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Nova Changmai
दर क्या है??? एक लंबा हट्टा कट्टा आदमी उसी आवाज से बात कर रही है, और तुम सुनकर डर रही हो, उसको को दर नहीं बोलता है। जो बीते हुए कल है उससे शिक्षा लो, और जो आज करने वाले हो उसे किया नया क्या कुछ कर सकते हो उसके बारे में सोचो ,और डरो उस समय के लिए जो भविष्य में तुम्हारे जीवन को सुनहरी अक्षर में लिखकर जीवन को बदल सकता है। #सीखना #शायरी#कविता#रोमांस#मीनिंग #Motivational #Good #evening
prashant Singh rajput
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Vandana
सुप्रभात🌺 सुबह सुबह का आलम मंत्रमुग्ध कर देने वाला ठंडी ठंडी पुरंवाई हौले हौले बहती जाती,,,,,, सूरज की चंचल किरणें नभ में फैलती जाती नीला आकाश स्वच्छ
lalitha sai
एक कथा.. जिस कथा में हो एक ऐसा अर्थ सबके सोच के परे हो... कुछ लघुकथा ऐसे दिल चुरा लेते है.. कोई सोच भी नहीं सकता.. अंत में एक सुकून के एहसास को.. दिल और दिमाग़ में छा जाते है.. बहुत पहले से ही मैं शॉर्टफ़िल्म के शौकीन हूँ.. कुछ कुछ शॉर्टफिल्म्स ऐसे होते है.. जिसे title कुछ अलग होता है.. देखने के बाद पता चले.. कितना म
अज्ञात
आइये वक़्त के साथ बेशर्म बनते हैं.. वक़्त बदल गया अब हम भी बदलते हैं.. गलत का विरोध नही कर सकते ना तो फिर मूक बधिर की तरह गलत के साथ चलते हैं..!! हम भी वही करें जो सब करते हैं खुल जायें पूरी तरह से जैसे सब खुलते हैं उफ़्फ़ ये शिष्टाचार रस्म-ओ-रिवाज बहुत हो चुका.. अब इनकी किताब बंद करते हैं..!! दो चार चने मिल कर जोश दिखा भी दें तो क्या पापी घड़ा फूटेगा तो नही..!! आसमान ही फट चुका जोड़ कितने ही लगायें जुड़ेगा तो नही..!! आत्मसम्मान के साथ जीना मुश्किल है ना.. चलो स्वाभिमान खो कर बढ़ते हैं..!! नवीन नग्न सभ्यता के नये रिवाजों का चलन है.. और इस चलन में कितना अमन है.. फिर हमें भी तो जीना है ना.. चलो नग्नता को सिरोधार्य कर चलते हैं..!! सब जानते हैं, सतसंग की आड़ में कुसंग पल रहा है सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से पापाचार चल रहा है क्यूँ ना हम भी, "जैसा देश वैसा वेष" धरते हैं..!! हाँ, मगर लड़ने का जज़्बा है तो मरते दम तक पीछे मत हटना.. अपनी कलम के शोर से,भावों के जोर से ऐसा इतिहास रचना.. कि उन तमाम बंद आँखों को, ख़ामोश जुबानों को खुलना पड़े अपने किये पर शर्मिंदा होना पड़े और ये कहना पड़े.. कि अभी कलम में ताक़त जिन्दा है रुख़ बदलने को.. वक़्त है.. बहुत है.. सभ्यता का सूरज ढलने को.. तो क्यूँ ना हो आगाज़ "सत्यमेव जयते" की कांति तक..!! कलम की दम पर स्वर्णिम भारत की क्रांति तक..!! क्यूंकि फैलाने वाले तो पग पग पर भ्रान्ति फैलाते हैं.. मग़र इतिहास कहता है 'कलमकार' ही "क्रांति" लाते हैं..! ©S. Kumar आइये वक़्त के साथ बेशर्म बनते हैं.. वक़्त बदल गया अब हम भी बदलते हैं.. गलत का विरोध नही कर सकते ना तो फिर मूक बधिर की तरह गलत के साथ चलते ह
Aprasil mishra
" वैश्विक महामारी के व्यापक संक्रमण से सुरक्षार्थ देशव्यापी जन एकांतवास के सुअवसर पर रिक्त समयों के सदुपयोग हेतु हमारे कुछ अनुकरणीय सुझाव। " (अनुशीर्षक में👇) ******************************** घर में रहने की शिल्पकला को जीवनदान दिया जाये, दादा-दादी सुत प्राणप्रिया को खोया मान दिया जाये। है चन्द्र-
Insprational Qoute
विधा:- पत्र लेखन ****************** विषय :- रोटी का एक गृहिणी को प्रत्युत्तर *********************************** सम्पूर्ण पत्र पढ़ने हेतु कृपया अनुशीर्षक में पढ़ियेगा🙏🙏🙏 विधा:- पत्र लेखन ****************** विषय :- रोटी का एक गृहिणी को प्रत्युत्तर *********************************** ल.म.व.पुर, च.घ.ड़ नगर,
Anil Siwach
Anil Siwach