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Amarjeet Kumar
बायोग्राफी आँफ 420 लोग 420 लोग एक इंसान हैं क्या, वह इंसान नहीं एक शैतान हैं ? इंसान के रूप में इंसान नहीं हैं, वह शेर के खाल मे भेड़िया हैं। न आगे खुद बढ़ता हैं, नहीं किसी को आगे बढ़ने देता हैं। अगर हौसला जो रखें कुछ करने का, उसका भी काम बिगाड़ देता हैं। अगर मैं नहीं बढ़ सका आगे, तो किसी और को भी नहीं बढ़ने दुँगा आगे। इंसान के रुप में भेङिया हूँ, यही मेरी पहचान हैं। By Amarjeet Kumar बायोग्राफी आँफ 420 लोग
Dileep Pandey
यही तो थी अभी,कहाँ गयी तू ओ मेरी तकदीर। बहुत अधबनी पडी़ है मेंरी कृतियों की तस्वीर। कृति
Pushpendra Pankaj
मिले रूप को कुरूप ना कर, प्रभु का दिया सभी सुन्दर । नारद निज रूप हुए विमुख, श्री हरि ने बना दिया बंदर।। पुष्पेन्द्र "पंकज" ©Pushpendra Pankaj प्रभू की कृति सर्वोत्तम कृति
Parasram Arora
किसी ने ये रहस्य मुझे बताया भी था कि हमारी आत्माये हमारे भीतर भौतिक न होकर निराकार और आवरण हीन पृष्ठ भूमि मे खुदको छुपा कर हमारे साथ रहती है ये भी सुनेने मे आया था कि ये आत्माये अपनी निराकार देह को या यों कहे कि अपनी नग्न देह को ढकने के लि हवाओ से बने वस्त्रो का भी.इस्तेमाल करती है lकाश सिर्फ एक बार मैं उसकी नग्न आकृति को हवाओं के वस्त्र. पहने हुए देख पाता और उसे अपने केमरे में कैद कर लेने मे कामयाब हो जाता तों वो शायद मेरी पहचान की पसंदीदा तस्वीर बन सकती थी और दुनिया के लिये एक अमूल्य कृति भी l ©Parasram Arora अमूल्य कृति
Mohan Sardarshahari
सफेद जूते, नीला स्कर्ट खुले बाल बड़े स्मार्ट हरे बगीचे की पाल बैठी वह लगती है अद्भुत कृति।। ©Mohan Sardarshahari अद्भुत कृति
Harvinder Ahuja
दीपक कहता है, तुम मेरी निधि का उजाला हो, तुम कृति हो,मेरे प्यार के बंधन की, बस अब तुम ही मेरी अभिलाषा हो, लौट आओ उन राहों से, जिस में कांटे ही कांटे हैं, तुम कृति हो,मेरे प्यार के बंधन की, तुम मेरी निधि का उजाला हो, कोई बसता है,दूर हम से, जो इस घर का उजाला है, तुम से आस ही है, अब मुझको, थाम लो अब उसको, जिसने तुम्हें सम्हाला है, वो ममता अब रोती रहती है, उस को बस तुझ से आस है, मेरी ममता समझ जाओगी, यह मेरा विश्वास है। ©Harvinder Ahuja , # मेरी कृति
हृदय सम्राट् यशोदानन्दन "खुराफाती"
मृगतृष्णा सी तुम दिखती हो दूर होकर भी पास लगती हो ©️हृदय सम्राट यशोदानंदन "खुराफाती"✍️ #हृदयसम्राट #खुराफाती #कृति
Ritik Yadav
फ़िर उसे याद आ रही होगी फ़िर वो आंशू बहा रही होगी जब कभी फ़ोन में कुछ कर रही होगी तब मेरे what's app में आकर वो मेरी chatting को पढ़ रही होगी राह में जब कभी वो अकेले चल रही होगी मेरी बातों को गुन गुना रही होगी जब कभी याद में मेरे वो डूबती होगी तब वो खुद को मेरा बता रही होगी जब किसी के अधर को वो चूमती होगी तब झिझक कर वो अचानक सोचती होगी फ़िर उसे याद आ रही होगी तब वो आंशू बहा रही होगी जब कभी उसने अफ़साना बनाया होगा उसमे मेरी तुर्बत बना रही होगी फ़िर उसने अपने कशिश को देखा होगा तब वो अपने को मुकद्दस बता रही होगी जब उसकी सखियाँ उससे कुछ पूछती होगीं तब वो मुझको अपना प्रियतम बता रही होगी जब कभी देख कर मुझको रूबरू वो अपनी सखियो को मुज्दा सुना रही होगी जब कभी छत पर वो अकेले घूमती होगी तब वो नजर में मुझको ही ढूढती होगी जब किताबों को पलट कर देखा होगा तब किसी पन्ने में मेरी तस्वीर छप रही होगी जब हवा का कोई झोंका आ रहा होगा तब कोई कवि अपने गीत गा रहा होगा जब कोई खुद को भूलने को कहता होगा तब उसे क्या खबर होगी मेरे दिल में क्या गुजर रही होगी फ़िर उसे याद आ रही होगी फ़िर वो आंशू बहा रही होगी ✍✍ रितिक यादव ✍✍ मेरी नयी कृति