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Mukesh Bhabhor

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Meghwans Saab

#MothersDay #Hindi kahani #Hindi kahani #Poetry

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ABK Delhi wala

Kahani # Hindi kahani #कविता

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ऐेैक लड़की कैसे सब के लिए बौझ बन जाती है 

         ( ऐैक उदास लड़की की कहानी)


मीना अपने माता पिता की बहुत लाडली थी। तीन बडे भाईयों की बहन थी। कोई भी चीज मांगने पर उसी वक्त सामने हाजिर हो जाती। पूरे घर में रौब था उसका। पूरे परिवार ओर नौकरों पर राजकुमारी की तरह हुक्म चलाती थी मीना
स्कूल में भी पूरा रौब था उसका। बडे घर की लाडली जो थी वह। ऐसे ही उसने कालेज में दाखिला लिया। उसके ठाठबाट, बडी गाड़ी में आना जाना, हर दिन नया फैशन देखकर हर कोई उससे दोस्ती करना चाहता था।

थोड़े ही दिनों में उसके बहुत से दोस्त बन गए। पूरे कालेज में उसकी अपनी ही एक पहचान थी। इन दिनों उसके घर एक रिश्ता आया। खानदानी लोग थे ओर पापा की पुरानी जान-पहचान थी उनके साथ। मीना के साथ कोई जबरदस्ती नहीं थी| पर मीना ने फिर भी हां कर दी, कयोंकि वह अपने परिवार से बहुत प्यार करती थी।

वह जानती थी कि वह लोग उसका अच्छा ही सोचेंगे। लडके का नाम सूरज था। सूरज काफी पढा लिखा ओर समझदार लडका  था। ससुराल वाले भी बहुत अच्छे थे। ससुराल में मीना की जगह वैसी ही थी जैसी कि मायके में। कोई भी काम मीना की सलाह के बिना नहीं होता था। सबकी लाडली बहू बन गयी थी वह। फिर उसके घर एक बेटे का जन्म हुआ।

 समर मीना को जान से प्यारा था। पोता पाकर ससुराल वाले तो फूले नहीं समाते थे। मीना कभी कभी सोचती कि उसकी किस्मत कितनी अच्छी है। उसका हर अपना उसे कितना प्यार करता है। चाहे जीवन में कैसा भी समय आये मेरे अपने हमेशा मेरे साथ हैं, मैं कभी अकेली नहीं हो सकती।

कितनी खुशकिस्मत हूँ मैं। पर शायद मीना की खुशियों को उसकी अपनी ही नजर लग गई थी। एक दिन वह मायके जाने की जिद्द कर बैठी। सूरज को बहुत काम था।लेकिन वह फिर भी उसे ले गया।

रास्ते में उनकी गाड़ी दूसरी गाड़ी से टकरा गई। मीना, सूरज ओर समर बहुत बुरी तरह से जख्मी हो गए। काफी दिनों के इलाज के बाद समर ओर सूरज तो ठीक हो गए लेकिन मीना पूरी तरह ठीक ना हो सकी। सर पर चोट लगने के कारण वह अपनी आंखों की रौशनी खो बैठी। अब मीना की किस्मत जैसे उलटे पांव चलने लगी।

मायके वाले कुछ दिनों तक उसे मिलने आते रहे फिर कभी कभार फोन ही करके पुछ लेते कि अब कैसी हो। धीरे धीरे ये सिलसिला भी कम हो गया। ससुराल वालों की सहानुभूति भी कम होने लगी। घर में किसी को पास बैठने के लिए कहती तो जवाब मिलता बहुत काम है अब तुम भी हाथ नहीं बंटा सकती।

सूरज भी चिडचिडा हो गया था। बस समर ही था उसके साथ जिसके साथ हंसते खेलते उसका वक्त गुजरता। एक दिन मीना के हाथ से कुछ सामान गिर गया जिसकी वजह से समर को हलकी सी चोट लग गई। मीना के सास ससुर ने सूरज को उससे अलग कर दिया कि कहीं उसके ना देखने की वजह से बच्चे का कोई नुकसान ना हो जाये।

मीना अंदर से टूट चुकी थी। एक दिन उसने सबके सामने मायके जाने की इच्छा रखी तो सूरज उसे तुरंत मायके छोड़ आया। जैसे कि वह भी यही चाहता था। लेकिन समर को उसके साथ नहीं भेजा गया। मीना कभी समर से दूर नहीं रही थी, पर अपनी कमी के कारण उसने ज्यादा बहस नहीं की।

मीना को लगा कि वह तीन चार दिन वहां रहेगी तो थोड़ा हवा पानी बदल जायेगा कयोंकि वह कितने दिनों से कहीं भी बाहर नहीं गयी थी। घर वाले भी इतने दिनों बाद उसे देखकर कितने खुश होंगे। मीना के घर पहुंचने पर सब लोग बहुत खुश हुए। खाने में सब कुछ मीना की पसंद का ही बना था।

उसने अपने मम्मी पापा ओर भाई भाभियों से दिल खोल कर बातें की। उनके छोटे छोटे बच्चे भी बूआ के साथ घुलमिल गए थे। रात को सोने के वक्त जब वह कपडे बदलने लगी तो उसे पता चला कि उसका बैग तो बहुत भरा हुआ था।

वह सब समझ गई। वह बहुत उदास हो गई। कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा, फिर जैसे सब बदलने लगा। सबका व्यवहार बदल रहा था। वह लोग जैसे थक चूके थे उससे। सब लोग घूमा फिरा कर पुछने लगे कि सूरज कब आ रहा है उसे ले जाने।

वह बहाना बना देती। जबकि वह जानती थी कि उस घर मे अब उसके लिए कोई जगह नहीं। मीना से चलते वक्त कुछ ना कुछ नुक्सान हो जाता। थोड़ी बहुत टोकाटाकी उसे सूनाई देती। वह टाल देती।

एक दिन उसके हाथ से लगकर एक कीमती फूलदान टूट गया। छोटी भाभी ने बहुत हंगामा मचाया। मीना के माता पिता रोज रोज के झमेलों से तंग आ गए थे। उन्होंने सूरज को खुद से फोन कर दिया। सूरज मीना को अपने घर ले गया। मीना को अपने परिवार वालों से ये उम्मीद ना थी जिस मीना के कहे बिना घर मे एक पत्ता भी नहीं हिलता था, उस घर के लिए वह अब बोझ बन चुकी थी।

सूरज के साथ ससुराल आते वक्त वह बहुत खुश थी। क्योंकि वह अपने घर जा रही थी अपने जिगर के टूकडे अपने बेटे समर के पास। पर यह खुशी भी कुछ पल की ही थी। सारा बन्दोबस्त पहले ही किया हुआ था। मीना को सीधे ऊपर वाले कमरे में पहुंचा दिया गया। समर से दूर रहने की सख्त चेतावनी दी गई।

एक कामवाली हैमा को उसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। जो उसके खाने पहनने जैसी जरूरतों का ध्यान रखती। मीना ज्यादातर चुप ही रहती। कभी-कभी कामवाली हैमा से थोडि बात चीत कर लेती। उसके जरिये समर का पता चल जाता। सबकी लाडली बेटी ओर बहू सबके लिए लाडली से बोझ बन चुकी थी।

©ABK Delhi wala Kahani # Hindi kahani

Pankaj Ramawat

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Deepika Vardhan

एक समय की बात है एक तपस्वी जंगल मैं तपस्या कर रहा था ।वहां एक लकड़हारा तपस्वी के पास आता है और उनको अपना हाल बताता है कि किस तरह वो रोज लकड़ी काट कर अपना गुजारा करता है।तपस्वी कहता है की यहां से कुछ दूरी पर इमरती लकड़ी के पेड़ हैं जिनको काट कर उसे अच्छी खासी आमदनी मिल जायेगी।
पहले तो उस लकड़हारे को उसकी बात पे विश्वास नही हुआ पर फिर भी जब वो वहां से कुछ दूर गया था सच में वहां पर बहुत सारे इमरती लकड़ी के पेड़ थे।वो बहुत खुस हुआ और तपस्वी का मन ही मन शुक्रिया करने लगा। ऐसे ही पेड़ काटते काटते उसका आमदनी अच्छी होने लगी वो 2=3दिन का गुजारा आराम से करने लगा । एक दिन वो तपस्वी का शुक्रिया करने उनके पास आया तपस्वी ने कहा तुम अभी भी वही हो थोड़ा सा आगे बड़ो आगे तुम्हे कोयले की खदाने मिलेंगी।और सच में वहां कोयला ही कोयला था वो बहुत खुश हुआ और अब कोयला बेच के अपनी आमदनी चलाने लगा।फिर कुछ दिनों बाद वो तपस्वी के पास आया और तपस्वी से बोला की वो बहुत खुश है तपस्वी ने पूछा की क्या तुम अभी वी कोयले तक ही पहुंच पाए हो आज बड़ो आगे तुम्हे चांदी मिलेगा।वहां उसे सच मैं चांदी मिला।चांदी पाकर उसने साड़ी करली और अपनी गृहस्ती बसा ली।अब वो कुछ दिन बाद फिर से जंगल आया वहां तपस्वी से बात कर रहा था तो तपस्वी ने कहा थोड़ा आगे जाओ तुम्हे कुछ और अमूल्य चीज मिलेगी। जैसा तपस्वी ने कहा उसने वही किया और अब उसे सोना मिला ।अब वो राजा की तरह अपना जीवन जीने लगा। उसके 2पुत्र थे,धन संपत्ति थी वो बहुत खुस था।वो जंगल से एक दिन गुजर रहा था तो तपस्वी उसे दिखा वो तपस्वी के पास चला गया और अपने सुखी जीवन के बारे मे तपस्वी को बताने लगा तपस्वी बोला हे पुरुष कभी तो आगे बड़ो आगे और वी अधिक मूल्यवान वस्तु है। वो व्यक्ति वहां से कुछ आगे गया तो उसे वहां हीरे की खान मिली वो बहुत ज्यादा खुश हुआ और अपने राज्य लौट गया। बहुत समय बाद वो तपस्वी से मिलने आया और अपने दिल का हाल बताया कि वो आजकल बहुत बेचैन रहता है तो तपस्वी ने उसे कहा की तुम कल मेरे पास आना। वो व्यक्ति अगले दिन तपस्वी के पास आया और तपस्वी ने उसे आंखे बन्द करके ध्यान लगाने को कहा  पर वो ज्यादा देर वहां रुक नही पाया ऐसा बहुत दिन तक चलता रहा जब वह तपस्वी k पास से जाता तो खुश होकर जाता और वापिस दुखी होकर लौटा करता था। धन आने से पहले वो बहुत खुश रहा करता था पर अब ऐसा नहीं था धन के आने से उसको हर समय भय ,चिंता और बेचैनी होने लगी थी। वह तपस्वी से पूछता है की वे जानते थे की धन कहां है फिर भी उन्होंने जंगल में तपस्या करना क्यों चुना धन के जगह तो तपस्वी बोले अगर मैं धन चुन लेता तो इतना बेफिक्र शांत और भये मुक्त न होता और तुम्हारे जैसे सुकून की तलाश कर रहा होता। पर मैने ध्यान लगाना तपस्या करना चुना इसीलिए मैं खुश हूं।

शिक्षा ---धन से हम कुछ क्षणों की खुशी तो पा सकते हैं पर भय ,बेचैनी और सुकून खो देते हैं , वही पर तपस्या और ध्यान ऐसी अवस्था है जो हमे परम शांति और खुशी देती है।
"अर्थात ध्यान से बड़ा कोई धन नही है।"

©Deepika Vardhan khaani
#kahani 
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singr rk gupata

Waqt Kahan Se Kahan Le Aaye kahani real kahani #NITKavi #ज़िन्दगी

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