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Sarita Shreyasi

बस एक पुत्रवधू बनने के लिए, बेटियाँ ब्याही नहीं जायेंगी।

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संतति को संस्कार देगी,
समाज को सभ्य बनायेगी,
प्रतिष्ठा की परिभाषा बदलेगी,
गरिमा से परिचय करवायेगी,
पुत्र को भी संयम सहिष्णुता सिखायेगी,
संतुलित मर्यादा पुरूष बनायेगी,
बस एक पुत्रवधू बनने के लिए,
बेटियाँ ब्याही नहीं जायेंगी। 
बस एक पुत्रवधू बनने के लिए,
बेटियाँ ब्याही नहीं जायेंगी।

Sarita Shreyasi

शक नहीं कि वृद्ध माता-पिता, आज सचमुच तकलीफ में हैं, पर प्रश्न ये है कि यहाँ लिंगभेद क्यूँ है? बस पुत्र की माँ ही वृद्धाश्रमों में पायी जाती #daughter #yqbaba #hindipoetry #yqdidi #yopowrimo

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शक नहीं कि वृद्ध माता-पिता,
आज सचमुच तकलीफ में हैं,
पर प्रश्न ये है कि यहाँ लिंगभेद क्यूँ है?
बस पुत्र की माँ ही वृद्धाश्रमों में पायी जाती है,क्यूंकि
पुत्रवधू से उनकी जिम्मेदारियाँ नहीं निभायी जाती हैं।
निज संतान की गैर जिम्मेदारी,
स्नेह से नज़रअंदाज़ हो जाती है,
पराए घर से आयी पुत्रवधू ही,
कटघरे में खड़ी की जाती है।
सगे बेटे बेटी रिहा हो जाते है,
गैर बहू दोषी ठहरायी जाती है।
बुद्धिजीवियों विचारकों द्वारा,
अश्रु नदियाँ बहायी जाती है,
इलेक्ट्रोनिक संवादों में,
सहानुभूतियों की बाढ़ आ जाती है।
आजीवन कष्ट से निबाही,
माँ-बाप की जिम्मेदारी पर,
बँटे हुये बेटे की लाचारी पर,
करुण कथाएँ लिखी जाती है।
पुत्रवधू की माँ किसी चर्चा में,
ढूंढ के भी नही पायी जाती है,
उस माँ की अनसुनी, बेटी के
नए घर के शोर में खो जाती है। शक नहीं कि वृद्ध माता-पिता,
आज सचमुच तकलीफ में हैं,
पर प्रश्न ये है कि यहाँ लिंगभेद क्यूँ है?
बस पुत्र की माँ ही वृद्धाश्रमों में पायी जाती

Sarita Shreyasi

एक मनमौजी किशोर बेटा ब्याहते ही, आज्ञाकारी जिम्मेदार पुत्र हो जाता है, माँ-बाप की अच्छी समझदार बेटी, बहू बनते ही कैसै बिगड़ जाती है। बेटा जो #daughter #yqbaba #yqdidi #yopowrimo

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एक मनमौजी किशोर बेटा ब्याहते ही,आज्ञाकारी जिम्मेदार पुत्र हो जाता है,
माँ-बाप की अच्छी समझदार बेटी,बहू बनते ही कैसै बिगड़ जाती है।
बेटा जो किसी की नहीं सुनता था,पहले दिन से ही बीवी की सुनने लगता है,
कलतक मनमानी करता था,आज उसके ही कहने पर चलता है।
बीवी के बल पर हर बेटा,श्रवण कुमार बनना चाहता है,
पत्नी पर आश्रित,पराजित पुत्र,बस लाचार हो कर रह जाता है।
कितने श्रवण कुमार हैं,जो अकेले ही पालनहारों की सेवा करते हैं,
अपनी सुख-सुविधा तज कर कष्ट से भी माँ-बाप को अपने दम पर खुश रखते हैं।
कल भी मनमानी करते थे,आज भी अपने ही मन की करते हैं,
खुद से नहीं निभायी जाती तो,जिम्मेदारी संगिनी के सर मढ़ते हैं।
बचपन का लालन-पालन हो,या हो पाठशाला की परीक्षा,
दोनों के लिए जगते मात-पिता,दोनों से जुड़ी रहती उनकी ईच्छा।
पर जब कर्तव्य की बात आती है,तो परंपरा पुत्र का मुख ताकती है,
पुत्र अकेला नहीं होता तभी पुत्रवधू की बारी आती है।
ब्याहते ही पुत्री जनक-जननी के ऋण से उऋण हो जाती है,
क्यूँकि पुत्री के कर्तव्यों को भूला कर,पुत्रवधू अपने पति का ऋण चुकाती है।
पुत्री से पुत्रवधू बनते ही,माँ-बाप,मंच से नेपथ्य में चले जाते हैं,
यही वजह है कि वे संतति में,एकलौती बेटी नहीं चाहते हैं ।
 एक मनमौजी किशोर बेटा ब्याहते ही,
आज्ञाकारी जिम्मेदार पुत्र हो जाता है,
माँ-बाप की अच्छी समझदार बेटी,
बहू बनते ही कैसै बिगड़ जाती है।
बेटा जो

N S Yadav GoldMine

#City सत्यवती के विवाह के पश्चात वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये क्या कहा जानिए !! 👸👸 {Bolo Ji #पौराणिककथा

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सत्यवती के विवाह के पश्चात वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये क्या कहा जानिए !! 👸👸
{Bolo Ji Radhey Radhey}
भगवान परशुराम की कथा :- 🌹 परशुराम रामायण काल के दौरान के मुनी थे। पूर्वकाल में कन्नौज नामक नगर में गाधि नामक राजा राज्य करते थे। उनकी सत्यवती नाम की एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी। राजा गाधि ने सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषीक के साथ कर दिया। सत्यवती के विवाह के पश्चात वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये कहा। इस पर सत्यवती ने श्वसुर को प्रसन्न देखकर उनसे अपनी माता के लिये एक पुत्र की याचना की। सत्यवती की याचना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुये कहा कि जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हो तब तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करें और तुम उसी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना। फिर मेरे द्वारा दिये गये इन चरुओं का सावधानी के साथ अलग अलग सेवन कर लेना। 

🌹 इधर जब सत्यवती की माँ ने देखा कि भृगु जी ने अपने पुत्रवधू को उत्तम सन्तान होने का चरु दिया है तो अपने चरु को अपनी पुत्री के चरु के साथ बदल दिया। इस प्रकार सत्यवती ने अपनी माता वाले चरु का सेवन कर लिया। योग शक्ति से भृगु जी को इस बात का ज्ञान हो गया और वे अपनी पुत्रवधू के पास आकर बोले कि पुत्री! तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है। इसलिये अब तुम्हारी सन्तान ब्राह्मण होते हुये भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगा। इस पर सत्यवती ने भृगु जी से विनती की कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करे, भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करे। भृगु जी ने प्रसन्न होकर उसकी विनती स्वीकार कर ली। 
{Rao Sahab N S Yadav}
🌹 समय आने पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ। जमदग्नि अत्यन्त तेजस्वी थे। बड़े होने पर उनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ। रेणुका से उनके पाँच पुत्र हुये जिनके नाम थे रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्वानस और परशुराम। एक बार रेणुका सरितास्नान के लिये गई। दैवयोग से चित्ररथ भी वहाँ पर जल-क्रीड़ा कर रहा था। चित्ररथ को देख कर रेणुका का चित्त चंचल हो उठा। इधर जमदग्नि को अपने दिव्य ज्ञान से इस बात का पता चल गया। इससे क्रोधित होकर उन्होंने बारी-बारी से अपने पुत्रों को अपनी माँ का वध कर देने की आज्ञा दी। रुक्मवान, सुखेण, वसु और विश्वानस ने माता के मोहवश अपने पिता की आज्ञा नहीं मानी, किन्तु परशुराम ने पिता की आज्ञा मानते हुये अपनी माँ का सिर काट डाला। अपनी आज्ञा की अवहेलना से क्रोधित होकर जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को जड़ हो जाने का शाप दे दिया और परशुराम से प्रसन्न होकर वर माँगने के लिये कहा। इस पर परशुराम बोले कि हे पिताजी! मेरी माता जीवित हो जाये और उन्हें अपने मरने की घटना का स्मरण न रहे। परशुराम जी ने यह वर भी माँगा कि मेरे अन्य चारों भाई भी पुनः चेतन हो जायें और मैं युद्ध में किसी से परास्त न होता हुआ दीर्घजीवी रहूँ। जमदग्नि जी ने परशुराम को उनके माँगे वर दे दिये।

🌹 इस घटना के कुछ काल पश्चात एक दिन जमदग्नि ऋषि के आश्रम में कार्त्तवीर्य अर्जुन आये। जमदग्नि मुनि ने कामधेनु गौ की सहायता से कार्त्तवीर्य अर्जुन का बहुत आदर सत्कार किया। कामधेनु गौ की विशेषतायें देखकर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने जमदग्नि से कामधेनु गौ की माँग की किन्तु जमदग्नि ने उन्हें कामधेनु गौ को देना स्वीकार नहीं किया। इस पर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने क्रोध में आकर जमदग्नि ऋषि का वध कर दिया और कामधेनु गौ को अपने साथ ले जाने लगा। किन्तु कामधेनु गौ तत्काल कार्त्तवीर्य अर्जुन के हाथ से छूट कर स्वर्ग चली गई और कार्त्तवीर्य अर्जुन को बिना कामधेनु गौ के वापस लौटना पड़ा।

🌹 इस घटना के समय वहाँ पर परशुराम उपस्थित नहीं थे। जब परशुराम वहाँ आये तो उनकी माता छाती पीट-पीट कर विलाप कर रही थीं। अपने पिता के आश्रम की दुर्दशा देखकर और अपनी माता के दुःख भरे विलाप सुन कर परशुराम जी ने इस पृथ्वी पर से क्षत्रियों के संहार करने की शपथ ले ली। पिता का अन्तिम संस्कार करने के पश्चात परशुराम ने कार्त्तवीर्य अर्जुन से युद्ध करके उसका वध कर दिया। इसके बाद उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से रहित कर दिया और उनके रक्त से समन्तपंचक क्षेत्र में पाँच सरोवर भर दिये। अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोक दिया। अब परशुराम ब्राह्मणों को सारी पृथ्वी का दान कर महेन्द्र पर्वत पर तप करने हेतु चले आये हैं।

©N S Yadav GoldMine #City सत्यवती के विवाह के पश्चात वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये क्या कहा जानिए !! 👸👸
{Bolo Ji

ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)

जो अनुभव भगवान श्री कृष्ण ने हजारों वर्ष पहले अर्जुन को कुरुक्षेत्र में बता दिया की इस दुनिया में कोई किसी के रिश्तेदार माता पिता बाय बाय पु

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अपने जब पराये हो जाते हैं, तब  रिश्ते क्या होते हैं उसका एहसास होता है तब दुनिया की हकीकत पता चलती है और कुरुक्षेत्र में कृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिए उपदेशों की याद आती है जो अनुभव भगवान श्री कृष्ण ने हजारों वर्ष पहले अर्जुन को कुरुक्षेत्र में बता दिया की इस दुनिया में कोई किसी के रिश्तेदार माता पिता बाय बाय पु
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