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Renuka Priyadarshini
होड़ आज के इस दौड़ में सबसे आगे निकल जाने की होड़ में लोग भाग रहे हैं यह सोचे बिना क्या साथ लिया क्या पीछे रह गया अपनी संस्कृति, अपना सभ्यता अपना इतिहास, अपनी परंपरा अपना गौरव , अपना ज्ञान अपनी मर्यादा और अपना आत्मसम्मान सब हमसे छूटते जा रहे हैं ये जो हम आगे आगे का भ्रम पाल रहे हैं ज़रा पीछे मुड़कर देखें तो पता चले हम विपरीत दिशा में जा रहें हैं हम विदेशी संस्कृति को देख-देख बड़ा लुभाते हैं अपना खान पान, पहनावा , दिनचर्या सब उनकी तरह अपनाते हैं अपने शौर्य, पुरुषार्थ,आत्मनिर्भरता को हम इस तरह खोते जा रहे हैं हमें पता भी नहीं हम किस तरह गुलाम होते जा रहें हैं अभी भी वक्त है वापस घर अपने लौट आये फिर से वेद पुराणों, परसम्पराओं और संसकृति की सरण में जाये भावी पीढ़ी सम्मान करे हमारा हमारे आदर्शों का इसलिए चलो एक बार फिर भारतीयता अपनाये चलो एक बार फिर भारतीयता अपनाये रेणुका प्रियदर्शिनी #कविता !!!होड़!!!रेणुका प्रियदर्शिनी
Renuka Priyadarshini
शब्दों के खजाने ज़रा संभल के खर्च करें इनको ये शब्दों के खजाने हैं कुछ शब्द विष से होते हैं कुछ अमृत बन कर बहते हैं जीते जी नरक दिखाते कुछ कुछ स्वर्ग द्वार ले जाते हैं ज़रा संभल के ख़र्च करे इनको ये शब्दों के ख़जाने है ये शब्द रूप है ब्रह्मा का माँ सरस्वती का आधार भी ये लक्ष्मी भी आती शब्दों से इसमें बसते देव सारे हैं ज़रा संभल के खर्च कर इनको ये शब्दों के खजाने हैं कुछ शब्द है भरते जख्मों को कुछ सीना छलनी कर जाते हैं जीने की वजह थमाते कुछ कुछ घड़ी घड़ी तड़पाते हैं ज़रा संभल के खर्च करें इनको ये शब्दों के ख़जाने हैं ये शब्दबाण ही अस्त्र है वो जो चुभते है सालों-सालों कुछ पत्थर बन बरसते तो कुछ कोमलता बरसाते हैं जरा संभल के खर्च करे इनको ये शब्दों के ख़जाने हैं कुछ शब्द भेदते आकाश सा मन बिजली बन फिर कड़कते हैं नयनों से फूटतीं धाराएं और दिल बंजर कर जाते हैं जरा संभल के खर्च करे इनको ये शब्दों के खजाने हैं आज शब्द की शक्ति माप ले हम जो शब्दों में नहीं आते कभी छीन लेते सारे रिश्ते कभी सारा जग थमाते हैं ज़रा संभल के ख़र्च करे इनको ये शब्दों के ख़जाने हैं रेणुका प्रियदर्शिनी #कविता!!!शब्दों के ख़जाने!!!रेणुका प्रियदर्शिनी
Viney Pushkarna
है यकीन एक दिन आएगा, शक्तिस्तम्भ जा दृढ़ निश्चय रंग लाएगा। हर व्यक्ति इसके बारे पूछेगा बतलायेगा। देखना मेरी भाइयो बहनो वो दिन भी जल्द ही आएगा। गुलामी का जब उतार मखौटा हर भारतीय संस्कृति हिंदी गायेगा, जन फेब को छोड़ चैत्र माघ मनाया जाएगा, सूर्य उदय से होगा नव दिवस, रात को न गुड मॉर्निंग बतलायेगा। तब हर व्यक्ति होगा नैतिक और नारी स्वाभिमान बचाएगा। तब नारी, बेटी यां छोटा बच्चा अकेले बाहर जाने से न घबराएगा। है विश्वास मेरा बिंदु पर निशाना लग जायेगा पुनः भारत का हर प्राणी गौरव संस्कार अपनाएगा वन्देमातरम शक्तिस्तम्भ परियोजना हेतु सम्पर्क करें 7355212966
अशुनुराग
बांध.... पडद्याआड गेलेली पात्र आणि, मनाआड गेलेली लोकं, काळाआड गेलेल्या "शापित दिवसांसारखे" असतात, जे पुन्हा कधीच दिसत नाही! केवळ दिसतात त्या , आपल्या जीवनाच्या वाळूवरती, उमटलेले त्यांचे पाऊलखुणा! आणि ,जेव्हा दोघी किनारे कांठोकाठ भरतात, तेव्हा एका विलक्षण उणिवेची जाणीव होते, "डोळ्यातला बांध तोडण्यासाठी हातात नव्हे, तर मनात बळ असावया लागते!!" #बांध
SHIVAM KARNE
नहीं है रोकने को कोई पर फिर भी मेरे वचनों ने बांध दिया कभी बांधा खुद ने, कभी अपनों ने बांध दिया कभी बांधा जिम्मेदारियों ने, रिश्तों ने, फर्ज ने तो कभी सपनों ने बांध दिया यूं तो न फिरता आवारा मैं पर पाना चाहूं सुकून थोड़ा तो दिल की खातिर धड़कनों ने बांध दिया। ©SHIVAM KARNE बांध दिया