Nojoto: Largest Storytelling Platform

New स्रष्टा Quotes, Status, Photo, Video

Find the Latest Status about स्रष्टा from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, स्रष्टा.

Related Stories

    PopularLatestVideo

Parasram Arora

स्रष्टा........

read more
स्रष्टा   पर  मेरी  नज़र हैँ 
पर  न  जाने  वो  स्रष्टा  कहा   किधर  
रहता  हैँ?  
जब  भी  गगन  मुझे  साफ  सुथरा   दिखता हैँ 
मुझे  उसका  नीलापन  बड़ा  अच्छा   लगता  हैँ 
और  जब  चन्द्रमा     उज्ज्वलता  का  दीया  जला  देता  हैँ 
तब  कहीं जाकर  उस  स्वछ   धवल  चांदनी  मे 
धुला  हुआ  वो  स्रष्टा  कितना  मोहक  
        दिखने  लगता   हैँ स्रष्टा........

Parasram Arora

सृष्टि और स्रष्टा #Hope #विचार

read more
ये घट है तो घटाकार भी तो होगा कही
अगर घटाकार है तो फिर उसको बनाने वाला कौन है ?.
कितनी बचकानी लगती है ये व्याख्या

दरसल  सृष्टि और स्रष्टा  दो नहीं
एक ही है

©Parasram Arora सृष्टि और स्रष्टा 

#Hope

Parasram Arora

हे स्रष्टा तुम्ही तो हो........

read more
सृष्टि क़े  कंण  कंंण  मे
सृष्टि  की  हर  रचना मे
हे स्रष्टा  तुम्ही तो हो
मुझे पता नहीं कहाँ  कहाँ  तुम्हें  मैंने महसूस नहीं है
लेकिन मैंने  तुम्हे अक्सर देखा है
पारदरशी  जल  की शीतलता  मे 
देखी है तुम्हारी छवि   मैंने  अग्नि की  लौ  मे
देखी है तुम्हारी चपलता  तितलियों की
उन्मुक्त  उड़ानों मे
सुनी है  तुम्हारी  आवाज़  मैंने भंवरों की  गुंजायमान
गीतों मे  और  मरुस्थल  की तपती  रेत की फिसलनों मे 
कई  बार  दिखे हो तुम मुझे
चांदनी  रातों की बिखरी  हुई आभा. मे
महसूसा  है  तुम्हे मैंने   अपनी 
साँसों की  तरंगों मे  और      देखी है
तुम्हारी     उपस्तिथि ब्रह्माण्ड की  हर शै  मे
हे स्रष्टा  तुम्ही तो  हो

©Parasram Arora हे स्रष्टा  तुम्ही  तो हो........

Divyanshu Pathak

😍Good morning😍 प्रकृति के अंग होने के कारण हम भी स्रष्टा हैं। परमात्मा की तरह। हमारी सृष्टि क्रियाएं शब्दों से संचालित होती हैं। सरस्वती सं #पंछी #पाठक #हरे #माधुर्य

read more
यदि हम न चाहते हुए भी
किसी के झगड़े की ध्वनि सुन रहे हैं,
चाहे टीवी, सिनेमा के ही हों,
हमारे भाव तथा क्रिया में दूषण पैदा हो जाएगा।
हमें तुरन्त ऎसे श्रवण से दूर हो जाना चाहिए।
ऎसे आकर्षक व्यक्ति के पास भी अघिक देर न बैठें कि
उसके प्रति मन में राग पैदा जो जाए।
सृष्टि वही आपको लौटाती है,
जो आप उसे देते हैं।
अत: शब्द हमारे भाग्य विधाता हैं।
इनकी मृदुता पर हमारे जीवन की मृदुता टिकी रहती है।
मृदुता का विकल्प नहीं है।
भक्ति योग तो माधुर्य पर ही टिका है।
अन्तरिक्ष में भी ईक्षु समुद्र, मधु, दघि और घृत समुद्र है।
भीतर के आकाश की पूर्णता भी यही है। 😍#Good morning😍
प्रकृति के अंग होने के कारण हम भी स्रष्टा हैं।
परमात्मा की तरह।
हमारी सृष्टि क्रियाएं शब्दों से संचालित होती हैं।
सरस्वती सं

Vikas Sharma Shivaaya'

एक पौराणिक कथा के अनुसार पानी का जन्म भगवान विष्णु के पैरों से हुआ है. पानी को "नीर" या "नर" भी कहा जाता है. भगवान विष्णु जल में ही निवास कर #समाज

read more
एक पौराणिक कथा के अनुसार पानी का जन्म भगवान विष्णु के पैरों से हुआ है. पानी को "नीर" या "नर" भी कहा जाता है. भगवान विष्णु जल में ही निवास करते हैं. इसलिए "नर" शब्द से उनका "नारायण"नाम पड़ा है...,

पुराणों में भगवान विष्णु के दो रूप बताए गए हैं. एक रूप में तो उन्हें बहुत शांत, प्रसन्न और कोमल बताया गया है और दूसरे रूप में प्रभु को बहुत भयानक बताया गया है...,

जहां श्रीहरि काल स्वरूप शेषनाग पर आरामदायक मुद्रा में बैठे हैं. लेकिन प्रभु का रूप कोई भी हो, उनका ह्रदय तो कोमल है और तभी तो उन्हें कमलाकांत और भक्तवत्सल कहा जाता है...,

कहा जाता है कि भगवान विष्णु का शांत चेहरा कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति को शांत रहने की प्रेरणा देता है. समस्याओं का समाधान शांत रहकर ही सफलतापूर्वक ढूंढा जा सकता है...,
शास्त्रों में भगवान विष्णु के बारे में लिखा है:-
"शान्ताकारं भुजगशयनं"। पद्मनाभं सुरेशं ।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
इसका अर्थ है भगवान विष्णु शांत भाव से शेषनाग पर आराम कर रहे हैं. भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर मन में ये प्रश्न उठता है कि सर्पों के राजा पर बैठ कर कोई इतना शांत कैसे रह सकता है? लेकिन वो तो भगवान हैं और उनके लिए सब कुछ संभव है...,

भगवान विष्णु को "हरि" नाम से भी बुलाया जाता है. हरि की उत्पत्ति हर से हुई है. 
ऐसा कहा जाता है कि "हरि हरति पापानि" जिसका अर्थ है- हरि भगवान हमारे जीवन में आने वाली सभी समस्याओं और पापों को दूर करते हैं...,
इसीलिए भगवान विष्णु को हरि भी कहा जाता है, क्योंकि सच्चे मन से श्रीहरि का स्मरण करने वालों को कभी निऱाशा नहीं मिलती है. कष्ट और मुसीबत चाहें जितनी भी बड़ी हो श्रीहरि सब दुख हर लेते हैं...,

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 586 से 597 नाम

586 शुभांगः सुन्दर शरीर धारण करने वाले हैं
587 शान्तिदः शान्ति देने वाले हैं
588 स्रष्टा आरम्भ में सब भूतों को रचने वाले हैं
589 कुमुदः कु अर्थात पृथ्वी में मुदित होने वाले हैं
590 कुवलेशयः कु अर्थात पृथ्वी के वलन करने से जल कुवल कहलाता है उसमे शयन करने वाले हैं
591 गोहितः गौओं के हितकारी हैं
592 गोपतिः गो अर्थात भूमि के पति हैं
593 गोप्ता जगत के रक्षक हैं
594 वृषभाक्षः वृष अर्थात धर्म जिनकी दृष्टि है
595 वृषप्रियः जिन्हे वृष अर्थात धर्म प्रिय है
596 अनिवर्ती देवासुरसंग्राम से पीछे न हटने वाले हैं
597 निवृतात्मा जिनकी आत्मा स्वभाव से ही विषयों से निवृत्त है

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' एक पौराणिक कथा के अनुसार पानी का जन्म भगवान विष्णु के पैरों से हुआ है. पानी को "नीर" या "नर" भी कहा जाता है. भगवान विष्णु जल में ही निवास कर

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 25 हनुमानजी का विशाल रूप और गर्जना हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास। अट्टहास करि गर्ज कपि बढ़ि लाग अकास॥25॥ उस समय भ #समाज

read more
🙏सुन्दरकांड 🙏
दोहा – 25
हनुमानजी का विशाल रूप और गर्जना
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्ज कपि बढ़ि लाग अकास॥25॥
उस समय भगवानकी प्रेरणा से उनचासो पवन बहने लगे और
हनुमानजी ने अपना स्वरूप ऐसा बढ़ाया कि वह आकाश में जा लगा फिर अट्टहास करके बड़े जोरसे गरजे ॥25॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

लंका दहन का प्रसंग
हनुमानजी एक महल से दूसरे महल पर जाते है
देह बिसाल परम हरुआई।
मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥
जरइ नगर भा लोग बिहाला।
झपट लपट बहु कोटि कराला॥1॥
यद्यपि हनुमानजी का शरीर बहुत बड़ा था परंतु शरीर में बड़ी फुर्ती थी,जिससे वह एक घर से दूसरे घर पर चढ़ते चले जाते थे जिससे तमाम नगर जल गया।लोग सब बेहाल हो गये और झपट कर बहुत से विकराल कोट पर चढ़ गये॥

राक्षस लोग समझ जाते है की हनुमानजी देवता का रूप है
तात मातु हा सुनिअ पुकारा।
एहि अवसर को हमहि उबारा॥
हम जो कहा यह कपि नहिं होई।
बानर रूप धरें सुर कोई॥2॥
और सब लोग पुकारने लगे कि हे तात! हे माता!अब इस समय में हमें कौन बचाएगा॥हमने जो कहा था कि यह वानर नहीं है,कोई देवता वानर का रूप धरकर आया है। सो देख लीजिये यह बात ऐसी ही है॥

लंका नगरी जल जाती है
साधु अवग्या कर फलु ऐसा।
जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नगरु निमिष एक माहीं।
एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥3॥
और यह नगर जो अनाथ के नगर के समान जला है सो तो साधु पुरुषोंका अपमान करनें का फल ऐसा ही हुआ करता है॥तुलसीदासजी कहते हैं कि
हनुमानजी ने एक क्षण भर में तमाम नगर को जला दिया.केवल एक बिभीषण के घर को नहीं जलाया॥

सिर्फ विभीषण का घर क्यों नहीं जलता है?
ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा।
जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥
उलटि पलटि लंका सब जारी।
कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥4॥
महादेवजी कहते है कि हे पार्वती!
जिन्होने अग्नि को बनाया है,उस परमेश्वर का विभीषण भक्त था,हनुमान् जी उन्ही के दूत है,इस कारण से उसका घर नहीं जला॥हनुमानजी ने उलट पलट कर (एक ओर से दूसरी ओर तक)तमाम लंका को जला कर फिर समुद्र के अंदर कूद पडे॥

आगे मंगलवार को ...,

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 981 से 992 नाम  
981 यज्ञान्तकृत् यज्ञ के फल की प्राप्ति कराने वाले हैं
982 यज्ञगुह्यम् यज्ञ द्वारा प्राप्त होने वाले
983 अन्नम् भूतों से खाये जाते हैं
984 अन्नादः अन्न को खाने वाले हैं
985 आत्मयोनिः आत्मा ही योनि है इसलिए वे आत्मयोनि है
986 स्वयंजातः निमित्त कारण भी वही हैं
987 वैखानः जिन्होंने वराह रूप धारण करके पृथ्वी को खोदा था
988 सामगायनः सामगान करने वाले है
989 देवकीनन्दनः देवकी के पुत्र
990 स्रष्टा सम्पूर्ण लोकों के रचयिता हैं
991 क्षितीशः क्षिति अर्थात पृथ्वी के ईश (स्वामी) हैं
992 पापनाशनः पापों का नाश करने वाले हैं
🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏
दोहा – 25
हनुमानजी का विशाल रूप और गर्जना
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्ज कपि बढ़ि लाग अकास॥25॥
उस समय भ

Anamika Nautiyal

कोरा कागज की प्रतियोगिता हम लिखते रहेंगे के लिए टीम काव्यांजलि की द्वितीय दिन की रचना ''कलम'' ही ताकत मेरी कलम ही पहचान है कलम से ही मेरी #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #हमलिखतेरहेंगे #टीम_काव्यांजलि

read more
द्वितीय दिन की रचना  
विषय :- कलम
टीम :- 15 काव्यांजलि
कैप्टन का नाम :- अनामिका नौटियाल
सदस्यों का नाम
i) Roshni Rawat
ii) Kamla Rawat
iii) naini
iv) भाग्य श्री बैरागी
v) Sandeep Dabral Sendy कोरा कागज की प्रतियोगिता हम लिखते रहेंगे के लिए टीम काव्यांजलि की द्वितीय दिन की रचना


''कलम''  ही ताकत मेरी
कलम ही पहचान है
कलम से ही मेरी

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 16 – भाग्य-भोग 'भगवन! इस जीव का भाग्य-विधान?' कभी-कभी जीवों के कर्मसंस्कार ऐसे जटिल

read more
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
16 – भाग्य-भोग

'भगवन! इस जीव का भाग्य-विधान?' कभी-कभी जीवों के कर्मसंस्कार ऐसे जटिल

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 14 – ममता 'मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'

read more
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
14 – ममता

'मैं अरु मोर तोर तैं माया।
जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile