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Ravi Kumar Panchwal
न खिलाड़ी, ना किसी सिंघम ने कुछ बोला, न बाज़ीगर, ना किसी शहंशाह ने मुह खोला, कुछ दबंग नल्लों ने हाथियों पर नकेल कसी, एक मासुम की हत्या पर भी इनका ख़ून ना खौला। रविकुमार न खिलाड़ी, ना सिंघम ने कुछ बोला, न बाज़ीगर, ना शहंशाह ने मुह खोला, कुछ दबंग नल्लों ने हाथियों पर नकेल कसी, एक मासुम की हत्या पर भी इनका ख़ून ना
N S Yadav GoldMine
रामायण के बालि का जीवन परिचय, !वरदान, शक्तियां, युद्ध व मृत्यु आप भी जानें रोचक कथा !! 🌸🌸{Bolo Ji {Radhey Radhey} रामायण के बालि का जीवन परिचय :- 🌞 बालि रामायण का एक मुख्य पात्र, वानर प्रजाति से व किष्किन्धा नगर का राजा था। उसके जन्म को लेकर कई प्रकार की कथाएं प्रचलित हैं। जैसे कि कोई उन्हें अरुण देवता के गर्भ से जन्मा तो कोई राक्षस ऋक्षराज के गर्भ से जन्मा मानते हैं किंतु उनके धर्म पिता देवराज इंद्र थे। बालि का छोटा भाई सुग्रीव था जिसके धर्म पिता सूर्य देव थे। बालि बचपन से ही अत्यधिक बलवान व शक्तिशाली था। आज हम बालि को मिले वरदान, उसकी शक्तियां व युद्ध के बारे में आपको बताएँगे। बालि का विवाह :- 🌞 बालि का विवाह तारा नाम की एक अप्सरा के साथ हुआ था। तारा का जन्म समुंद्र मंथन के समय हुआ था। जब देवताओं व दानवों के द्वारा समुंद्र मंथन किया जा रहा था तब बालि भी अपने पिता इंद्र देव के साथ समुंद्र मंथन का कार्य कर रहे थे। समुंद्र में से कई अप्सराएँ निकली थी जिसमे से एक तारा थी। बालि का उस अप्सरा के साथ विवाह हुआ था। बालि को मिला भगवान ब्रह्मा से वरदान :- 🌞 बालि को स्वयं भगवान ब्रह्मा जी से वरदान स्वरुप एक हार मिला था जिसको पहनने से उसकी शक्ति अत्यधिक बढ़ जाती थी। इस वरदान के फलस्वरूप बालि जब भी युद्ध करने जाता उसे सामने वाले प्रतिद्वंदी की आधी शक्ति प्राप्त हो जाती थी। अर्थात यदि बालि में 100 हाथियों का बल है व उसके प्रतिद्वंद्वी में एक हज़ार हाथियों का तो युद्ध के समय बालि को उसकी आधी शक्ति अर्थात 500 हाथियों का बल मिल जायेगा। इस प्रकार बालि की शक्ति 600 हाथियों के बराबर व उसके प्रतिद्वंद्वी की शक्ति केवल 500 हाथियों के बराबर रह जाएगी। इसी वरदान के कारण बालि अत्यंत बलशाली हो गया था व उसे हराना असंभव था। अपने इसी वरदान के कारण बालि ने जितने भी युद्ध लड़े उसमे उसने विजय प्राप्त की। बालि को सामने से चुनौती देकर हराना किसी के लिए भी असंभव था। इसीलिए ही भगवान राम ने उसे छुपकर मारा था। बालि की शक्तियां :- 🌞 बालि की पराक्रम की कथा स्वयं रामायण में लिखी हुई हैं। उसके बारे में लिखा गया हैं कि वह पहाड़ो के साथ एक गेंद के समान खेलता था व उन्हें अपने हाथों से इधर-उधर कर देता था। प्रातः काल जल्दी उठकर वह अपनी किष्किन्धा नगरी से पूर्वी सागर से दक्षिण सागर फिर दक्षिण सागर से पश्चिम सागर तक जाता था व उसके बाद पश्चिम सागर से किष्किन्धा नगरी तक आता था लेकिन फिर भी उसे थकान अनुभव नही होती थी। बालि के युद्ध :- 🌞 बालि ने मुख्यतया 5 युद्ध लड़े जिसमे से अंतिम युद्ध में भगवान श्रीराम ने उसका वध कर दिया। आइये जानते हैं: बालि दुंदुभी युद्ध :- 🌞 दुंदुभी नाम का एक राक्षस था जिसे अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था। इसी घमंड में उसने समुंद्र देवता को युद्ध के लिए ललकारा लेकिन उन्होंने उसे पर्वत से युद्ध करने को कहा। फिर उसने पर्वत को युद्ध के लिए ललकारा तब उन्होंने बालि से युद्ध करने को कहा। जब दुंदुभी बालि से युद्ध करने गया तब बालि ने उसे पकड़कर मार डाला व अपने हाथों से उठाकर दूर फेंक डाला। उस राक्षस के रक्त की कुछ बूँदें ऋषि मतंग के आश्रम पर गिरी जिस कारण ऋषि ने बालि को श्राप दिया कि वह उनके आश्रम के आसपास की एक योजन की भूमि पर आया तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। उनका आश्रम ऋषयमूक पर्वत पर स्थित था जहाँ बालि को जाने की मनाही थी। बालि रावण युद्ध :- 🌞 बालि की शक्ति का परिचय सुनकर रावण को उससे ईर्ष्या होने लगी। रावण स्वयं को इस पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली समझता था इसलिये उसने बालि को युद्ध के लिए ललकारा। बालि ने रावण को भी हरा दिया व उसे अपनी काख में 6 माह तक दबाकर रखा। अपने इस अपमान से रावण बहुत लज्जित हुआ व उसने बालि से क्षमा मांग ली व उससे मित्रता कर ली. बालि व मायावी राक्षस का युद्ध :- 🌞 दुंदुभी के बड़े भाई मायावी राक्षस ने एक बार बालि को युद्ध के लिए ललकारा। तब बालि व उस मायावी राक्षस का महीनों तक एक गुफा में युद्ध हुआ। उस गुफा के बाहर उनका भाई सुग्रीव पहरा दे रहा था। जब उसका भाई बालि कई महीनों तक बाहर नही निकला तो अपने भाई को मरा समझकर सुग्रीव गुफा के द्वार को एक विशाल चट्टान से बंद कर चला गया ताकि वह मायावी राक्षस बाहर ना आ सके किंतु उस युद्ध में बालि विजयी हुया था। कुछ समय बाद बालि उस गुफा से निकल कर वापस आया व अपने भाई सुग्रीव को राज्य से निकाला दे दिया। बालि सुग्रीव प्रथम युद्ध :- 🌞 बालि ने अपने भाई सुग्रीव का भरी सभा में अपमान करके निकाल दिया था व उससे उसकी पत्नी रुमा को भी छीन लिया था। सुग्रीव अपने भाई बालि से इसका प्रतिशोध चाहता था इसलिये उसने भगवान श्रीराम की सहायता ली। चूँकि वरदान के कारण बालि से सामने से युद्ध नही किया जा सकता था इसलिये श्रीराम ने उसे छुपकर मारने की योजना बनाई। योजना के अनुसार सुग्रीव ने बालि को ललकारा लेकिन दोनों में शरीर व व्यवहार को लेकर बहुत समानताएं थी जिस कारण भगवान राम प्रथम युद्ध में बालि को नही मार सके। उस युद्ध में बालि ने सुग्रीव को बहुत मारा व सुग्रीव किसी तरह अपना जीवन बचाकर वहां से भागा था। बालि सुग्रीव द्वितीय युद्ध व बालि वध :- 🌞 इस बार भगवान राम ने सुग्रीव की पहचान के लिए उसके गले में एक फूलों की माला पहनाई। इस बार के युद्ध में बालि की पहचान करना श्रीराम के लिए आसान था। जब बालि व सुग्रीव का भीषण युद्ध चल रहा था तब भगवान राम ने छुपकर बाण चलाकर उसका वध कर दिया। इस प्रकार बालि का अंत हो सका। भगवान राम व बालि का संवाद :- 🌞 जब बालि तीर लगने से घायल हो गया तब भगवान श्रीराम बाकियों के साथ उसके पास आये। बालि अपने सामने भगवान श्रीराम को देखकर अत्यंत क्रोधित हो गया व उस पर छुपकर वार करने का कारण पूछा। तब भगवान श्रीराम ने उसके द्वारा किये गए अधर्म के कार्य बताएं जो उसकी हत्या के कारण बने। बालि को अपने किये का पछतावा हुआ व उसने श्रीराम से क्षमा मांगी। साथ ही उसने अपने पुत्र अंगद को भगवान श्रीराम की सेवा करने को कहा। यह कहकर बालि ने अपने प्राण त्याग दिए। बालि की मृत्यु के बाद सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य भार सौंपा गया व बालि के पुत्र अंगद को किष्किन्धा का राजकुमार बनाया गया। साथ ही भगवान श्रीराम ने अंगद को अपनी सेना व कार्यों में महत्वपूर्ण स्थान दिया। ©N S Yadav GoldMine #walkalone रामायण के बालि का जीवन परिचय, !वरदान, शक्तियां, युद्ध व मृत्यु आप भी जानें रोचक कथा !! 🌸🌸{Bolo Ji {Radhey Radhey} रामायण के बालि
Swatantra Yadav
आज फिक्र जिक्र से आजाद कर दिया उसे और वो नासमझ खुद को परिंदा समझ रहा है जिसकी रूह ने तासीर न पढ़ी जिंदगी की कभी वो खुद को जिंदा समझ रहा है,परिंदा समझ रहा है दो हाथियों का लड़ना सिर्फ़ दो हाथियों के समुदाय से संबंध नहीं रखता दो हाथियों की लड़ाई में सबसे ज़्यादा कुचली जाती है घास, जिसका हाथियों के
स्वतन्त्र यादव
आज फिक्र जिक्र से आजाद कर दिया उसे और वो नासमझ खुद को परिंदा समझ रहा है जिसकी रूह ने तासीर न पढ़ी जिंदगी की कभी वो खुद को जिंदा समझ रहा है,परिंदा समझ रहा है दो हाथियों का लड़ना सिर्फ़ दो हाथियों के समुदाय से संबंध नहीं रखता दो हाथियों की लड़ाई में सबसे ज़्यादा कुचली जाती है घास, जिसका हाथियों के
Manku Allahabadi
प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्। स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥ मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है, पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ, जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है। जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया, जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं, और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया। शिव तांडव स्त्रोत ( श्लोक-9) ©Manku Allahabadi शिव तांडव स्त्रोत (भाग-9) ................................................ प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम
Nisheeth pandey
महाराणा प्रताप के हाथी की कहानी: मित्रो, आप सब ने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में तो सुना ही होगा, लेकिन उनका एक हाथी भी था। जिसका नाम था रामप्रसाद। उसके बारे में आपको कुछ बाते बताता हुँ। रामप्रसाद हाथी का उल्लेख अल- बदायुनी, जो मुगलों की ओर से हल्दीघाटी के युद्ध में लड़ा था ने अपने एक ग्रन्थ में किया है। वो लिखता है की- जब महाराणा प्रताप पर अकबर ने चढाई की थी, तब उसने दो चीजो को ही बंदी बनाने की मांग की थी । एक तो खुद महाराणा और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद। आगे अल बदायुनी लिखता है की- वो हाथी इतना समझदार व ताकतवर था की उसने हल्दीघाटी के युद्ध में अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था । वो आगे लिखता है कि- उस हाथी को पकड़ने के लिए हमने 7 बड़े हाथियों का एक चक्रव्यूह बनाया और उन पर14 महावतो को बिठाया, तब कहीं जाकर उसे बंदी बना पाये। अब सुनिए एक भारतीय जानवर की स्वामी भक्ति। उस हाथी को अकबर के समक्ष पेश किया गया । जहा अकबर ने उसका नाम पीरप्रसाद रखा। रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने और पानी दिया। पर उस स्वामिभक्त हाथी ने 18 दिन तक मुगलों का न तो दाना खाया और न ही पानी पिया और वो बलिदान हो गया। तब अकबर ने कहा था कि- जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया, उस महाराणा प्रताप को क्या झुका पाउँगा.? इसलिए मित्रो हमेशा अपने भारतीय होने पे गर्व करो ©Nisheeth pandey महाराणा प्रताप के हाथी की कहानी: मित्रो, आप सब ने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में तो सुना ही होगा, लेकिन उनका एक हाथी भी था। जिसका न
Mo. Asiph
World Wildlife Day 3rd March World Wildlife Day 2020 theme – हर साल अगल- अलग थीम के साथ मनाया जाता है ये दिवस – World Wildlife Day in Hindi साल 2020 में इसकी थीम “पृथ्वी पर जीवन कायम रखना ” ( Sustaining all life on earth) रखी गई। साल 2019 में “पानी के नीचे जीवन: लोगों और ग्रह के लिए” (Life below water: for people and planet) थीम रखी गई थी। साल 2018 में “बड़ी बिल्लियां – शिकारियों के खतरे में” (Big cats – predators under threat) रखी गई। साल 2017 में “युवा आवाज़ सुनो” (Listen to the young voices) रखी गई। साल 2016 में “वन्यजीवों का भविष्य हमारे हाथ में है”, एक उप-थीम “हाथियों का भविष्य हमारे हाथों में है” (The future of wildlife is in our hands”, with a sub-theme “The future of elephants is in our hands) रखी गई। साल 2015 में “वन्यजीव अपराध के बारे में अब गंभीर होने का समय है” (It’s time to get serious about wildlife crime) थीम रखी गई थी। #World_Wildlife_Day World Wildlife Day 2020 theme – हर साल अगल- अलग थीम के साथ मनाया जाता है ये दिवस – World Wildlife Day in Hindi साल 2020
N S Yadav GoldMine
हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा था पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 1-21 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय। ऐसा कहकर गान्धारी देवी ने वहीं खड़ी रहकर अपनी दिव्य दृष्टि से कौरवों का वह सारा विनाश स्थल देखा। गान्धारी बड़ी ही पतिव्रता, परम सौभाग्यवती, पति के समान वृत का पालन करने वाली, उग्र तपस्या से युक्त तथा सदा सत्य बोलने वाली थीं। पुण्यात्मा महर्षि व्यास के वरदान से वे दिव्य ज्ञान बल से सम्पन्न हो गयी थीं अतः रणभूमि का दृश्य देखकर अनेक प्रकार विलाप करने लगीं। 📜 बुद्धिमी गान्धारी ने नरवीरों के उस अदभूत एवं रोमान्चकारी समरांगण को दूर से ही उसी तरह देखा, जैसे निकट से देखा जाता है। वह रणक्षेत्र हडिडयों, केशों और चर्बियों से भरा था, रक्त प्रवाह से आप्लावित हो रहा था, कई हजार लाशें वहां चारों ओर बिखरी हुई थी। हाथी सवार, घुड़ सवार तथा रथी योद्धाओं के रक्त से मलिन हुए बिना सिर के अगणित धड़ और बिना धड़ के असंख्य मस्तक रणभूमि को ढंके हुए थे। 📜 हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा थ। सियार, बुगले, काले कौए, कक्क और काक उस भूमि का सेवन करते थे। वह स्थान नरभक्षी राक्षसों को आनन्द दे रहा थ। वहां सब ओर कुरर पक्षी छा रहे थे। अमगलमयी गीदडि़यां अपनी बोली बोल रही थीं, गीध सब ओर बैठे हुए थे। उस समय भगवान व्यास की आज्ञा पाकर राजा धृतराष्ट्र तथा युधिष्ठिर आदि समस्त पाण्डव रणभूमि की ओर चले। 📜 जिनके बन्धु-बान्धव मारे गये थे, उन राजा धृतराष्ट्र तथा भगवान श्रीकृष्ण को आगे करके कुरूकुल की स्त्रियों को साथ ले वे सब लोग युद्वस्थल में गये। कुरूक्षेत्र में पहुंचकर उन अनाथ स्त्रियों ने वहां मारे गये अपने पुत्रों, भाइयों, पिताओं तथा पतियों के शरीरों को देखा, जिन्हें मांस-भक्षी जीव-जन्तु, गीदड़ समूह, कौए, भूत, पिशाच, राक्षस और नाना प्रकार के निशाचर नोच-नोच कर खा रहे थे। 📜 रूद्र की क्रीडास्थली के समान उस रणभूमि को देखकर वे स्त्रियां अपने बहूमूल्य रथों से क्रन्दन करती हुई नीचे गिर पड़ीं । जिसे कभी देखा नहीं था, उस अदभूत रणक्षेत्र को देख कर भरतकुल की कुछ स्त्रियां दु:ख से आतुर हो लाशों पर गिर पड़ीं और दूसरी बहुत सी स्त्रियां धरती पर गिर गयीं। उन थकी-मांदी और अनाथ हुई पान्चालों तथा कौरवों की स्त्रियों को वहां चेत नहीं रह गया था। 📜 उन सबकी बड़ी दयनीय दशा हो गयी थी। दु:ख से व्याकुलचित हुई युवतियों के करूण-क्रन्दन से वह अत्यन्त भयंकर युद्वस्थल सब ओर से गूंज उठा। यह देखकर धर्म को जानने वाली सुबलपुत्री गान्धारी ने कमलनयन श्रीकृष्ण को सम्बोधित करके कौरवों के उस विनाश पर दृष्टिपात करते हुए कहा- कमलनयन माधव। मेरी इन विधवा पुत्र वधुओं की ओर देखो, जो केश बिखराये कुररी की भांति विलाप कर रही हैं। 📜 वे अपने पतियों के गुणों का स्मरण करती हुई उनकी लाशों के पास जा रही हैं और पतियों, भाईयों, पिताओं तथा पुत्रों के शरीरों की ओर पृथक- पृथक् दौड़ रही हैं । महाराज कहीं तो जिनके पुत्र मारे गये हैं उन वीर प्रसविनी माताओं से और कहीं जिनके पति वीरगति को प्राप्त हो गये हैं, उन वीरपत्नियों से यह युद्धस्थल घिर गया है। पुरुषसिंह कर्ण, भीष्म, अभिमन्यु, द्रोण, द्रुपद और शल्य जैसे वीरों से जो प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी थे, यह रणभूमि सुशोभित है। ©N S Yadav GoldMine #boat हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा था पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत
Divyanshu Pathak
जब हम वैदिक संस्कृति के साथ जैन और बौद्ध मतों को स्वीकारने लगे तब बृहत्तर भारत में 16 जनपद थे- काशी,कुरु,अंग,मगध,वज्जि,मल्ल, चेदि, वत्स, कौशल, पांचाल, मत्स्य, सूरसेन, अश्मक,अवंति, गांधार, कम्बोज।आप सब ये तो जानते ही हैं कि 305 ई.पूर्व में चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के उत्तराधिकारी सेल्युकस को बुरी तरह परास्त कर उसकी पुत्री हेलना से विवाह किया और दहेज़ में कंधार,काबुल,हैरात, और बलूचिस्तान प्राप्त किए।सेल्युकस ने ही चन्द्रगुप्त के दरबार में मेगस्थनीज को भेजा था जिसने 'इंडिका' नाम से पुस्तक लिखी। 'इंडिका' के कुछ अंश- कैप्शन में पढ़ें- मेगस्थनीज लिखता है कि- जब भारतीय सम्राट जनता के समक्ष आता है तो नगर में उत्सव मनाया जाता है।वे (राजा) सोने की पालकी में बैठकर आते हैं।उनके अ
GRHC~TECH~TRICKS
शेर के अनुभव का ज्ञान-विज्ञान *************************** शेर के अनुभव और ज्ञान से कभी नहीं जीत सकता। आज का मनुष्य और समस्त ज्ञान-विज्ञान। क्योंकि शेर की दहाड़ ही दो समय होती है केवल। दिन में एक सुबह उगते हुए सूर्य के समय। दुसरी सूर्यास्त के समय इसलिए कहते । कि शेर की दहाड़ भी बहुत दुर तक जाती है। इसे जंगल का राजा भी इसलिए नहीं कहते। क्योंकि ये उसी समय ही संचेत करते हैं । जिस समय समस्त प्राणी । सुनने की, क्षमता भी रखते हैं । वैसे तो जंगल में जंगली कुत्ते ,बन्दरोऔर गीदड़ों की , व महान बलशाली हाथियों की आवाज पर भी, कोई भी प्राणी ध्यान नहीं देते हैं। ये केवल प्रकति के ज्ञान से ज्ञान प्राप्त करने , हेतु सरलता से समझाने लिए लिखा है। इसमें आप निस्वार्थ भाव से ग्रहण करने की चेष्टा करें। हे परमत्तव अंश जी। धन्यवाद जी। ©GRHC~TECH~TRICKS #grhctechtricks #New #Real #Lion #viral #Gulaab #Trading शेर के अनुभव का ज्ञान-विज्ञान