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Jitendra Kumar Som
पांचवीं पुतली लीलावती की कहानी पांचवे दिन राजा भोज सिंहासन पर बैठने की तैयारी कर ही रहे थे कि पांचवीं पुतली लीलावती ने उन्हें रोक दिया। लीलावती बोली, राजन, क्या आप विक्रमादित्य की तरह दानवीर और शूरवीर हैं? अगर हां, तब ही इस सिंहासन पर बैठने के अधिकारी होंगे। मैं आपको कथा सुनाती हूं परम दानवीर विक्रमादित्य की। एक दिन विक्रमादित्य दरबार में राजकाज निबटा रहे थे तभी एक विद्वान ब्राह्मण दरबार में आकर उनसे मिला। उसने कहा कि अगर वे तुला लग्न में अपने लिए कोई महल बनवाएं तो राज्य की जनता खुशहाल हो जाएगी और उनकी भी कीर्ति चारों तरफ फैल जाएगी। विक्रम को उसकी बात जंच गई और उन्होंने एक बड़े ही भव्य महल का निर्माण करवाया। कारीगरों ने उसे राजा के निर्देश पर सोने-चांदी, हीरे-जवाहरात और मणि-मोतियों से पूरी तरह सजा दिया। महल जब बनकर तैयार हुआ तो उसकी भव्यता देखते बनती थी। विक्रम अपने सगे-सम्बन्धियों तथा नौकर-चाकरों के साथ उसे देखने गए। उनके साथ वह विद्वान ब्राह्मण भी था। विक्रम मंत्रमुग्ध हुए साथ ही वह ब्राह्मण मुंह खोले देखता रह गया। बिना सोचे उसके मुंह से निकला-'काश, इस महल का मालिक मैं होता!' राजा विक्रमादित्य ने यह सुनते ही झट वह भव्य महल उसे दान में दे दिया। ब्राह्मण के तो मानो पांव ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह भागता हुआ अपनी पत्नी को यह समाचार सुनाने पहुंचा। इधर ब्राह्मणी उसे खाली हाथ आते देख कुछ बोलती उससे पहले ही उसने उसे हीरे-जवाहरात और मणि-मुक्ताओं से जड़े हुए महल को दान में प्राप्त करने की बात बता दी। ब्राह्मण की पत्नी की तो खुशी की सीमा न रही। उसे एकबारगी लगा मानो उसका पति पागल हो गया और यों ही अनाप-शनाप बक रहा हों, मगर उसके बार-बार कहने पर वह उसके साथ महल देखने के लिए चलने को तैयार हो गई। महल की शोभा देखकर उसकी आंखे खुली रह गईं। महल का कोना-कोना देखते-देखते कब शाम हो गई उन्हें पता ही नहीं चला। थके-मांदे वे एक शयन-कक्ष में जाकर निढाल हो गए। अर्द्ध रात्रि में उनकी आंखें किसी आवाज से खुल गई। सारे महल में महक फैली थी और सारा महल प्रकाशमान था। उन्होंने ध्यान से सुना तो लक्ष्मी बोल रही थी। वह कह रही थी कि उनके भाग्य से वह यहां आई है और उनकी कोई भी इच्छा पूरी करने को तैयार है। ब्राह्मण दम्पति का डर के मारे बुरा हाल हो गया। ब्राह्मणी तो बेहोश ही हो गई। लक्ष्मी ने तीन बार अपनी बात दुहराई। लेकिन ब्राह्मण ने कुछ नहीं मांगा तो क्रुद्ध होकर चली गई। उसके जाते ही प्रकाश तथा महक- दोनों गायब। काफी देर बाद ब्राह्मणी को होश आया तो उसने कहा- 'यह महल जरूर भुतहा है, इसलिए दान में मिला। इससे अच्छा तो हमारा टूटा-फूटा घर है जहां चैन की नींद सो सकते हैं।' ब्राह्मण को पत्नी की बात जंच गई। सहमे-सहमे बाकी रात काटकर तड़के ही उन्होंने अपना सामान समेटा और पुरानी कुटिया को लौट आए। ब्राह्मण अपने घर से सीधा राजभवन आया और विक्रमादित्य से अनुरोध करने लगा कि वे अपना महल वापस ले लें। पर दान दी गई वस्तु को वे कैसे ग्रहण कर लेते। काफी सोचने के बाद उन्होंने महल का उचित मूल्य लगाकर उसे खरीद लिया। ब्राह्मण खुशी-खुशी अपने घर लौट गया। ब्राह्मण से महल खरीदने के बाद राजा विक्रमादित्य उसमें आकर रहने लगे। वहीं अब दरबार भी लगता था। एक दिन वे सोए हुए थे तो लक्ष्मी फिर आई। जब लक्ष्मी ने उनसे कुछ भी मांगने को कहा तो वे बोले- 'आपकी कृपा से मेरे पास सब कुछ है। फिर भी आप अगर देना ही चाहती हैं तो मेरे पूरे राज्य में धन की वर्षा कर दें और मेरी प्रजा को किसी चीज की कमी न रहने दें।' सुबह उठकर उन्हें पता चला कि सारे राज्य में धन वर्षा हुई है और लोग वर्षा वाला धन राजा को सौंप देना चाहते हैं। विक्रमादित्य ने आदेश किया कि कोई भी किसी अन्य के हिस्से का धन नहीं समेटेगा और अपने हिस्से का धन अपनी सम्पत्ति मानेगा। जनता जय-जयकार कर उठी। इतना कहते ही पुतली लीलावती बोली, बोलो राजन, क्या इस कथा के बाद तुम इस सिंहासन के योग्य अपने आपको पाते हो? राजा भोज निराश हो गए और अपने कक्ष में लौट गए। अगले दिन राजा को रोका छठी पुतली रविभामा ने। ©Jitendra Kumar Som #City पांचवीं पुतली लीलावती की कहानी
Rakesh Sonker
कि माना तू दिल की ख्वाहिश थी लेकिन वो ख्वाहिश एक ख्वाब बन के रह गई ...!! करते थे तुझे दिलों जान से.. प्यार ए- मोहब्बत लेकिन इजहार करने से डरते थे...!! तुमको मेरी इन नादानियों से वाकिफ तो होना चाहिए....! अगर सक था मेरे कैरेक्टर पे तो पहले बताना चाहिए...!! #मेरी कलम से🖋️❣️ #NojotoQuote मेरी पांचवीं स्वरचित कुछ पंक्तियां🖋️❣️
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साहस की बात साहस की है बात होती,जब एक बेटी को उसके सपनों की उड़ान भरने में सारे जहां में उसके माँ-पापा ही हैं होते जो उसका सम्पूर्ण समर्थन हैं करते,कर सके एक अच्छा मुकाम हासिल बिटिया उनकी, जब समाज सारा समाज बिटिया की कामयाबी के क्षेत्र में जाने के खिलाफ है हो जाता,तब करके बगावत सारे समाज से चट्टान से बन बिटिया के समक्ष खड़े हैं हो जाते,चुभते तीर से कम न लगते इन कटाक्षों का सारे समाज से सामना करना, एक तपस्या से कम न लगती माँ-पापा का अपनी बिटिया की कामयाबी भरे सफ़र का पथ प्रदर्शक बन जाना,तब कहीं जाकर एक बेटी है कर पाती हर एक क्षेत्र में साकार अपनी सफलता की ख़्वाहिश,जिसमें उसको कामयाब है होना होता, रमज़ान_कोरा_काग़ज़_2022 पांचवीं_रचना👉_साहस_की_बात #tarunasharma0004 #hindipoetry #trendingquotes #KKRसाहसकीबात #collabwithकोराकाग़ज़ #रमज़
Anjali Singh
ASHVAM
"सूरज" यह चलता साथ साथ मेरे, सूरजमुखी इसके पीछे चले सुना है बड़ा घमंड है किसीको, जो सहारा लेकर इधर उधर चले जानता हूं मैं चालाकी तेरी, हमारे इर्द-गिर्द क्यों इतना घूमे तू सूरज से प्रकाश चुराकर, खुद को महारानी बुझे हम इतने नादान नहीं है कौमुदी,तेरी हर चाल समझ आती है पूरी दुनियां घूमे उसके के पीछे, तू घूमे धरती के तेरा घमंड यहीं पर चूर हुआ जा छूले पैर सूरज के! ©Ashvam "सूरज"कविता की यह पांचवीं ओर आखरी पंक्ति है (कौमुदी मतलब चांदनी से है)
VINOD VANDEMATRAM
Shravan Goud
बाते इस प्रकार करो कि सामने वाला मंत्र मुग्ध हो जाय यही पहली कला व्यापार की। दुसरी कला माल की गुणवत्ता। तीसरी कला सेवा। चौथी कला समय पर माल की आपूर्ति। पांचवीं शिकायत दुर करना। इससे आपका बाजार में कीमत बढ़ेगी। बाते इस प्रकार करो कि सामने वाला मंत्र मुग्ध हो जाय यही पहली कला व्यापार की। दुसरी कला माल की गुणवत्ता। तीसरी कला सेवा। चौथी कला समय पर माल
Neerav Nishani
मेरा उसे देखने का मन था, सोचा आरज़ू पूरी कर लूं। पहली बार गया वो नहीं दिखी दूसरी बार में भी नहीं मिली, तीसरी बार में जरा दिखी, चौथी बार में कोई साथ पांचवीं बार में वो दिखी पहली बार में हेलो बोला दूसरी बार में कैसे हो, तीसरी बार में और बताओ, चौथी बार में टौफी थी पांचवीं बार में खामोशी, छठवीं बार में क्या चल रहा है सातवीं बार में बहस हुई, आठवीं बार में झड़क, नौवीं बार में बात खत्म ©Neerav Nishani मेरा उसे देखने का मन था, सोचा आरज़ू पूरी कर लूं। पहली बार गया वो नहीं दिखी दूसरी बार में भी नहीं मिली, तीसरी बार में जरा दिखी, चौथी बार में
Shree
एक तुम! दूजा.. ये प्रेम तीजा आश्रा ख़ुदा का चौथी नेमतें और दुआएं पांचवीं उम्मीदों का कारवां छठी आहटें, इनायतें और इंतज़ार सातवां आसमान, बादलों का हुजूम आठों प्रहर का बनकर प्रहरी ये तन-मन नव निधि कम लगे, कुबेर निर्धन, नव रस कम दसों दिशाओं में दृष्टि विकल हो खोजें तुम्हें सोचें! एक तुम! दूजा.. ये प्रेम तीजा आश्रा ख़ुदा का चौथी नेमतें और दुआएं पांचवीं उम्मीदों का कारवां छठी आहटें, इनायतें और इंतज़ार सातवां आसमान, बादल
DrLal Thadani
एक खुली किताब है दिल से लिखा अल्फ़ाज़ है संवेदनाओं का शिल्पकार है गीतों-नज़्मों की फुआर है सबके लिए अभिव्यक्ति है अंदाज़ है, जज़्बात है । डॉ लाल थदानी #अल्फ़ाज़_दिलसे 🎊 योरकोट को पांचवीं वर्षगांठ पर बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..😊🙏💐🎊 💱रचना का सार..📖 के साथ Collab करें..√..√ 🔻#Rks_रचना_संग्रह_95 💫रचना को