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Roohi Quadri
"दर्द से दोस्ती" जबसे दर्द से अपनी पक्की दोस्ती हो गई बहुत ख़ूबसूरत यह मेरी ज़िन्दगी हो गई । खुशियों से अपनी तो कभी बनती ही नहीं यारों रंजों- ग़म से देखो क्या ख़ूब आशिक़ी हो गई । पूछा जो हाले दिल,तो कहने को कुछ ना बाक़ी रहा लब सी लिए जो हमने,क्यों हर-सू ख़ामोशी हो गई । बेहतर था जो कभी एक तक़ल्लुफ़ था हमारे दरमियां जान की क़सम बड़ी जानलेवा यह नज़दीकी हो गई। कहते हो तुम,पुकारा था तुमने मुझको कईं मर्तबा मैं कहती हूं,अच्छा हुआ जो हमें ग़लतफ़हमी हो गई । आशना हूं मैं तेरे लबों लहज़े से इस क़दर ऐ सुख़नवर लफ्ज़ लफ्ज़ दिल छलनी मेरा,तेरे लिए दिल्लगी हो गई। आबशार की मानिंद मिले थे तुम सहराओं के मौसम में तेरी आमद से ही जैसे मुक़म्मल मेरी हर तिश्नगी हो गई। चाहत ना रही उस शहर को तेरी इक ज़र्रा भी "रूही" जबसे अज़ीज़ तुझको दोस्तों की दुश्मनी हो गई । ©Roohi Quadri #दर्द #दर्दसेदोस्ती #ग़ज़ल #उर्दू #Light
HintsOfHeart.
"हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी हमारे दोस्तों के बेवफ़ा होने का वक़्त आया" ( I needed my friends' help today; They were no friends, they turned away.) ©HintsOfHeart. #पं_हरिचंद_अख़्तर #जन्म_जयंती #उर्दू ग़ज़ल के प्रसिद्ध कवि और पत्रकार।
Nawab Khan
लगता है हो गई गलती सब कुछ बता कर तुझे मेरे टूटे दिल के हर वरक दिखा कर तुझे ना किया था इज़हार तब तक सब ठीक ही तो था हालात बदल से गए अब, वो सब जता कर तुझे मै भूखा भी रहा तो भी दिल शादाब रहा था मेरा अपनी सारी रोटियां, वो सब खिला कर तुझे करता था याद तुझे मैं शब तक सहर से रातभर जागता था वो सुला कर तुझे सोचा दिल बदल देगा अपनी शिद्दत से "नवाब" अफ़सोस है मगर अब, ये सब बता कर तुझे Insta - @travelwithnawab Blog - @nawabwhowrites #feather #हिंदी #उर्दू #ग़ज़ल #Hindi #urdu #Poetry #gazal #Heart #Break
Veena Khandelwal
#ग़ज़ल मुहब्बत जब करें आँखे , इबारत ही नहीं होती। दिखावे की ज़ताने की,लियाकत ही नहीं होती। सफीने दिल लिखी मेरे ,इबारत तुम ज़रा पढ़ लो। उसे इज़हार करने की , ज़रूरत ही नहीं होती। नज़ाकत है अदाओं में,नज़ारत से भरा चेहरा। इशारों से अगर छेड़ूं , शरारत ही नहीं होती । इबादत इश्क को समझे,शिकायत हो ना इक दूजे। मुहब्बत में वहां यारों , सियासत ही नहीं होती। जहाँ दो प्यार करते दिल,दो तन इक जान हो जाये खुदा जाने बड़ी इससे , इनायत ही नहीं होती। करी माँ बाप की सेवा, खुशी दामन भरे उनके। बड़ी इससे कभी कोई , इबादत ही नहीं होती। हया आँखों में थोड़ी हो,जरा हो चाल गजनी सी। लबों मुस्कान हो ऐसी नज़ाकत ही नहीं होती। मुहब्बत पास इतनी हो,मगर कुछ बंदिशें भी हो। सम्हाले किस तरह दिल को,हिफ़ाज़त ही नहीं होती। बिखर जाये मुहब्बत जब,बसा घर भी बिखर जाये। तमन्ना हो ना जीने की ,कयामत ही नहीं होती। नज़ारत=ताजगी लियाकत=योग्यता,शालिनता ग़ज़ल
Azhar Ali Imroz
ग़ज़ल आँखे क्यों नम है सब है तो हम है हम में भी ग़म है दुनिया क्यों कम है धरती पे रन है पीने को रम है जाती तेरी जो सब के सब सम है छाती में ले कर चलते क्यों बम है तेरी जाँ ,जाँ है तूँहीं रूपम है तुझ में भी क्या है? चींटी का दम है जग में परिवर्तन तूँ कैसा लम है जो जल,जम जाए तूँ वैसा जम है फिर इस धरती पे क्यों होता धम है अज़हर अली इमरोज़ मतलब रन ----युद्ध/युद्ध का मैदान रम---विलायती शराब रूपम___सौंदर्य/सुन्दर /गुनकारी ग़ज़ल