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N S Yadav GoldMine
आज हम भगवान राम ने अपने वनवास के 14 वर्ष कहाँ-कहाँ बिताएं इसके बारें में विस्तार से जानेंगे !!💥💥{Bolo Ji Radhey Radhey} वनवास के 14 वर्ष कहाँ-कहाँ बिताएं :- 🔆 भगवान श्रीराम को चौदह वर्षों का कठोर वनवास मिला था जिसके अनुसार उन्हें केवल वनों में रहना था तथा किसी भी नगर में जाना प्रतिबंधित था। श्रीराम ने अपने वचन का भलीभांति पालन किया तथा चौदह वर्षों तक अपनी पत्नी सीता तथा भाई लक्ष्मण के साथ वनवासियों की भांति जीवन व्यतीत किया। इस दौरान वे भारत के उत्तरी तट से लेकर दक्षिणी तट तक गए। इसलिये आज हम भगवान श्रीराम के वनवास का मार्ग तथा इस दौरान वे कहाँ-कहाँ रुके और क्या-क्या कार्य किये, इसके बारें में विस्तार से जानेंगे। भगवान श्रीराम के वनवास का मार्ग :- तमसा नदी के तट पर :- 🔆 सबसे पहले अयोध्या से विदा लेने के पश्चात भगवान राम रथ में बैठकर आर्य सुमंत के साथ तमसा नदी के तट तक पहुंचे। वहां तक अयोध्या की प्रजा भी उनके साथ आयी जो उन्हें अकेले जाने देने को लेकर तैयार नही थी तथा उनके साथ चलने की जिद्द लिए बैठी थी। इसलिये उस रात श्रीराम ने अपना डेरा तमसा नदी के तट पर ही डाला तथा सूर्योदय से पहले अयोध्या की प्रजा को बिना जगाये सीता, लक्ष्मण तथा सुमंत के साथ कोशल देश की नगरी से बाहर निकल गए। श्रृंगवेरपुर नगरी :- 🔆 इसके पश्चात वे अपने मित्र निषादराज गुह की नगरी श्रृंगवेरपुर के पास के वनों में पहुंचे तथा वही एक दिन के लिए विश्राम किया। उनके मित्र गुह ने उनका बहुत आदर सत्कार किया। अगले दिन उन्होंने सुमंत को रथ लेकर अयोध्या लौट जाने का आदेश दिया तथा वहां से आगे पैदल ही यात्रा करने का निर्णय किया। फिर उन्होंने केवट के सहारे गंगा नदी को पार किया तथा उस पार कुरई गाँव उतरे। प्रयाग :- 🔆 गंगा पार करके श्रीराम माता सीता, लक्ष्मण तथा निषादराज गुह के साथ प्रयाग चले गए। वहां उन्होंने त्रिवेणी की सुंदरता को देखा तथा आगे मुनि भारद्वाज के आश्रम पहुंचे। यहाँ उन्होंने मुनि भारद्वाज से अपने रहने के लिए उत्तम स्थान पूछा जिन्होंने यमुना पार चित्रकूट को उत्तम बताया। चित्रकूट :- 🔆 इसके पश्चात श्रीराम ने अपने मित्र निषादराज गुह को भी वहां से वापस अपनी नगरी लौट जाने का आदश दिया तथा माता सीता व लक्ष्मण के साथ यमुना पार करके चित्रकूट चले गए। चित्रकूट पहुँचते ही उन्होंने वाल्मीकि आश्रम में उनसे भेंट की तथा गंगा की धारा मंदाकिनी नदी के किनारे अपनी झोपड़ी बनाकर रहने लगे। यही पर उनका भरत से मिलन हुआ था जब भरत अयोध्या के राजपरिवार, सभी गुरुओं, मंत्रियों के साथ श्रीराम को वापस लेने पहुंचे थे लेकिन श्रीराम ने वापस लौटने से मना कर दिया था। इसके कुछ समय पश्चात श्रीराम चित्रकूट भी छोड़कर चले गए थे क्योंकि उन्हें डर था कि अब अयोध्या की प्रजा यहाँ निरंतर आती रहेगी जिससे ऋषि मुनियों के ध्यान में बाधा पहुंचेगी। दंडकारण्य :- 🔆 दंडकारण्य के वनों में पहुंचकर सर्वप्रथम उन्होंने ऋषि अत्री तथा माता अनुसूया से उनके आश्रम में जाकर भेंट की। माता अनुसूया से माता सीता को कई बहुमूल्य रत्न, आभूषण तथा वस्त्र प्राप्त हुए। ऋषि अत्री से ज्ञान पाकर वे आगे बढ़ गए। इसके पश्चात उनका विराध राक्षस से सामना हुआ जिसका उन्होंने वध किया। तब वे शरभंग ऋषि से मिले जिनकी मृत्यु समीप ही थी। श्रीराम से भेंट के पश्चात ऋषि शरभंग ने अपने प्राण त्याग दिए तथा प्रभु धाम में चले गए। इसके पश्चात भगवान राम दंडकारण्य के वनों में घूम-घूमकर राक्षसों का अंत करने लगे। प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल का ज्यादातर समय दंडकारण्य के वनों में ही बिताया था। जब दंडकारण्य के वनों में प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल के 10 से 12 वर्ष बिता दिए तब उनकी भेंट महान ऋषि अगस्त्य मुनि से हुई। अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को उनका अगला पड़ाव दक्षिण में गोदावरी नदी के किनारे पंचवटी में बनाने को कहा। अगस्त्य मुनि से आज्ञा पाकर श्रीराम पंचवटी के लिए निकल गए। पंचवटी :- 🔆 अब श्रीराम गोदावरी नदी के किनारे पंचवटी में अपनी कुटिया बनाकर रहने लगे जहाँ उनकी भेंट जटायु से हुई। जटायु उनकी कुटिया की रक्षा में प्रहरी के तौर पर तैनात रहते थे। इसी स्थल पर शूर्पनखा ने श्रीराम को देखा था तथा माता सीता पर आक्रमण करने का प्रयास किया था। तब लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी थी। तब उनका रावण के भाई खर व दूषण से युद्ध हुआ व श्रीराम ने उनका राक्षसी सेना समेत वध कर डाला। उसके कुछ समय पश्चात रावण ने अपने मामा मारीच की सहायता से माता सीता का अपहरण कर लिया। रावण ने उनकी सुरक्षा में तैनात जटायु का भी वध कर डाला। भगवान श्रीराम तथा लक्ष्मण माता सीता को ढूंढते हुए वहां से निकल गए। ©N S Yadav GoldMine #phool आज हम भगवान राम ने अपने वनवास के 14 वर्ष कहाँ-कहाँ बिताएं इसके बारें में विस्तार से जानेंगे !!💥💥{Bolo Ji Radhey Radhey} वनवास के 14 व
Pawan Valmiki
jaivalmiki, वाल्मीकि शेरहै,उनकेआगेमत,,आना, वाल्मीकि एकता जिंदाबाद
Reeshabh Sahu
Subhasish Pradhan
सत्य -सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः । सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम् ॥ भावार्थ : सत्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है; सत्य ही समस्त भव - विभव का मूल है; सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है । ଅର୍ଥ: ସତ୍ୟ ଏ ସଂସାର ର ଈଶ୍ଵର ଅଟେ। ଧର୍ମ ସତ୍ୟର ଅଧୀନ ଅଟେ। ସତ୍ୟ ହିଁ ସବୁ ମୁଳ ର କାରଣ ଅଟେ। ସତ୍ୟ ଠୁ ବଡ଼ କିଛି ନୁହେଁ।। 🙏 (वाल्मीकि, ବାଲ୍ମୀକ) 🙏 #सत्य #वाल्मीकि #बाणी #yqbaba