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मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *

कागज तो होता बस बेजान सा ,
जान तो उसमें शब्द डालते हैं ,

शब्दों के लिखते ही , बिखर जाती हैं एक खुशबू ,
यादों की , वादों की , अहसासों की ,

पढते ही शब्द सब कुछ चलचित्र सा चलने लगता हैं ,
आँखों के सामने एक अहसास सा ,

शब्दों से बनती जाती रचनाएं ,
हर एक के मन की उथल - पुथल की ,

वो बातें जो हम कहने मे होते हैं असर्मथ ,
पुर जाती हैं माला सी वो शब्दों के जरिए ,

भावों को वय्क्त करते शब्द ,
कोरे कागज पर रंग बिखरते शब्द ।

©Ankur Raaz #शब्दो #की #शक्ति

#शब्द

Parasram Arora

स्रष्टा........

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स्रष्टा   पर  मेरी  नज़र हैँ 
पर  न  जाने  वो  स्रष्टा  कहा   किधर  
रहता  हैँ?  
जब  भी  गगन  मुझे  साफ  सुथरा   दिखता हैँ 
मुझे  उसका  नीलापन  बड़ा  अच्छा   लगता  हैँ 
और  जब  चन्द्रमा     उज्ज्वलता  का  दीया  जला  देता  हैँ 
तब  कहीं जाकर  उस  स्वछ   धवल  चांदनी  मे 
धुला  हुआ  वो  स्रष्टा  कितना  मोहक  
        दिखने  लगता   हैँ स्रष्टा........

Parasram Arora

सृष्टि और स्रष्टा #Hope #विचार

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ये घट है तो घटाकार भी तो होगा कही
अगर घटाकार है तो फिर उसको बनाने वाला कौन है ?.
कितनी बचकानी लगती है ये व्याख्या

दरसल  सृष्टि और स्रष्टा  दो नहीं
एक ही है

©Parasram Arora सृष्टि और स्रष्टा 

#Hope

BANDHETIYA OFFICIAL

द्रष्टा ! #drowning #जानकारी

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इतिहास बदलने की फिराक में,
वर्तमान बिगाड़ रहे हो तुम।
जाने, भविष्य क्या हो, भविष्य क्या,
भूतकाल उखाड़ रहे हो तुम !
नियति जाने किसकी है,नीयत लेकिन-
ताड़ सके न कोई,प्रयास हर मुमकिन !
यह भी छोड़े डाला है उन कंधों पर,
फर्क न पड़ता द्रष्टा पर, क्या अंधों पर ?

©BANDHETIYA OFFICIAL द्रष्टा !

#drowning

अल्पेश सोलकर

शब्द दूर नेतात शब्दच जवळ आणतात.. कितीही मोठ्या दुराव्यास शब्दच बळ देतात... #yqtaai #alpeshsolkar

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शब्द दूर नेतात
शब्दच जवळ आणतात..
कितीही मोठ्या दुराव्यास
शब्दच बळ देतात... शब्द दूर नेतात
शब्दच जवळ आणतात..
कितीही मोठ्या दुराव्यास
शब्दच बळ देतात...

#yqtaai #alpeshsolkar

Parasram Arora

हे स्रष्टा तुम्ही तो हो........

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सृष्टि क़े  कंण  कंंण  मे
सृष्टि  की  हर  रचना मे
हे स्रष्टा  तुम्ही तो हो
मुझे पता नहीं कहाँ  कहाँ  तुम्हें  मैंने महसूस नहीं है
लेकिन मैंने  तुम्हे अक्सर देखा है
पारदरशी  जल  की शीतलता  मे 
देखी है तुम्हारी छवि   मैंने  अग्नि की  लौ  मे
देखी है तुम्हारी चपलता  तितलियों की
उन्मुक्त  उड़ानों मे
सुनी है  तुम्हारी  आवाज़  मैंने भंवरों की  गुंजायमान
गीतों मे  और  मरुस्थल  की तपती  रेत की फिसलनों मे 
कई  बार  दिखे हो तुम मुझे
चांदनी  रातों की बिखरी  हुई आभा. मे
महसूसा  है  तुम्हे मैंने   अपनी 
साँसों की  तरंगों मे  और      देखी है
तुम्हारी     उपस्तिथि ब्रह्माण्ड की  हर शै  मे
हे स्रष्टा  तुम्ही तो  हो

©Parasram Arora हे स्रष्टा  तुम्ही  तो हो........
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