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Vivek Dixit swatantra
ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे रंग-ए-गुल और बू-ए-गुल दोनों हवा हो जाएँगे आँख से आँसू निकल जाएँगे और टहनी से फूल वक़्त बदलेगा तो सब क़ैदी रिहा हो जाएँगे फूल से ख़ुश्बू बिछड़ जाएगी सूरज से किरन साल से दिन वक़्त से लम्हे जुदा हो जाएँगे कितने पुर-उम्मीद कितने ख़ूबसूरत हैं ये लोग क्या ये सब बाज़ू ये सब चेहरे फ़ना हो जाएँगे अहमद मुश्ताक़ ©Vivek Dixit swatantra मुश्ताक अहमद
Mehfil-e-Mohabbat
मैंने कहा की देख ये मैं,ये हवा,ये रात उसने कहा की मेरी पढ़ाई का वक्त है ©राहुल रौशन ♥️अहमद मुश्ताक साहब♥️
M Z Naumani Official
अब भी बैठे उसी सड़क पर तन्हा तेरे इंतज़ार में हम जहां तूने कहा था अगली मुलाक़ात इसी जगह होगी ©M Z Naumani Official मुश्ताक ज़मीर नौमानी #Nofear
Mehfil-e-Mohabbat
मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है वो इसी शहर की गलियों में कहीं रहता है इक ज़माना था कि सब एक जगह रहते थे और अब कोई कहीं कोई कहीं रहता है ©Mehfil-e-Mohabbat #Lights ✍️❤️ अहमद मुश्ताक ❤️✍️
Dhani Dahire
इश्क़ के साथ वफ़ा मिलता है कहीं-कहीं...! मुश्ताक़ तो हूँ मैं भी पर मिला मुझे भी नहीं.!! ©Dhani Dahire #writer मुश्ताक = इच्छुक #dhanidahire #Hindi #Life #Love #Quote #Nojoto
writer abhay
बज़्म-ए-जानाँ मे बैठे हैं सब. शाख़ से जैसे कि टूटे हैं सब. चेहरे पर चेहरा सब के ही. जो दिखाई दे वो अपने हैं सब. शे'र कोई तीर है क्या, जिस से. चोट खा कर आह भरते हैं सब. की तिरा दीदार हो महफ़िल में. सोच कर मुश्ताक बैठे हैं सब. यूं किसी को चुप से सुनते ना थे. जब वो बोले चुप से सुनते हैं सब. जब मिलूं तो कोई कुछ ना कहता. पीठ पीछे मेरी कहते हैं सब. फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ेलून अर्थ :- बज़्म-ए-जानाँ - माशूको की सभा शाख़ - डाल मुश्ताक - उत्साहित, इच्छुक
Anant Nag Chandan
उनसे तारे भी तरसते हैं लिपटने के लिए आपके शहर से होकर जो कदम आते हैं उमेर मुश्ताक ©Anant Nag Chandan उनसे तारे भी तरसते हैं लिपटने के लिए आपके शहर से होकर जो कदम आते हैं उमेर मुश्ताक
Bol Urdu Studio
Mushtaq Darbhangvi ©Bol Urdu Studio असाइशों की गोद में हासिल नहीं हुआ । पाया था जो सुकून कभी मां की गोद में । मुश्ताक दरभंगवी
Ganesh Joshi
Autumn दोनों ही तो सच्चे थे इल्ज़ाम किसे देते कानों ने कहा सहरा आंखों ने सुना पानी ~अहमद मुश्ताक़ ©Ganesh Joshi दोनों ही तो सच्चे थे इल्ज़ाम किसे देते कानों ने कहा सहरा आंखों ने सुना पानी ~अहमद मुश्ताक़# shayari#
कर्म गोरखपुरिया
वो मेरे दिल का ताजमहल है मुश्ताक, मैं उसको ना देखू तो रंजो का समा जलता रहता है, हमारे बीच मे बात विवाद मसले फसाद सब है मुश्ताक मगर इश्क़-ए-रवानी बेजा लडना झगड़ना चलता रहता है मैं खामोश तो रहता हूं उसके सामने मुश्ताक, मगर ये भीतर बैठा मन ना जाने उसे क्या क्या कहता है और वो बेबाकी से सबकुछ कह देती है मुश्ताक मगर ये बावला सा दिल है जो उसकी हर बात सहता है ना जाने कितने घर बदले मोहब्बत मे दिवानो ने एक मेरा भी तो दिल है मुश्ताक जिसमे मेरा कोई अपना रहता है ❤️❤️❤️ Ashish Mishra ©कर्म भक्त कवि [आशीष मिश्रा] एक मेरा भी तो दिल है मुश्ताक जिसमें मेरा कोई अपना रहता है 😊😊😊 by Ashish Mishra/Karmbhakht kavi #Women