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सुरेन्द्र कुमार शर्मा

भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन छत पर बिस्तर लगा, इकट्ठा सब सो जाते थे देर रात तक गपशप ह

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स्कूल का पहला दिन भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

छत पर बिस्तर लगा,  इकट्ठा सब सो जाते थे
देर रात तक गपशप होती,  गीत सुनाते थे
मटके का पानी छत पर, क्या ठंडा होता था
फ्रीज औ" वाटर कूलर का, ना फंडा होता था

दृश्य उभरते हैं यादों में,  कितने ही अनगिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

रोज सवेरे उठकर जल्दी,  खेल-खेलने जाना
छुट्टी के दिन तो अकसर, दोपहरी में घर आना
सारे दिन ही मस्ती करना,हंसना और हंसाना
बूढ़ी दादी को तो मिलकर,जी भर खूब चिढ़ाना

खेल छोड़कर खाना-खाना, मीठी वो अनबन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

गर्मी की छुट्टी में सबका,  नानी के घर जाना
इतना शोर मचाना कि सब,देते लोग उलाहना
सत्तीताली, आईस-पाईस, खेल धमाल मचाना
डाल पेड़ पर झूला दिन भर, झूलें और झुलाना

खेल-खिलौने,  ठींगामस्ती, उम्र बड़ी कमसिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन
✍©#सुरेन्द्र_कुमार_शर्मा भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

छत पर बिस्तर लगा,  इकट्ठा सब सो जाते थे
देर रात तक गपशप ह

सुरेन्द्र कुमार शर्मा

#raining भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन छत पर बिस्तर लगा, इकट्ठा सब सो जाते थे देर रात #कविता

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गीत: बचपन के पलछिन

भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

छत पर बिस्तर लगा,  इकट्ठा सब सो जाते थे
देर रात तक गपशप होती,  गीत सुनाते थे
मटके का पानी छत पर, क्या ठंडा होता था
फ्रीज औ" वाटर कूलर का, ना फंडा होता था

दृश्य उभरते हैं यादों में,  कितने ही अनगिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

रोज सवेरे उठकर जल्दी,  खेल-खेलने जाना
छुट्टी के दिन तो अकसर, दोपहरी में घर आना
सारे दिन ही मस्ती करना,हंसना और हंसाना
बूढ़ी दादी को तो मिलकर,जी भर खूब चिढ़ाना

खेल छोड़कर खाना-खाना, मीठी वो अनबन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

गर्मी की छुट्टी में सबका,  नानी के घर जाना
इतना शोर मचाना कि सब,देते लोग उलाहना
सत्तीताली, आईस-पाईस, खेल धमाल मचाना
डाल पेड़ पर झूला दिन भर, झूलें और झुलाना

खेल-खिलौने,  ठींगामस्ती, उम्र बड़ी कमसिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन
✍©#सुरेन्द्र_कुमार_शर्मा #raining 
भूल नहीं पाया अब तक मैं, वो मस्ती के दिन
तैर रहे अब भी आँखों में, बचपन के पल-छिन 

छत पर बिस्तर लगा,  इकट्ठा सब सो जाते थे
देर रात

Manshi ....😉

आस पास..

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रहते है आस पास,.. पर साथ नहीं होते

आस्तीन के सापो  तुम ज़रा भी शर्मिन्दा नहीं होते 

जानते हो सब कुछ ,,

क्या तुम्हारे दिल मे ज़रा भी ज़ज्बात नही होते

जो हमे गिराने के लिये, खुद भी गिरने से पीछॆ नही रहते

   
                      ......✍️ma@nshi आस पास..

सुधीर

आस पास

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पास इतने रहो की फासला बना रहे
और इतने दूर भी नही की लोग अजनबी कहें...

-सुधीर #NojotoQuote आस पास

Chetna Vinay Tiwari

आस-पास #विचार

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रातों को जाग कर चांद को घंटों निहारा है 
उस चांद में दिखता मुझे तेरा चेहरा प्यारा है
फूलों की महक मुझे तेरी याद दिलाती है
चिड़ियों की चहक में भी तेरी ही आवाज आती है
जो हवाएं मेरे आस-पास हैं
वो कहती है हर वक्त.... हम दूर रहकर भी पास-पास हैं

चेतना विनय तिवारी

©Chetna Vinay Tiwari आस-पास

kishan mahant

#अपने आस पास #विचार

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Dil Shayari  There is no need to earn
money if you are kind. 
But, you well definitely earn
hearts of people around you.

©kishan mahant #अपने आस पास

Manish Sarita(माँ )Kumar

आस पास #BahuBali #Shayari

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mute video

अनुषी का पिटारा "अंग प्रदेश "

#आस #पास Thoughts #समाज

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वर्तमान परिवेशों में, रिस्तों को किस्तों में निभाने की प्रचलन प्रसस्त होने लगी है
सुख, चैन, अमन, चैन, सौहार्द, सौमनस्य, रीति, रिवाज अस्त, व्यस्त होने लगी है
क्या कहूँ किससे कहूँ ? यह दुनिया हस्त, पस्त  उग्र, व्यग्र असहज सी होने लगी है
स्वार्थी बन अपनी-अपनी गृहस्थी में उलझे अनसुलझे मौज मस्ती में  खोने लगी है

©Anushi Ka Pitara #आस #पास 

#Thoughts

Pooja Udeshi

पाई पाई दौलत काम ना आई

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पाई पाई जोड़ कर छोटी सी जन्नत 
बनाई है, बच्चो के लिए ये दौलत 
कमाई है, वो खुश रहे हमेशा 
यही सोच कर, जगह जगह ठोकर 
खाई है, बच्चे बड़े हो गये 
जन्नत से बाहर किसी 
प्लेटफॉर्म मे भीख मांगती माँ 
से पूछा, क्या इसी लिये तूने 
ये दौलत कमाई, की भीख मांगने 
की नौबत आई 😓🙏 पाई पाई दौलत काम ना आई

Pawan Bagal

##आईस पत्र## #story

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प्रिय आईस, 
साष्टांग नमस्कार,
     
        लिहायला कुठून सुरुवात करू काहीच उमगत नाही, कारण अचानक  वळवाचा पाऊस यावा आणि दारातल्या आंब्याचा मोहर सगळा गळून पडावा अगदी तशीच माझी अवस्था आहे बग. माहिती आहे मला तुझा स्पर्श आता होणे नाही कधीच, पण तुझ्यातल्याचं काही अंशांनी मी सुद्धा बनलोय ग.....😢

तुझं जाणं खरंच इतकं गरजेचं होतं का....? कस्तुरीचा गंध जसा अचानक लुप्त होतो आणि मग हरीण वेडपीस होतं अगदी तसंच तुझं लेकरू सुद्धा कावरं-बावरं झालंय ग....
कुठल्यातरी अंधाऱ्या गुहेत मला सोडून गेलीस तू...लावून एक छोटीशी पणती.….

आत्ताशी कुठंतरी पाऊलं टाकत होतो मी....पर चालता चालता तूच आठवायचीस. माझ्या नाजूक हातांना धरून तूच तर मला चालायला शिकवलंस खरं... तुझ्या कितीतरी आठवणींचा आता बाजार भरतो माझ्या मनाच्या कप्प्यात आणि त्या बाजारात मी हरवून जातो.

    कधी कधी मी एकटाच हसत बसतो मुश्कीलपणे तुझ्या आठवणींच्या झुल्यावर आणि तू पाठीमागून मला हेलकावे देतेस  , सगळं आभाळ फिरून आल्याचा भास होतो बग...पण तुझ्याविना सगळं शुन्य आहे हे कळलं आहे मला. त्याच शून्यापासून सुरुवात करायचं म्हणतोय पुन्हा एकदा..माझ्या सगळ्या चुका पोटात घेऊन मला माफ करशील काय....? कधी चुकून वेडं वाकड बोललो असलो त्यासाठी
तुझा आशिर्वाद राहू दे ग माझ्या पाठीशी त्याच्याशिवाय मी आधा-अधुराचं आहे.

        मनात तुझ्या आठवणीच ढग काळवंडल होतं. ते केव्हा ना केव्हा तरी बरसणारच होतं, मन मोकळं करावस वाटलं म्हणूनचं तर हा लेखन प्रपंच केला मी....कुणाच्यापाशी मोकळं करावं मन सुचतंच नव्हतं म्हणून तुलाच पत्रं लिहिलं बग. पत्रं मिळालं की परत मलासुद्धा पत्र कर तुझ्या पत्राच्या प्रतिक्षेत आहे मी.....
           
                                              कळावे,
                                         तुझाच बारक्या ##आईस पत्र##
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