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सुरेश सारस्वत
Trust me समंदर आंख का बादल बना, बरसने लगा भीगा मन प्यासा हुआ और तरसने लगा अपने ही अंतर में जब उतरा गहरे गहरे बहते समंदर में आइना और चटकने लगा टूटे यकीं को जब जब टटोला रूह ने सच्चाई जो देखी अपनी ख़ुद से संभलने लगा जब भी लटकी सच्चाई रूहे सलीब पर दिखने लगे सारे भरम आदमी संवरने लगा ... बरसने लगा संवरने लगा
Ajay Kumar
इल्जाम लगा लगा कर तू थक गई सफाई दे दे कर मै भी थक गया दुरिया दोनों के बीच बढती रही हासिल दोनों को कुछ नहीं हुआ ©Ajay Kumar #sad इल्जाम लगा लगा कर
BIKASH SINGH
वक्त के साथ सब कुछ बदला..... बदला कि नहीं..... न टूटने वाला वादा टूटा ...... टूटा कि नहीं..... तुम कहती थी बिछड़ कर हम जी नहीं पाएंगे .... बिछड़ कर जीना आया..... आया कि नहीं.... खामखा तुम परेशान थी, देखो मसला हल हुआ..... हुआ कि नहीं.... आज हम से भी बेहतर तुम्हें मिला.... मिला कि नहीं.... खैर.....यह सब बातें छोड़ो, हम तो बेदिल ठहरे,तुम बताओ तुम्हारा दिल लगा .... लगा कि नहीं........ ©BIKASH SINGH #तुम्हारा दिल लगा .... लगा कि नहीं.....
Rohit Bairag
मै किनारो पर भी चल सकता था मगर मुझे दरिया अच्छा लगा। मेरा कामत भी कुछ कम नही था मगर मुझे झुकना अच्छा लगा। और में चाहता तो जवाब दे सकता था मगर मुझे, मेरी मुस्कुराहटों से उनका जलना अच्छा लगा। आँधिया तोड़ देती है घोसला चिडिया का हर दफा, मुझे तिनका बटोरती चिडिया का हौंसला अच्छा लगा। वो फिर से मुत्तसिल होने की ताक में थे, मगर मुझे उनसे दुर ही रहना अच्छा लगा। बहुत महंगी महंगी चीजे रखी है घर में, मगर मुझे मेरा पुराना वो टूटा खिलौना अच्छा लगा। उचाईयों पर इन्सान अक्सर अकेला रह जाता है, इसलिए मुझे जमीन पर ही रहना अच्छा लगा। (रोहित बैराग) #अच्छा लगा
धीरज झा
अच्छा लगा तुम घर आए अच्छा लगा तुम घर आए खुशी है तुमने मेरे लिए आंसू बहाये सुकून मिला सुन कर उन विचारों को जो तुमने मेरे बारे में सबको बताए कितना प्रेम पाले बैठे थे मुझे कबसे दिल में सम्भाले बैठे थे कितना टूट कर तुमने हमारे किस्से सबको सुनाये अच्छा लगा तुम घर आए मगर मुझे और भी अच्छा लगता अगर तुम पहले आ जाते मेरी सुनते फिर तुम अपनी सुनाते तुम्हें अपने हाथों से बना कर मस्त मसाला चाय भी पिलाते अब तो तुम्हरी बातों का कोई जवाब ना दे सकूँगा तुम्हारी आंखों में उमड़ते दर्द को अपने दिल पर ना ले सकूँगा शायद पहले चले आते तो मन का बोझ कुछ हल्का हो जाता तुम्हारे लिए जागता, यूं आंखें बंद कर हमेशा के लिए ना सो जाता चलो कोई बात नहीं तुमने कम से कम दुनियादारी के दस्तूर तो निभाए देर से ही सही मगर अच्छा लगा तुम घर तो आए धीरज झा अच्छा लगा
Anil Prasad Sinha 'Madhukar'
जब उनसे मिले थे हज़ारों शिकवे गिले थे पर केवल पूछा जाता क्या तुम्हे बुरा लगा ? जब घुमने जाते थे हर बार ही मुह फुलाते थे पर केवल पूछा जाता क्या तुम्हे बुरा लगा ? आइसक्रीम लाकर दी थी उसने गिरा दी थी पर केवल पूछा जाता क्या तुम्हे बुरा लगा ? संग उसके चला गया पर हरदम ही छला गया पर केवल पूछा जाता क्या तुम्हे बुरा लगा ? नहीं जी कौन कहता मुझे बुरा लगता है इसका अभ्यस्त हो चुका हूँ तन मन से अब तो हर बुरी चीज भी अच्छी लगती है मुझे बुरा नहीं लगता है, मुझे बुरा नहीं लगता है । ---मधुकर ©Anil Prasad Sinha 'Madhukar' #बुरा लगा