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नितिन कुमार 'हरित'

कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं... एक वो जिसमें कन्याओं से पैर नहीं छुआते हैं, और एक वो जिसमें लोग इन्हें सरेआम जलाते हैं। एक #nkharit #NitinDilSe

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कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं...

एक वो जिसमें कन्याओं से पैर नहीं छुआते हैं,
और एक वो जिसमें लोग इन्हें सरेआम जलाते हैं।

एक वो जिसमें इनके पैर धोकर, भोग लगाते हैं,
और एक वो जिसमें इन्हें पेठ में ही गिराते हैं।

एक वो जिसमें कन्या देवी है, इसलिए भोग पाती है,
और एक वो जिसमें ये सिर्फ भोग के काम आती है।

एक में इसे लक्ष्मी, और एक में कलंक कहते हैं
सच, कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं।
- Nitin Kr Harit कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं...

एक वो जिसमें कन्याओं से पैर नहीं छुआते हैं,
और एक वो जिसमें लोग इन्हें सरेआम जलाते हैं।

एक

Nitin Kr Harit

कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं... एक वो जिसमें कन्याओं से पैर नहीं छुआते हैं, और एक वो जिसमें लोग इन्हें सरेआम जलाते हैं। एक #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine #कहतेनहींबनता

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कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं...

एक वो जिसमें कन्याओं से पैर नहीं छुआते हैं,
और एक वो जिसमें लोग इन्हें सरेआम जलाते हैं।

एक वो जिसमें इनके पैर धोकर, भोग लगाते हैं,
और एक वो जिसमें इन्हें पेठ में ही गिराते हैं।

एक वो जिसमें कन्या देवी है, इसलिए भोग पाती है,
और एक वो जिसमें ये सिर्फ भोग के काम आती है।

एक में इसे लक्ष्मी, और एक में कलंक कहते हैं
सच, कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं।।
 कहते नहीं बनता, मेरे देश में दो देश रहते हैं...

एक वो जिसमें कन्याओं से पैर नहीं छुआते हैं,
और एक वो जिसमें लोग इन्हें सरेआम जलाते हैं।

एक

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- बचपन के दिन भी वह देखो ,कितनी खुशियाँ दे जाते थे । मेले से मिट्टी की गाड़ी , जब बापू ले घर आते थे । बचपन के दिन भी वह देखो.... होता थ #कविता

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गीत :-
बचपन के दिन भी वह देखो ,कितनी खुशियाँ दे जाते थे ।
मेले से मिट्टी की गाड़ी , जब बापू ले घर आते थे ।
बचपन के दिन भी वह देखो....

होता था फिर कहाँ ठिकाना  , सब मिलकर शोर मचाते  थे ।
मूँगफली गाडी में भरकर , घर से चौबारे जाते थे ।।
मुँह से छुक-छुक की आवाजे , सुन कैसे वहाँ लगाते थे ।
गुब्वारें में भरी हवा को , हम कितना सभी बचाते थे ।।
बचपन के दिन भी देखो वह ...

ज्ञान ध्यान की बातें होती , गिरधर का सुमिरन भी होता ।
सागर साहब की रामायण , देख सभी फिर रहता रोता ।।
पहले थे संस्कार सिखाते , पंडित जी के पैर छुआते ।
देते थे आशीष सुनो वह , फिर हल्का सा वो मुस्काते ।।
बचपन के भी दिन वह देखो ......

चार आने अम्मा से मिले , रुपया बाबा से ले लेते ।
हँसते-गाते दिन भर रहते , खेल-कूद कर फिर सो लेते ।।
गली मुहल्ले में व्यापारी , जब फेरा करने आते थे ।
टिक्की चाट बतासा हम सब , तब गेहूँ से ले आते थे ।।
बचपन के दिन भी वह देखो .....

बचपन के दिन भी वह देखो , कितनी खुशियाँ दे जाते थे ।
मेले से मिट्टी की गाड़ी , जब बापू ले घर आते थे ।।

२७/०४/२०२३     -      महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-
बचपन के दिन भी वह देखो ,कितनी खुशियाँ दे जाते थे ।
मेले से मिट्टी की गाड़ी , जब बापू ले घर आते थे ।
बचपन के दिन भी वह देखो....

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