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Vijay Bhingardive

#Journey शांता शेळके यांची माझ्या आवडीची कविता

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Vrishali G

वादळ वार सुटल ग लता जी गीत शांता शेळके संगीत ह्रुदयनाथ जी

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prakash maroti totewad

कवितासंग्रह:- पाऊलखुणा

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प्रतीक्षा
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
तू दारात उभी असताना
हळुवार पणे मी 
चोरट्या नजरेने
तुला पाहताना
एकमेकांच्या नजरेला
नजर भिडेल तेंव्हा
होकार माझ्या प्रेमाला
तू देशील केंव्हा
वाट पाहीन मी
तुझीच आहे प्रतीक्षा...
खूप आवडतेस मला
कसे सांगू मी तुजला
अबोल आपण दोघेही
फक्त हसू आणतो चेहऱ्यावर
आणि मग तुझ्या माझ्या प्रेमाला 
एकमेकांच्या होकाराची
गरज आहे प्रतीक्षा..
खरं सांगून टाक ना
असेल मी तुझ्या मनात
बघ तुझ्यासाठी
कितीवेळापासून
केव्हापासून
तू बोलण्याची
आपल्या प्रेमाला
होकार देण्याची
पाहिली आहे प्रतीक्षा
देशील ना मला होकार
पाहू ना मग प्रतीक्षा
तूच आहे माझ्या
 खऱ्या प्रेमाची प्रतीक्षा

■■■■■■■■■
(आशाई)

प्रकाश तोटेवाड
पंढरपूर कवितासंग्रह:- पाऊलखुणा

Pooja Udeshi

शांति तन शांति मन, लहरे भी शांत शांत

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शांत तन, शांत मन 
लहरे भी है शांत, शांत है सारा गगन 
पशु, पक्षियों का भी ख़ुश है मन 
घूमते है इधर उधर जहाँ नहीं मानव का भ्रम 
यही चाहते है सब जन, की 
शान्ति रहे दुनिया मे अब, ना हो कोई कांड 
ना कोई दुर्घटना सड़को मे अब 
ये महामारी एक दिन जरूर जाएगी तब 
दुनिया क्या सभी जश्न मनाएगे
बड़े, बूढ़े, बच्चे, सभी नाचेंगे, गाएगे, चला 
जाएगा  corona जल्दी, सबक दे 
जाएगा सभी को कि प्यार से रहो, हिंसक मत
 बनो दो दिन की है जिंदगी अच्छी 
तरह जीओ शांति तन शांति मन, लहरे भी शांत शांत

आशुतोष आर्य "हिन्दुस्तानी"

#कविता_संग्रह #व्यंग्यबाण 

ये सीमा-पार के लोग नहीं, ये अंदर के गद्दार है।
जिन्हे देश की नहीं सूझती, स्वार्थी बने वो बैठे है।
चीनी माल चाप रहे है, न जाने क्यों ऐंठे है।।
ऐसे लोगों में मुझको बस दिखता इक गद्दार है।
जिनको हिजड़े से ज्यादा कुछ कहना ही बेकार है।।
जिनको हिजड़े से ज्यादा कुछ कहना ही बेकार है।।

इन लोगों ने देश को न जाने क्या-क्या दुख दे डाला।
छीन लिया है इन लोगों ने गरीबों का निवाला।।
अब मुझको लगता है बस इन्हें राष्ट्र-नर्क में जाना है।
क्योंकी इनकी देशभक्ति कुछ और नहीं बहाना है।।
क्योंकी इनकी देशभक्ति कुछ और नहीं बहाना है।।

किसी को अल्लाह प्यारे है और किसी को राम ही न्यारा है।
अब इकलौता पड़ा बेचारा हिन्दुस्तान हमारा है।।
उन पंडों, उन मुल्लों से कह दो कि गर हम न होते।
तो फिर उनके अब्बू-अम्मा तलवे चाट रहे होते।।
तो फिर उनके अब्बू-अम्मा तलवे चाट रहे होते।।

गद्दारों के अंदर कोई देश-प्रेम का भाव नहीं।
देश के प्रति चिंतन करने का उनमें कोई चाव नहीं।।
शायद उनको देशभक्ति का मलहम अभी है लगा नहीं।
शायद उनको देशद्रोह का अंतिम क्या है पता नहीं।।
शायद उनको देशद्रोह का अंतिम क्या है पता नहीं।।

काट-काट इन चंडालों का सिर, लहू अधर पर धारेंगें।
हम हिन्द के रक्षक हिन्द-शत्रु के अधम का बोझ उतारेंगें।।
जो भी देशद्रोही देशद्रोह को, भारत में पधारेंगें।
कान खोलकर सुन लो हम दौड़ा-दौड़ा कर मारेंगें।।
कान खोलकर सुन लो हम दौड़ा-दौड़ा कर मारेंगें।।

ये हिन्द की धमकी नहीं, आशुतोष "हिन्दुस्तानी" की ललकारे हैं।
हम उन वीरों के वंशज, जिसने लाख शत्रु-दल मारे हैं।।
गुंजन में अब बस शेष बचे, "जय जय हिन्द" के नारे हैं।।
क्या कहू् और उनको मै जिनको, मनुष्यता भी धिक्कारे है।
यह कविता भी है ऐसी, जिसको हर पाठक स्वीकारे है।
बस यहीं कहूंगा "जय हिन्द", जो सवा अरब को तारे है।।
बस यहीं कहूंगा "जय हिन्द", जो सवा अरब को तारे हैं।।
       
                                   :- आशुतोष "हिन्दुस्तानी" #कविता_संग्रह #व्यंग्यबाण
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