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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

उम्र चालीसा लेकर बैठा , कहे बेरोजगार । कोष रहा किस्मत को हर पल होकर वह लाचार ।। क्यों है इत #कविता #Agnipath

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उम्र चालीसा लेकर बैठा ,
                          कहे बेरोजगार ।
कोष रहा किस्मत को हर पल 
                      होकर वह लाचार ।।
क्यों है इतने बेरोजगार ।
                       जब सोचीं सरकार ।
खल बल दल सब लेकर आए
                         करने आत्याचार ।। १

टूटी खाट फूटी झोपडी ,
                            करते बातें लाख ।
ढूँढ़ रहें है नैन निवालें ,
                       रखकर इज्ज़त ताख ।।
हुआ आज हल मसला इनका ,
                         फिर भी कहतें चाल ।
जाकर पूछों कोई इनसे 
                           कहें क्यूँ हैं मलाल ।। २

***********************

धनकुट्टी के जैसे कुटते ,
                      राजनीति की रोटी बनते ।
भूखे पेट भाव जो मिलते ,
                     गीत उन्ही के गाया करते ।।
आज किया इतना जो देखो ,
                  क्या पेट किसी के ना भरते ।
फिर क्यों करते अग्नि जली ये ,     
                 अग्नि पथ का समर्थन करते ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR उम्र चालीसा लेकर बैठा ,
                          कहे बेरोजगार ।
कोष रहा किस्मत को हर पल 
                      होकर वह लाचार ।।
क्यों है इत

Gautam Kumar

#Second day नया साल का पहला दिन और हर जगह बधाई पर बधाई और दुसरे दिन में फिर से वही ख़ामोशी, फिर से झूठी उम्मीदें फिर से वही ग़रीबी का मज़ाक, #Hindi #कविता #nojotohindi #secondday2019

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नया साल का पहला दिन
और हर जगह बधाई पर बधाई
और दुसरे दिन में फिर से वही ख़ामोशी,
फिर से झूठी उम्मीदें
फिर से वही ग़रीबी का मज़ाक,
फिर से महिलाओं पर आत्याचार,
 फिर से मासूम बच्चीयो का बालात्कार,
फिर से एक बेटी का कफ़न
एक मां का कफ़न
एक बहन का कफ़न 
और ना जाने कितने रिश्ते होंगे,
जो मात्र एक कफ़न पहनाकर सुला दिए जाएंगे,
फिर एक भरा-पुरा परिवार टूटता दिखेगा
हम तो कह देंगे नया साल और एक उम्मीद की किरण
पर साहब यहां तो  लाखों लोग एक डर में साल बिताते हैं। #second day
नया साल का पहला दिन
और हर जगह बधाई पर बधाई
और दुसरे दिन में फिर से वही ख़ामोशी,
फिर से झूठी उम्मीदें
फिर से वही ग़रीबी का मज़ाक,

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

बैठो जन जब चार तो , थोडा करो विचार । आज प्रकृति पे क्यों यहाँ , होता आत्याचार ।।१ काट रहें है वन सभी , बेंच रहे हैं नीर । समझ #Photos #कविता

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बैठो  जन  जब  चार  तो , थोडा करो विचार ।
आज प्रकृति  पे क्यों यहाँ , होता आत्याचार ।।१

काट  रहें  है  वन  सभी  , बेंच  रहे  हैं  नीर ।
समझ नहीं तू क्यों रहा , आज धरा की पीर ।।२

अमृत सब नि:शुल्क था , मातु धरा उपहार ।
जीव जन्तु भी मग्न थे , आकर  इस संसार ।।३

धरती माँ  के  प्रेम  से , चलता  था  संसार ।
आये फिर  ज्ञानी  बड़े , कर  बैठे  व्यापार ।।४

स्वप्नों में  क्रोधित हुए , आज  वीर  हनुमान ।
क्यों देना तू चाहता , प्राणो  का  बलिदान ।।५

उठो भोर में  नित सखा , जपो नाम श्री राम ।
अन्त समय उनके चरण , बने  तुम्हारे  धाम ।।६

सुमिरन प्रभु  का नाम हो , कहे  वीर हनुमान ।
अपने-अपने कष्ट का , सुन लो  सभी निदान ।।७

१५/०९/२०२२     -       महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR बैठो  जन  जब  चार  तो , थोडा करो विचार ।
आज प्रकृति  पे क्यों यहाँ , होता आत्याचार ।।१

काट  रहें  है  वन  सभी  , बेंच  रहे  हैं  नीर ।
समझ

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

🙏🌹सादर समीझार्थ🌹🙏 पटल आनन्द समूह अटूट रिश्ते🌷 विषय - शेखर आजाद 🇮🇳 मात्रा भार - 16 -11 आजादी के दीवानों में , #कविता

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आजादी के दीवानों में ,
                    शेखर थे आजाद।
संग चलें थे भगत सिंह भी , 
                     करते जिंदाबाद ।।
गोरों से बचने की खातिर , 
                खुद से ली थी कौल ।
अपने सिर में गोली मारी ,
                  अपनी ही पिस्तौल ।।
पंद्रह कोड़ो की सजा मिली , 
                 किया स्वयं पर नाज ।
स्वतंत्रता को पिता बताया ,
                  और किया आगाज ।।
गोरों को लोहा चुगवाया , 
                    बना लिया समुदाय ।
हर गोरे के हाथों से सब , 
                    छीन लिया व्यसाय ।।
जितना आत्याचार किया था , 
                  उसका लिया हिसाब ।
घुटनों के बल दौड़े फिर वह , 
                      ऐसा दिया जवाब ।।
नाम अमर कर गये जगत में
                       वो थे वीर सपूत ।
बच्चा बच्चा बोल रहा है 
                       तुम्हीं हिंद के पूत ।।
        
                  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 🙏🌹सादर समीझार्थ🌹🙏

पटल    आनन्द समूह अटूट रिश्ते🌷
विषय    -  शेखर आजाद 🇮🇳
मात्रा भार  -   16 -11


आजादी के दीवानों में ,

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मोहरें पैसो का लालच दे दे कर । व्यापारी धन्धा खूब किए मजदूरों की मजबूरी से सुख चैन भी देखो छीन लिए फल फूल रहा व्यापार वहां नेता उसमें कूद #कविता

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मोहरें

पैसो का लालच दे दे कर ।
व्यापारी धन्धा खूब किए 
मजदूरों की मजबूरी से
सुख चैन भी देखो छीन लिए
फल फूल रहा व्यापार वहां
नेता उसमें कूद लिए 
चालीस पे चार भारी हुए
मिल भ्रष्टाचार खूब किए 
गूँगी बहरी बन गई जनता
हरखूँ के बैल बना लिए
सत्ता और सरकारी नौकर 
को खाने को खूब दिए 
पिज्जा बर्गर खाने वाले 
पानी के बदले खून पिए 
बढती मँहगाई से देखो
रिश्तों मे ऐसी चोट लगी
चार कमाते चालीस खाते
अब तो बस किताब दिखी
रोजगार घटा व्यापार बढा
जन पे आत्याचार बढा
लेकिन उस पर रोक नही
यह चोट बने नासूर नही
संभलो अब सत्ता धारी
यह खेल और आसान नही 
हर घर में कल माव वादी हो
क्यों करते हो मजबूर इन्हें
पैसो का लालच दे देकर 
सब कुछ इनका लूट लिए
व्यापारी धन्धा खूब किए २

२६/०२/२०२३ -
        महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मोहरें

पैसो का लालच दे दे कर ।
व्यापारी धन्धा खूब किए 
मजदूरों की मजबूरी से
सुख चैन भी देखो छीन लिए
फल फूल रहा व्यापार वहां
नेता उसमें कूद

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

त्रिपुरा सुर का जब बढ़ा , जग में आत्याचार। आकर भोलेनाथ ने , स्वयं किया संहार ।।१ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा , कार्तिक का वो मास । दीप जलाकर देव #कविता

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त्रिपुरा सुर का जब बढ़ा , जग में आत्याचार।
आकर भोलेनाथ ने , स्वयं किया संहार ।।१

 शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा , कार्तिक का वो मास ।
दीप जलाकर देव सब , करें धरा उल्लास ।।२

करतें है गुरु पे सदा , हम सब अपने गर्व ।
कार्तिक के इस मास में , आता है गुरु पर्व ।।३

देखो गंगा घाट पे , अब करें सभी स्नान ।
छोड़े जग का मोह सब  , करते प्रभु का ध्यान ।।४

दीप जलाकर आज सब , करते तम का नाश ।
जग-मग जग-मग हो रहा , धरती से आकाश ।।५

कुण्डलिया
बढ़ता जब-जब पाप है , लेते प्रभु अवतार ।
कर दुष्टों का नाश वे , होते पालन हार ।।
होते पालन हार ,  यही है प्रभु की माया ।
दें गीता का ज्ञान , कहें नश्वर है काया ।।
करो धर्म के काम , पाप घटता ही रहता ।
भव से होता पार , पुन्य जिसका भी बढ़ता ।।

०९/११/२०२२     -      महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR त्रिपुरा सुर का जब बढ़ा , जग में आत्याचार।
आकर भोलेनाथ ने , स्वयं किया संहार ।।१

 शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा , कार्तिक का वो मास ।
दीप जलाकर देव

Rashmi Hule

जब मैं स्कूल में थी, तब स्कूल घर से बहुत दूर था और आज की तरह कोई बस या वैन नहीं थी। चल के जाना पडता था । आते - जाते सड़क पर एक लड़की नजर #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqtaai #अबला #bestyqhindiquotes #bestyqmarathiquotes

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वो अबला हिरनी...






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