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सिद्धार्थ गौतम
कितना मुश्किल है किसी और का हो जाना जैसे उधार हो साँस और जीये जाना। #निशब्द
Gaurav Mathur
निशब्द है आज मेरे अल्फ़ाज़ , शायद फिर आज मेरे अंदर उमड़ पड़ा है मानवता का सैलाब , अंधेरा था घनघोर उस अंधेरे में आवाजे थी झकझोर, किसी ने देखा नहीं, किसी ने दिखाया नहीं, किसी को दिखा नहीं .. किसी ने हिंदुत्व का मतलब समझाया, किसी ने आस्था को अफीम बताया, पर इनके कोई काम ना आया पर इनके कोई काम ना आया ये अल्फ़ाज़ सिर्फ अल्फ़ाज़ नहीं ✍🏼 #निशब्द
कवी दिपक सोनवणे
मनाचा निश्चय जर ठाम असेल ना तेव्हा रात्र काय आणि दिवस काय आपले काहीच बिघडवू शकत नाही निश्चय
Nilbrothers
सुना.. है...! " चाँद " उतराथा कल... " बारिश " की टपकती "छत" पर.. रात गुजर गयी... दिन निकल आया... मायूस ख्वाब..उधड से गये... शानो से यूँ बहकर... कोई "आहट"....नही.....!!!! ख़ामोशी के बादलों में.... "दर्द" सना हुआ था..!! सीने में वहम अभ्भी बना हुआ था..!! अपनी ही "जिद" पे अडा था.. जाने "क्यूँ" खडा था..!! "सन्नाटों" की शहनाई यों मै जिक्र "तेरा" ही तो छिड़ा था....!! -अनामिक #निशब्द
Nilbrothers
"आज कल " तेरे हिस्से का किस्सा भी में क्यूँ सुन रहा हूँ.... तु खामोश है, बेगुनाह की तरह जुल्म क्यूँ सह रहा हूँ... रिश्तोंका लिबास है फकत बदन ये कफन क्यूँ मै ढो रहा हूँ... आया नही जिक्र तेरा आज भी क्यों याद तुझे कर रहा हूँ... मंजिले हासिल तुझको, मगर बेगरजसा क्यूँ चल रहा हूँ... तिनका-तिनका बहगई ख्वाईशें बस आहटें अब सुन रहा हूँ... लमहों का क्या,गुजर जाएंगे यूँ ही बस हालातों से डर रहा हूँ.... नही त्तालुक रहा, अफसानोसे मेरा क्यों फर्ज तेरा, अदा कर रहा हूँ.... मिलजाये जिंदगी बाद मौत के ही बस यही... " दुआँओ " मै राह गुजर मै कर रहा हूँ..... -अनामिक #निशब्द
Nilbrothers
आल्या पावलांनी गेला हा ही दिवस असाच.... कैफ त्या जागरास अन फूलती निखारे उगाच.... भोग यातनांना ही इथे हे झाले स्वप्न चिरंतन मगाच... का...काहुरे....?? उठती येवून पुन्हा पुन्हा आकंठ व्याकुळ मी तसाच..... -अनामिक #निशब्द
Abhi
शब्दों की वर्णमाला से अक्षर की माला को तुमने जो पिरोया है। ईंट ,पत्थर ,बजरी कुछ नहीं लगी मेरे घर में तुमने अपनी अलकों से उसे संजोया है। #निशब्द
Aastha.Rawat
निशब्द शांत हूं तो कहेंगे बोलो आवाज शक्ति है बोल देती हूं तो कहेंगे कितना बोलती हो लड़कियां को शोभा नहीं देता गंभीर हूं तो कहेंगे उम्रदराज लोगो जैसी बाते करती हो चंचल हूं तो कहेंगे कितनी बचकानी बाते करती हो आधुनिक हूं तो कहेंगे जरा तो लिहाज करना सीखो ससुराल जाओगी देहाती हूं तो कहेंगे कितनी दखियानुसी सोच रखती हो लिखती हूं तो कहेंगे क्या करती हो समय बर्बाद कुछ काम करो हुक्म देना आता होगा तुम्हे पर हमे नुमाइंदगी करना भी नही आता बुरा भला कहना आता होगा तुम्हे हमे अब तुम्हारी सुनना तक भी ना भाता निशब्द अभी भी तुम नहीं निशब्द अभी भी हम है। पर हमारी निशब्दता जीत के बाद का सुकून है तुम्हारे शब्द हमारी जीत का दुख है (Why will society always take our decision) ©Aastha.Rawat निशब्द।