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Ranjeet Singh Dabli
परवान चढा है रंग ..., गुजारिशे फ़िर हिसाब मांगेगी आज ! ( रणजीत सिंह डाबली ) ग्रामीण परिवेशी!
Penman
मैं तेरे परिवेश में सुरक्षित हूं, मां मैं तेरी दुआओं के साथ रहता हूं। ©Tarun RAJPUt #परिवेश
गुनेश्वर
तुम कैसे बुनोगी महीन शब्दों का जाल तुम कर्तव्यनिष्ठा की जिजीविषा से ओतप्रोत हो और व्यवस्था तर्जनी के संस्कारों में आकंठ डूबा हुआ है क्या तुम हलाहल पी पाओगी ? तुम्हारी परवरिश खिलखिलाने के प्रवाह में प्रफुल्लित हुई है कोशिश करना हलाहल अमृत कर पाओ पर घुटन की गंभीरता लिये नही चली आना जब भी ऐसा लगे अपने घर के उस पुराने प्रफुल्लित प्रवाह में अपना परिवेश
Pushpendra Pankaj
मान के बदले में मान मिल जाए यह सौभाग्य है, आज कल के लोग बहुत संगदिल से हो गए । चौपालों पर बैठकर बातें,हसीन भोर,सुहानी रातें , नए पन की रोशनी में ,जाने कहाँ खो गए।। पुष्पेन्द्र "पंकज ©Pushpendra Pankaj #kitaab बदलता परिवेश
Usha bhadula
बदलता परिवेश न जाने क्यों कोई आशा दे जाते हैं फिर न जाने कहाँ गुम हो जाते हैं एक के बाद एक दूजा फिर नयी उम्मीद लाते हैं वो भी कहीं गलियारों में कहीं खो जाते हैं तोड़ के हम सारी हदें पार कर जाते हैं खाके ठोकरें लौट फिर घर को आते हैं क्यूँ हम अपनी संस्कृति को भूल जाते हैं तंग वस्त्र पहन खूब इठलाती हैं अंग्रेजी बोले जो उसे ही अपना दोस्त बनाते हैं हिंन्दुस्तान में रह हिंदी बोलने में शरमाते हैं न जाने क्यूँ हम स्वदेशी वस्तु लेने में हिचकिचाते हैं दो मिनट मंदिरों में जाने के बजाए हम देर रात तक क्लबों में समय बिताते हैं हर दिन माँ के हाथ के पकवान फीके बोल हम पीछा बर्गर खूब खा जाते हैं साथ में जूस की जगह जहर समान कोल्डड्रिंक पीते जाते हैं माँ बाप के लिए दो पल नहीं मगर फोन पर खूब बतियाते हैं न जाने क्यूँ खुद को भारतीय फिर बताते हैं। ©Usha bhadula #sadak बदलता परिवेश