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तुम इतना भी नादान नहीं हो जितना तुम को समझूं मैं
पागल प्रेमी आजाद परिंदा मन की चितवन समझूं मैं
तुम मृगनयनी गजगामिनी प्रभात कुमुदिनी म
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रजनीश "स्वच्छंद"
जीवन सार।।
लघु-शेष तन्द्रित जीवधारा,
अवसान वृहद न किंचित होगा।
मूल विहीन, संचय विहीन,
शुष्क बाग न तब सिंचित होगा।
प्रयत्नशील, शीला-काय प्र #Poetry#Life#kavita
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Sonia Miglani
इतनी मस्त चली पुरबाई।
उसपर याद पिया की आई।
अँगड़ाई कुछ महक गई तो,
कुछ मत कहना कुछ मत कहना------
नई नवेली साँस सुहागिन
पग धरती जैसे
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A J
मिर्ज़ापुर उस कड़ी का हिस्सा लगती है जहां एक बहुत अच्छी कथा को गुंडो में प्रत्यारोपित करके गाली के इर्द गिर्द बुना जाता है