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Rani

हिजाब- पर्दा लरजना- काँपना

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मेरे इश्क़ की किताब,
तेरी चाहत से महकती है,
जैसे दिल का ये गुलाब
ले के शर्म ए हिजाब,
देख तुझे लरज़ती है।। हिजाब- पर्दा
लरजना- काँपना

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

प्यार मे तू भी तड़पना सीख ले । बात नफ़रत की समझना सीख ले ।।१ याद तेरी खींच लाती है मुझे । और तू कहती तडपना सीख ले ।।२ क्या कहें जो है मिटा त #शायरी

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प्यार मे तू भी तड़पना सीख ले ।
बात नफ़रत की समझना सीख ले ।।१

याद तेरी खींच लाती है मुझे ।
और तू कहती तडपना सीख ले ।।२

क्या कहें जो है मिटा तेरी बला ।
तू उसे कहती धड़कना सीख ले ।।३

देखकर दुश्मन हटो मत तुम कभी ।
शेर जैसे तू गरजना सीख ले ।।४

आदतन होता नहीं है इश्क भी ।
प्यार पे सब कर गुजरना सीख ले ।।५

हुस्न के पैरो तले जन्नत बसी ।
नाक उसपे तू रगडना सीख ले ।।६

इश्क में होती जुबाँ खामोश क्यों ।
इश्क से लब का लरजना सीख ले ।।७

गर खुशी है बाटनी तुझको जहाँ ।
तू सितारो सा बिखरना सीख ले ।।८

घेर ले दुश्मन कभी जो चाल से ।
तू प्रखर हँसकर निकलना सीख ले ।।९

               
२३/०५/२०२२ - महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्यार मे तू भी तड़पना सीख ले ।
बात नफ़रत की समझना सीख ले ।।१

याद तेरी खींच लाती है मुझे ।
और तू कहती तडपना सीख ले ।।२

क्या कहें जो है मिटा त

मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *

अच्छा लगता था जब वो मुझसे मिलती थी थोड़ा सा मुस्कुराती थी निगाहे झुका कुछ लजाती थी कभी दिल खोल खिलखिलाती थी मेरे घुंगरू बालों को संवारत

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Love  अच्छा लगता था जब वो मुझसे मिलती थी थोड़ा सा मुस्कुराती थी 
निगाहे झुका कुछ लजाती थी कभी दिल खोल खिलखिलाती थी 
मेरे घुंगरू बालों को संवारती थी सच अच्छा लगता था 
जब वो छिप कर मुझसे मिलती थी लेट होने पर नाराज़गी 
ना जाने देने की ज़िद उसके अकारण समय काटने वाली बहस 
उसकी वो बंदिशो पर झुँझलाहट बहुत सुकून मिलता था 
जब भी वो मुझसे मिलती थी मेरी हथेलियों पर उसका वो बोसा
मेरी उँगलियो को हौले से काटना मेरे काँधे पर सर रख घंटो निहारना 
दिन भर की शिकायतों का पिटारा मुझ पर निकालना 
बहुत याद आता है वो सब सुर्ख़ लबों का वो लरजना 
मेरे हाथो पे वो अर्धचंद्र निशाँ छोड़ना फिर शरमा कर मुँह ढाँपना 
तेरा वो मुड़ मुड़ कर देखना नज़रों से ओझिल होने तक 
एकटक निहारना सच तेरी क़सम बहुत अच्छा लगता था 
वो सब जो तू करती थी वो सब जो तूने किया 
ओ निराकार निर्मोही ना करना निराश मिलना दोबारा उस पार 
फिर शुरू करना है वो सफ़र उस पार से इस पार अच्छा लगता था 
जब वो मुझसे मिलती थी 
थोड़ा सा मुस्कुराती थी 
निगाहे झुका कुछ लजाती थी 
कभी दिल खोल खिलखिलाती थी 
मेरे घुंगरू बालों को संवारत
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