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    PopularLatestVideo
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Vicky Tiwari

#कला #संस्कृति #लोक_आस्था #केंद्र #माता #कुदरगढी_धाम #महोत्सव #संपन्न
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Ek villain

गीता कार मजरूह सुल्तानपुरी को एक बार उनके एक कविता के लिए जेल भेज दिया गया तब कांग्रेसमें शासन था और नेहरू जी प्रधानमंत्री थे संविधान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव न के दौरान यह बात कही कि कुछ बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया नरेंद्र मोदी को बेहतरीन कार बता दिया गया विमान माने जाने वाले कुछ तारों ने प्रधानमंत्री को लेकर अन्य कि प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में दिए गए व्यक्ति लता मंगेशकर के भाई हवा कविता को लेकर प्रकाश वाणी से निकाले जाने का उदाहरण दिया वहीं अनेक बातों को लेकर आरोप लगाने वालों ने जो उसके मुताबिक अतिथियों को जान लेते हैं कि मैं जरूर की गिरफ्तारी किस वजह से हुई थी आजादी के बाद वामपंथियों का सरकार के खिलाफ विद्रोह चल रहा था अलग-थलग क्षेत्र में काम करने वाले कम्युनिस्ट विरोधी में शामिल हो रहे थे हिंदी फिल्म जगत भी उसमें अछूता नहीं रहा था सिनेमा से जुड़े कुछ लेखक गीता कार्ड निदेशक और लेकर गीता कार निर्देशक और अभिनेता भी कुछ आता नहीं साले रहते मजूरू उनमें से एक थे मैं जरूर जिस कवि गोष्ठी अनुसार में जाते थे तो एक कविता वैश्य पढ़ते थे

©Ek villain #वैचारिक दासता से मुक्ति केंद्र करा

#kissday

#वैचारिक दासता से मुक्ति केंद्र करा #kissday #Society

11 Love

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Parasram Arora

अनुभव   की धरोहर
धूप की  गरमाहट से  पिघल कर
पसीने  का  निर्माण  करती  रही
मै जानता था यही दंश
एक न एक दिन  मेरे
रूपांतरण  का
केंद्र बिंदु  बनेगा

©Parasram Arora
  केंद्र बिंदु

केंद्र बिंदु #कविता

185 Views

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नितेश सिंह यादव

कुछ और भी है हसरतें हमारी
गंगा की सफाई अबकी बार करूँ 
वातावरण का झंडा लिए 
अनशन तेरे साथ करूँ 
देश मे गैरबराबरी के खिलाफ 
लड़कर जेल भी तेरे साथ चलूँ 
गाँव के किसान के लिए 
मजदूर के सम्मान के लिए 
तेरे साथ क्रांति गुणगान करू
लोहिया और भगतसिंह के
विचारों को सलाम करूँ 
जय हिंद कामरेड

कामरेड

12 Love

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Devesh Badoni

 #कवि
#कलम
#रचना
#कला
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Lokendra Thakur

मैं उम्मीद से उम्मीद जोड़ता हूँ 
ख्वाबो का थोड़ा कद बढ़ता हूँ
वैसे ही जैसे ताश के पत्तो का
एतिहात के साथ महल बनाना
पर आखरी छोर आते ही कौन
कर देता हैं हवा से चुगली
 वो आती हैं बस टूट जाती हैं 
उम्मीदे, बिखर जाते हैं वो ख्वाब 
ताश के पत्तो की तरह
पर 
हवा से कह देना रूका नहीं हूं मैं ।।
 
(लोकेंद्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से

7 Love

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Lokendra Thakur

रूकना नहीं, बहुत वक्त हैं शाम आने के लिए 
मैं दिन हूं तेरा, पर हूं बस  गुजर जाने के लिए।

पत्थर की ठोकर से संभले हो, तो शुक्रिया कहो
चंद मिलती हैं मोहलत,यहां संभल जाने के लिए ।

जिंदादिल पर तुम्हारी आसमां भी रक्स़ करे
वरना आये तो सब हैं,जमीं पर मर जाने के लिए ।

मन्नत के धागे बांध कर, इत्मीनान तो कर लेना
पर सब करना तुम्हें ही, कुछ कर जाने के लिए ।

अब के दुआये उनकी काम कर जाये तो अच्छा है 
कितना डूबेगें हम, दरिया पार कर जाने के लिए ।

इश्क़ लिखे बिना, दिल को तसल्ली नहीं है लोकेंद्र
ये शे़र जरूरी हैं उनका दर्द कम कर जाने के लिए ।
            लोकेंद्र की कलम से #लोकेंद्र की कलम से

2 Love

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Lokendra Thakur

🖋""कुछ लिख सकूं""🖋 (लोकेंद्र की कलम से) 
शीर्षक की अभिव्यक्ति में 
शब्द चयन, अर्थ तर्क की शक्ति में 
असमंजस के युद्ध में घिरा 
यही प्रयत्न हैं, विजय की हठ रखूं
हृदय प्रिय लगे,ऐसा कुछ लिख सकूं

काव्य,रस, से परिचित नही
भाषा का कण मात्र हूं
मैं कोई क्षितिज नही
भावना के ताल को प्रवाहमान कर
यही प्रयत्न हैं विशाल समुद्र रख सकूं ।
हृदय प्रिय लगे,ऐसा कुछ लिख सकूं ।

तम रूपी अज्ञान को कब
भेदेगी रश्मियां ज्ञान की
इसी तपस्या में लीन हूं
नया इतिहास रच सकूं
हृदय प्रिय लगे, ऐसा कुछ लिख सकूं। #लोकेंद्र की कलम से

2 Love

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Lokendra Thakur

""खामोशी""
कोरा कागज, महज कोरा नहीं है 
उस पर मेरी खामोशी लिखी हैं 
तुम चुपके पढ़ लेना सब कुछ
और लिख देना कुछ अल्फाज
ताकि और कोई पढ़ न सके 
मेरी खामोशी को। 
(लोकेंद्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से

16 Love

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Lokendra Thakur

२
मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु, इतना अवश्य प्रयत्न करूंगा
मन की यक्ष वेदना को, मेघो के संग तुम्हारे नगर भेजूंगा 
चिंताओ की रेखाएं अनगिनत 
विलुप्त तुम्हारे भाल से होगी
कपोल पर स्पर्श अनुभूति मेरी
बरखा संग शीत बयार से होगी
विचारो की कालरात्रि में, भौर का विश्वास पर रखना
मन का संपूर्ण तमस हरने को, प्रकाश प्रखर भेजूंगा
मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु....................... 

श्याम घटा छंट जाने के पूर्व 
तुम उनमें उष्ण आस भर देना
कह देना मेघो से अपने सब भाव
और उनमें तुम सांसे भर देना
उन सांसो को मेघ से लेकर स्वयं को अजर अमर समझूंगा
मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु................ 
(लोकेंद्र की कलम से ) #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

23 Love

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Lokendra Thakur

इश्क़ की गजल आसमां पर लिख दूं ,

ताकी हर बादल पढ़ता हुआ गुजरे

बरसे जमीं पर जब वो बारिश बनकर

तो साथ बरसे मेरे शेऱ के मिसरे ।

           (लोकेंद्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से

8 Love

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Lokendra Thakur

मेहनत मंजिल नजर में है, रास्ता भँवर में है
मैं मेहनतकश तो हूँ, पर तकदीर सफर में है... 
(लोकेन्द्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

6 Love

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Lokendra Thakur

मेरी आँखों को देख कर, एक साहिबे-इल्म ने बोला
तेरी संजीदगी बताती है, तुझे हंसने का शौक़ था..!!
(एक अजीज शायर) #लोकेंद्र की कलम से

9 Love

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Lokendra Thakur

मेरी तलाश क्यों कभी खत्म होती नहीं 
कैसे रोज मैं अपने में ही भटक जाता हूँ कही ।

लोकेंद्र की कलम से #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

5 Love

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Lokendra Thakur

इंसा हैं तू दरिंदा न बन 
जमीं पर रख पैर अपने 
तू परिंदा न बन ।

यह दुनिया बनीं हैं तुझसे 
पर अपनी दुनिया अलग चाहता है 
कम पड़ रही हैं जमीं 
जो अब तू फलक चाहता है,

शहर है पत्थरों का अब
जस्बात कहां मिलते हैं 
मिलते हैं दो शख्स पर
ख्यालात कहाँ मिलते हैं ,

छुपाकर हवाओ में क्यों
कितने शोले रखे हैं तूने
कौन सी तस्वीर मुकम्मल होगी
रंग स्याह घोले रखे हैं तूने,

मर चुकी हैं रूह तेरी 
जिस्म की लाश ढोह कर 
तू जिंदा न बन
इंसा हैं तू दरिंदा न बन 
जमीं पर रख पैर अपने 
तू परिंदा न बन ।।

लोकेंद्र की कलम से ✍️ #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

9 Love

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Lokendra Thakur

शीश पर विराजित चंद्र 
और कंठ में भुजंग 
अद्भुत रूप भूत भावन महाकाल के ।
त्रिनेत्र त्रिशूल धारी,
भस्म जिनको हैं प्यारी
स्वामी हैं जो तीनों लोक और काल के।।
नंदी की सवारी लिये, 
देव दानव सबके प्रिय 
शिवजी चले ब्याह रचाने को ।
ढोल नगाड़ो के संग,
भूत पिशाच देव और गण
बाराती बन चले नाचने गाने को ।।

मंगल गीत गाकर झूम रही हैं दिशाये
वेद मंत्र उच्चारित हुये,जीवंत हुई ऋचायें ।।

एक  हुई दो शक्तियां 
सृष्टि का पालन करने को
भाव विभोर हैं सृष्टि पूरी ,
आतुर हैं उज्जैनी उत्सव मनाने को।
नंदी की सवारी लिये, देव दानव सबके प्रिय 
शिवजी चले ब्याह रचाने को।।
लोकेंद्र की कलम से ✍️ #लोकेंद्र की कलम से

9 Love

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Lokendra Thakur

------------------------!!----------------------
पलको के भीतर ख्वाब हैं पलते
रतजगो में  ही कटती हैं रतियां ।

दिन में रहती हैं ऐसी खुमारी
पल पल बीते, तो लगे हैं सदियां ।

लब की सब कहन ,तो जग जाने है
समझ न सके कोई,मन की बतियां ।

सांझ को राह तके ऐसे मुझको
और घड़ी तके रहती हैं अखियां ।

पलको के भीतर ख्वाब हैं पलते
रतजगो में  ही कटती हैं रतियां ।

लोकेंद्र की कलम से✍️ #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

9 Love

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Lokendra Thakur

खुद से रूठे हैं यूं,कि आइने में अक्स नजर नहीं आता, 
दुआ देता हैं गर कोई, तो क्यों उसका असर नहीं आता

कम हकीकत थोड़ा फ़साना है इस मोबाइल के दौर में 
अब चिठ्ठी नहीं आती डाकिया अच्छी खबर नहीं लाता  

जुबां ने रख लिये अल्फाजो के साथ कितने ही सामान
बिकने को बाजार में अब जहर और खंजर नहीं आता 

कांटो की है साजिश की चमन के फूल में जंग जारी रहे 
गुलशन को लूटने को अब बाहर से सिकंदर नहीं आता

इतना बे-हिस होकर मिलता है जैसे रस्मदायगी हो बस 
आंखों से दिखता तो है वो पर दिल के अंदर नहीं आता 

लोकेंद्र की कलम से ✍️ #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

12 Love

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Lokendra Thakur

बिखर रहा उल्लास, 
निखर रहे सब रंग 
यौवन हैं मस्ती में 
झूम रहे सब संग ।

फागुन की इस बेला में 
ऐसे उड़ उड़े गुलाल 
वृंदावन में कान्हा खेले 
उज्जैनी में महाकाल ।।

    रंगो के इस पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं🙏
(लोकेंद्र की कलम से ✍️) #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

8 Love

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Lokendra Thakur

खुद से रूठे हैं यूं,कि आइने में अक्स नजर नहीं आता, 
दुआ देता हैं गर कोई, तो क्यों उसका असर नहीं आता

कम हकीकत थोड़ा फ़साना है इस मोबाइल के दौर में 
अब चिठ्ठी नहीं आती डाकिया अच्छी खबर नहीं लाता  

जुबां ने रख लिये अल्फाजो के साथ कितने ही सामान
बिकने को बाजार में अब  जहर और खंजर नहीं आता 

कांटो की है साजिश की चमन के फूल में जंग जारी रहे 
गुलशन को लूटने को अब बाहर से सिकंदर नहीं आता

इतना बे-हिस होकर मिलता है जैसे रस्मदायगी हो बस
आंखों से दिखता तो है वो पर दिल के अंदर नहीं आता
 लोकेंद्र की कलम से ✍️ #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

8 Love

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Lokendra Thakur

शीश पर विराजित चंद्र 
और कंठ में भुजंग 
अद्भुत रूप भूत भावन महाकाल के ।
त्रिनेत्र त्रिशूल धारी,
भस्म जिनको हैं प्यारी
स्वामी हैं जो तीनों लोक और काल के।।
नंदी की सवारी लिये, 
देव दानव सबके प्रिय 
शिवजी चले ब्याह रचाने को ।
ढोल नगाड़ो के संग,
भूत पिशाच देव और गण
बाराती बन चले नाचने गाने को ।।

मंगल गीत गाकर झूम रही हैं दिशाये
वेद मंत्र उच्चारित हुये जीवंत हुई ऋचायें ।।

एक  हुई दो शक्तियां 
सृष्टि का पालन करने को
भाव विभोर हैं सृष्टि पूरी ,
आतुर हैं उज्जैनी उत्सव मनाने को।
नंदी की सवारी लिये, देव दानव सबके प्रिय 
शिवजी चले ब्याह रचाने को।।
लोकेंद्र की कलम से ✍️ #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

10 Love

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Lokendra Thakur

शीश पर विराजित चंद्र 
और कंठ में भुजंग 
अद्भुत रूप भूत भावन महाकाल के ।
त्रिनेत्र त्रिशूल धारी,
भस्म जिनको हैं प्यारी 
स्वामी हैं जो तीनों लोक और काल के ।।

नंदी की सवारी लिये 
देव दानव सबके प्रिय, 
शिवजी चले ब्याह रचाने को ।
ढोल नगाड़ो के संग 
भूत, पिशाच देव और गण 
बाराती बन चले नाचने गाने को।। 

मंगल गीत गाकर झूम रही दिशायें
वेद मंत्र उच्चारित हुये जीवंत हुई ऋचायें।। 

एक हुई दो शक्तियां
 सृष्टि का पालन करने को ।
भाव विभोर हैं सृष्टि पूरी 
आतुर हैं उज्जैनी उत्सव मनाने को ।।

नंदी की सवारी लिये,
देव दानव सबके प्रिय, 
शिवजी चले ब्याह रचाने को । #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

7 Love

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Lokendra Thakur

क्षण क्षण अग्रसर तम
वर्चस्व स्थापित करने को 
दीप भी तत्पर हैं युद्ध में 
सर्वस्व ज्ञापित करने को ।

  भले ही हो सभी दिशायें तम के वशीभूत में, 
दीप भी नहीं मौन, खड़ा हैं शक्ति रूप में ।

तमस तो घोर हैं, घोर और कुद्ध होगा
आशवस्त हैं हम,साहसी दीप न अवरूद्ध होगा

गाथा दीप के विजय की युगों तक विदित होगी
तम की होगी पराजय और नवीन  उदित भौर होगी। 
(लोकेंद्र की कलम से ✍️) #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

12 Love

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Lokendra Thakur

दिन से तुम्हारा रिश्ता हैं और रात  मेरी लगती हैं
जहां मिलते थे हम,वो शाम न जाने किसकी थी।

दिन डूब जाता हैं रोज, और रात गहरी लगती हैं 
गुजरी हैं नाम किसी के,शाम न जाने किसकी थी। 

दिन तन्हा रहता है जब रात भी अकेली लगती हैं 
अब भी ख्वाबो में आती हैं,शाम न जाने किसकी थी।

लोकेंद्र की कलम से ✍️ #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

7 Love

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Lokendra Thakur

समय का फेरा रे,,,
ये कहाँ ठहरा रे 
समय का फेरा रे,,,
ये कहाँ ठहरा रे 
====================
भौर भये और फिर दुपहरी 
तपती धूप बने फिर सुनहरी।
अधूरी रही जो बाते सूरज की 
सांझ का दीपक करे हैं पूरी ।

सांझ ढले और बस रात का डेरा रे 
समय का फेरा रे, ये कहाँ ठहरा रे ।।
=====================
ओ मुसाफिर कौन साथ है तेरे
सब कुछ तो कयास हैं तेरे
अपनी दिशा को तू साध ले
जो बीत गया,अब नहीं हाथ तेरे

पीछे  तो हैं बस, अंधियार घनेरा रे 
समय का फेरा रे, ये कहाँ ठहरा रे ।।

लोकेंद्र की कलम से ✍️ #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

9 Love

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Lokendra Thakur

सांसो की जद में 
बिखरी जिंदगी हैं 
समेटने लगे तो
मिले हैं कई जख्म,

हर मर्ज की दवा
वक्त को बताते है 
पर जख्म ज्यादा है 
और वक्त हैं कम,

कितने पहलू हैं 
जिंदगी के सिक्को में 
जो दिखा सच हैं 
पर हकीकत है हम,

आइने से पूछो
क्या हकीकत हैं 
देखते सब हैं 
     नजर मिलाते हैं कम ।
              ( लोकेंद्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से

13 Love

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Lokendra Thakur

मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु ,इतना अवश्य प्रयत्न करूंगा 
मन की यक्ष वेदना को, मेघो के संग तुम्हारे नगर भेजूंगा। 

बूंद बूंद की पाती पढ़ना, 
फिर अंजुली से बहा देना
देना तुम भी संदेसा अपना,
पर मेरी पीर कह जाने देना,
  अश्रु भरे नयनों में, रिक्त स्थान थोड़ा पर रखना 
वहां बसने को स्वप्न मिलन का, प्रवर भेजूंगा
मैं कालिदास तो नहीं हूं किंतु ,इतना अवश्य प्रयत्न करूंगा 
मन की यक्ष वेदना को, मेघो के संग तुम्हारे नगर भेजूंगा। 
                                                      //निरंतर #लोकेंद्र की कलम से

#लोकेंद्र की कलम से

19 Love

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Lokendra Thakur

कृष्ण कन्हैया कहलाने को
मुख में ब्रहमांड बसाने को 
सुदामाओ को सखा बनाने को
दधि,माखन मिश्री खाने को
गौ माता को मान दिलाने को
वो मुरली की तान सुनाने को
                          बोलो कान्हा क्या  तुम पुनः आओगे ? 
कालिया, कंसो पर विजय करने को
पुनः धर्म की जय जय करने को
असत्य के भेदो को खोलने को
अन्याय विरूद्ध हर क्षण बोलने को
शिशुपालो के अपशब्द रोकने को
                       बोलो कान्हा क्या तुम पुनः आओगे? 
शांति प्रस्तावों को लाने को
द्रोपदियो की लाज बचाने को
अर्जुन को युग धर्म बताने को
विराट स्वरुप दिखाने को
सुदर्शन चक्र चलाने को
                          बोलो कान्हा क्या तुम पुनः आओगे?
राधा के बिन तरसने को
मीरा के मन में बसने को
सुर की आंखे बनने को
गीता का बखान करने को
भारत को पुनः महान करने को
                          बोलो कान्हा क्या तुम पुनः आओगे ?
             (लोकेंद्र की कलम से) #लोकेंद्र की कलम से

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