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Anupama Jha
एक दूजे के पूरक हम एक दूजे से अपनी पहचान प्रेम,विशेषण अपना तुम गर संज्ञा,तो मैं सर्वनाम। #संज्ञा #सर्वनाम #yqdidi #विशेषण
Salim Saha
एक शराबी की दास्तां, सोच रहा हूँ दारू छोड़ दूं, पर किसके सहारे छोडू ? सभी कमीने है साले पी जायंगे !! ©Salim Saha सर्वनाम# दारू छो#ड़ दो पर किसके सहारे छोड़ो#
kuldeep yadav
Rakesh Dwivedi
दीवारों पर लिख दो कहीं नाम मेरा इशारों में उभरे गा कहीं नाम मेरा उठेगी जब उंगली उस पर तो कहना संज्ञा हूं मैं वह बस सर्वनाम मेरा वैसे समझे ना समझे। कि क्या कुछ समझे? समझने को बचा क्या सरेआम मेरा? ©Rakesh Dwivedi दीवारों पर लिख दो कहीं नाम मेरा इशारों में उभरे गा कहीं नाम मेरा उठेगी जब उंगली उस पर तो कहना संज्ञा हूं मैं वह बस सर्वनाम मेरा वैसे
Vibha Katare
" सर्वनाम का अत्याधिक प्रयोग व्यर्थ भ्रम की उत्पत्ति का कारक होता है । जहाँ संज्ञा आवश्यक है वहाँ सर्वनाम को आराम ही करने दीजिये । " - सर्वनामों से त्रस्त एक संज्ञा सर्वनाम की सम्पूर्ण व्यथा और कथा अनुशीर्षक में पढ़िए। संभवतः आदिकाल में जब प्रकृति विभिन्न स्तरों पर सृजनरत थी, तब भाव और संवादों की नवकोपल भी भाषा रूपी तरु के उद्भव की ओर अग्रसर रही होंगी और सं
vishnu thore
"माणसाच्या सोईचा देव ....." या सागर काकडे या मित्राच्या कवितासंग्रहाचं मुखपृष्ठ मी केलं होतं. सामाजिक भान जपणारा विद्रोही अंगांचा हा एक चिंत
vishnu thore
नीलिमा श्रुतिश्रवण प्रतिभासंगमच्या कार्यक्रमात भेटल्या लातूरला. प्रिया धारूरकर,दुर्गेश सोनार आम्ही त्यांच्या घरी पण गेलो. घरात कितीतरी पुस्त
Divyanshu Pathak
प्रेम पंथ की बनकर किताब तुम मेरे सामने आती हो ! एक अल्हड़ से मस्त भ्रमर को तुम पाठक कर जाती हो !! स्वर व्यंजन के शब्द जाल को चुपके से यार बिछाती हो ! सन्धी कर खुद हो समास तुम प्रत्यय मुझे बनाती हो !! क्रियाविशेषण सर्वनाम सब तुम उपसर्ग लगाती हो ! महाप्राण का कारक बन अन्तःस्थ हृदय हो जाती हो !! प्रेम पंथ की बनकर किताब तुम मेरे सामने आती हो ! एक अल्हड़ से मस्त भ्रमर को तुम पाठक कर जाती हो !! स्वर व्यंजन के शब्द जाल को चुपके से यार बि