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Nawal Kishor Saini Rcc Thekedar
बाहूबली मुभी पुरानी हो गइ है नई मुभी देखोगे तो अच्छा है ©Nawal Kishor Saini Rcc Thekedar #BahuBali नई मुवी देखने जरूर जाए
अभिषेक साप्ते
नही करते किसी से फौजी प्यार, सलामत रखते है वह भारत भुमी के यार.
सिन्टु सनातनी "फक्कड़ "
#GuruNanakJayanti सब पर तेरी साहिबी, तुझपर साहेब नाय। निराकार निर्गुण तुही,और सकल भरमार। पाँच तत्व का बना पिंजरा,पिंजरे में मैना। पाँच लुटेरे घात लगा, घबराए मैना। बजाले अनहद सन्नाटे के सुन्यं में धड़कन की तिरताल, सिमरले साहिब जी का नाम, की दुनिया माया का जंजाल। साहेब मेरा एक रखवाला रे, साहेब मेरा तन्ख गौशाला रे, साहेब मेरा तम्(अंधकार) मेंं उजाला रे। (गीत- शांन्तानु मोईत्रा, स्वानंन्द करकेरे) #पिंजरा (गीत- शांन्तानु मोईत्रा स्वानंन्द करकेरे) पाँच तत्व - क्षिति(भुमी,मिट्टी), जल(पानी) पावक(अग्नि), गगन(आकाश) समीर(हवा)। मैना-आत्मा।
Chandar Saud
फुल मेले गुलाब रोज्या,,भाग्यमा काँणा भ्या। जन्म्या भुमी डिठ पड्या थि,,बिचैनी डाणाँ भ्या।। माया मान्या म सबैकी,,मएई झन टाढा भ्या। रैगयो झझल्
Vikrant Rajliwal
Shruti Gupta
मृत्यु का लेकर भार सदा, था लाख लुटाया जीवन पे, पर हाथ छुड़ा कर क्यों अक्सर, ना साथ नीभाया जीवन ने। नीर्भिक का होता कथन यहीं, जीवन हैं कठिन पर मरण नहीं। मृत्यु का लेकर भार सदा, था लाख लुटाया जीवन पे, पर हाथ छुड़ा कर क्यों अक्सर, ना साथ नीभाया जीवन ने। नीर्भिक का होता कथन यहीं, जीवन हैं कठिन
amar gupta
मृत्यु का लेकर भार सदा, था लाख लुटाया जीवन पे, पर हाथ छुड़ा कर क्यों अक्सर, ना साथ नीभाया जीवन ने। नीर्भिक का होता कथन यहीं, जीवन हैं कठिन पर मरण नहीं। मृत्यु का लेकर भार सदा, था लाख लुटाया जीवन पे, पर हाथ छुड़ा कर क्यों अक्सर, ना साथ नीभाया जीवन ने। नीर्भिक का होता कथन यहीं, जीवन हैं कठिन
Nadbrahm
भारत जैसे विविधताओं से भरे देश मे हिन्दी एक सम्पर्क भाषा के रूप में बहोत उपयोगी सिद्ध होगी। गोस्वामी तुलसीदास राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में राजभाषा विकाश मंच के तत्वावधान में आयोजित हिन्दी दिवस समारोह में सहभाग किया। विद्यार्थियों का ऊर्जा प्रभावित करने वाला था। अपने संबोधन में युवाओं को शक्ति का नियम व मानव व्यवहार के बारे में बताते हुए उनसे भाषा विकाश में योगदान देने का साधारण नियम बताया । इसी क्रम में मैन कहा कि मैं मिथिला क्षेत्र से हूँ और मेरी मातृभाषा मैथिली है और मेरा मानना है कि हिन्दी या किसी भाषा संस्कृति का उत्कर्ष उनके अनुयायियों के उत्कर्ष से जुड़ा है। यदि आज के युवा चाहते हैं कि हिन्दी अपने उत्कर्ष को प्राप्त करे तो आवश्यक है कि ये लोग जीवन के हर आयाम में सफल हो उत्कृष्ठ आदर्श प्रस्तुत करें ताकि दुनिया उनका अनुकरण करे। दुनियां हमेशा विजेताओं व शक्ति सम्प्पन व्यक्तियों का अनुकरण करती है अतः भाषा संस्कृति के विकाश का एक साधारण तरीका है कि आप अपने जीवन मे आदर्श प्रस्तुत करें ताकि दुनिया आपकी भाषा संस्कृति का अनुकरण करे। हिन्दी को किसी पर थोपने से हिन्दी का नुकसान मात्र होगा फायदा नही। भाषा भाव जगत से जुड़ी होती है व भाषा मात्र संवाद का माध्यम है ना कि विवाद का। सभी भारतीये भाषा फोनेटिकली बहोत उन्नत हैं उनके आपसी सामंजस्य व उनके सहयोग से हीं हिन्दी भी प्रतिष्टित होगी। ©BK Mishra भारत जैसे विविधताओं से भरे देश मे हिन्दी एक सम्पर्क भाषा के रूप में बहोत उपयोगी सिद्ध होगी। गोस्वामी तुलसीदास राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्याल