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Nova Changmai
दर क्या है??? एक लंबा हट्टा कट्टा आदमी उसी आवाज से बात कर रही है, और तुम सुनकर डर रही हो, उसको को दर नहीं बोलता है। जो बीते हुए कल है उससे शिक्षा लो, और जो आज करने वाले हो उसे किया नया क्या कुछ कर सकते हो उसके बारे में सोचो ,और डरो उस समय के लिए जो भविष्य में तुम्हारे जीवन को सुनहरी अक्षर में लिखकर जीवन को बदल सकता है। #सीखना #शायरी#कविता#रोमांस#मीनिंग #Motivational #Good #evening
Sarita Shreyasi
संतति को संस्कार देगी, समाज को सभ्य बनायेगी, प्रतिष्ठा की परिभाषा बदलेगी, गरिमा से परिचय करवायेगी, पुत्र को भी संयम सहिष्णुता सिखायेगी, संतुलित मर्यादा पुरूष बनायेगी, बस एक पुत्रवधू बनने के लिए, बेटियाँ ब्याही नहीं जायेंगी। बस एक पुत्रवधू बनने के लिए, बेटियाँ ब्याही नहीं जायेंगी।
Sarita Shreyasi
शक नहीं कि वृद्ध माता-पिता, आज सचमुच तकलीफ में हैं, पर प्रश्न ये है कि यहाँ लिंगभेद क्यूँ है? बस पुत्र की माँ ही वृद्धाश्रमों में पायी जाती है,क्यूंकि पुत्रवधू से उनकी जिम्मेदारियाँ नहीं निभायी जाती हैं। निज संतान की गैर जिम्मेदारी, स्नेह से नज़रअंदाज़ हो जाती है, पराए घर से आयी पुत्रवधू ही, कटघरे में खड़ी की जाती है। सगे बेटे बेटी रिहा हो जाते है, गैर बहू दोषी ठहरायी जाती है। बुद्धिजीवियों विचारकों द्वारा, अश्रु नदियाँ बहायी जाती है, इलेक्ट्रोनिक संवादों में, सहानुभूतियों की बाढ़ आ जाती है। आजीवन कष्ट से निबाही, माँ-बाप की जिम्मेदारी पर, बँटे हुये बेटे की लाचारी पर, करुण कथाएँ लिखी जाती है। पुत्रवधू की माँ किसी चर्चा में, ढूंढ के भी नही पायी जाती है, उस माँ की अनसुनी, बेटी के नए घर के शोर में खो जाती है। शक नहीं कि वृद्ध माता-पिता, आज सचमुच तकलीफ में हैं, पर प्रश्न ये है कि यहाँ लिंगभेद क्यूँ है? बस पुत्र की माँ ही वृद्धाश्रमों में पायी जाती
prashant Singh rajput
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Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त
Sarita Shreyasi
एक मनमौजी किशोर बेटा ब्याहते ही,आज्ञाकारी जिम्मेदार पुत्र हो जाता है, माँ-बाप की अच्छी समझदार बेटी,बहू बनते ही कैसै बिगड़ जाती है। बेटा जो किसी की नहीं सुनता था,पहले दिन से ही बीवी की सुनने लगता है, कलतक मनमानी करता था,आज उसके ही कहने पर चलता है। बीवी के बल पर हर बेटा,श्रवण कुमार बनना चाहता है, पत्नी पर आश्रित,पराजित पुत्र,बस लाचार हो कर रह जाता है। कितने श्रवण कुमार हैं,जो अकेले ही पालनहारों की सेवा करते हैं, अपनी सुख-सुविधा तज कर कष्ट से भी माँ-बाप को अपने दम पर खुश रखते हैं। कल भी मनमानी करते थे,आज भी अपने ही मन की करते हैं, खुद से नहीं निभायी जाती तो,जिम्मेदारी संगिनी के सर मढ़ते हैं। बचपन का लालन-पालन हो,या हो पाठशाला की परीक्षा, दोनों के लिए जगते मात-पिता,दोनों से जुड़ी रहती उनकी ईच्छा। पर जब कर्तव्य की बात आती है,तो परंपरा पुत्र का मुख ताकती है, पुत्र अकेला नहीं होता तभी पुत्रवधू की बारी आती है। ब्याहते ही पुत्री जनक-जननी के ऋण से उऋण हो जाती है, क्यूँकि पुत्री के कर्तव्यों को भूला कर,पुत्रवधू अपने पति का ऋण चुकाती है। पुत्री से पुत्रवधू बनते ही,माँ-बाप,मंच से नेपथ्य में चले जाते हैं, यही वजह है कि वे संतति में,एकलौती बेटी नहीं चाहते हैं । एक मनमौजी किशोर बेटा ब्याहते ही, आज्ञाकारी जिम्मेदार पुत्र हो जाता है, माँ-बाप की अच्छी समझदार बेटी, बहू बनते ही कैसै बिगड़ जाती है। बेटा जो