्य सात्विक विचार संपदा से पवित्र हुआ मन मनुष्य का परम हितकारी बंधु है एवं मुक्ति के द्वार खोलने वाला है सन से तथा निकृष्ट संपदा संयुक्त मन मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है ©Ek villain मनुष्य को मन से नहीं चलना चाहिए